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|image_map_caption= Approximate extent of the Satavahana empire under [[Gautamiputra Satkarni]]
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{{सातवाहन}}
'''सातवाहन''' [[प्राचीन भारत]] का एक राजवंश था। इसने ईसापूर्व २३० से लेकर दूसरी सदी (ईसा के बाद) तक केन्द्रीय [[दक्षिण भारत]] पर राज किया। यह [[मौर्य राजवंश|मौर्य वंश]] के पतन के बाद शक्तिशाली हुआ था। इनका उल्लेख ८वीं सदी ईसापूर्व में मिलता है। [[सम्राट अशोक|अशोक]] की मृत्यु (सन् २३२ ईसापूर्व) के बाद सातवाहनों ने खुद को स्वतंत्र घोषित कर दिया था।
सीसे का सिक्का चलाने वाला पहला वंश सातवाहन वंश था, और वह सीसे का सिक्का रोम से लाया जाता था।
 
== परिचय ==
प्राचीन भारत में [[मौर्य राजवंश|मौर्य वंश]] के अन्तर्गत पहली बार राजनैतिक एवं सांस्कृतिक एकता स्थापित करने का प्रयास किया। बाद में चलकर सातवाहन वंश ने इस प्रयास को आगे बढ़ाया। यद्यपि इतिहासकार सातवाहनों को दक्कन में मौर्यों का उत्तराधिकारी हैं तथापि इस वंश के उदय को अशोक के बौद्ध राज्य के विरूद्ध सामान्य जैन तथा हिन्दु प्रक्रिया के रूप में भी समझा जाना चाहिए। सातवाहन वंश की स्थापना मौर्य वंश के पराभव से लगभग पचास वर्ष पहले हुई। उनका साम्राज्य दक्षिण भारत का सबसे प्राचीन और बड़ा साम्राज्य था। उत्तर भारत निरन्तर बदलते राजवंशीय परिदृश्य (जहां मौर्यों के पतन के बाद छोटे-छोटे अन्तराल पर शुंग, कण्व तथा कुषाण वंशो की स्थापना हुई) के विपरित सातवाहनों ने दक्कन में अटूट, अविभाज्य तथा दीर्घकाल तक स्थाई रूप से चलने वाले एक साम्राज्य की स्थापना की जिसने लगभग साढ़े चार सौ वर्षों तक शासन किया।
 
इस काल के विषय में जितनी जानकारी हमें प्राप्त हुई है उससे हमें सातवाहनों की विलक्षणता तथा विभिन्न क्षेत्रों में उनकी अद्वितिय गतिविधियों का ज्ञान होता है। यदि पुराणों के वक्तव्यों पर विशवास किया जाए तो दक्कन के इस साम्राज्य की सीमाएं उत्तर भारत तक फैली हुई थी। मगध इस साम्राज्य का एक हिस्सा था, दक्षिणी भारत में भी फैलाव था तथा पूर्वी से पश्चिमी समुन्द्र तक इसकी सीमाएं विस्तृत थी। उत्तर तथा दक्षिण भारत की मालव, भोज, पठनिक, रथिक, आन्ध्र, पारिन्द तथा द्राविड़ आदि विभिन्न प्रकार की प्रजातियों के समन्वय से इस साम्राज्य का निर्माण हुआ था तथा इस दृष्टि से क्षेत्रफल में मौर्य साम्राज्य से कम होते हुए भी सातवाहन साम्राज्य उससे कहीं अधिक सुगठित था। ये सातवाहनों द्वारा मध्य भारत तथा दक्कन में प्रदत्त लम्बे एवं शान्तिपूर्ण शासन काल का ही परिणाम था कि कला एवं स्थापत्य का विकास हुआ जिनके उदाहरण हम पश्चिम भारत की शिलाओं में तराशी हुई गुहाओं तथा पूर्वी भारत के स्तूपों एवं विहारों में पा सकते है। इस काल में संस्कृति का भी अत्यधिक विकास हुआ तथा प्रकृत भाषा का आकर्षण राजदरबारों तक पहुँचा। सातवाहन राज्य के आधीन बौद्ध धर्म का अद्वितिय विकास हुआ। व्यापार, वाणिज्य एवं जल परिवहन के क्षेत्रों में भी उन्नति अत्यधिक हुई।
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== सातवाहनों का शासनकाल तथा कालक्रम ==
सातवाहनों के कालक्रम को लेकर विद्वानों में गहरे मतभेद हैं। [[ऐत्रेयय ब्राह्मण]] जो कि पाँच सौ ई0पूर्व में लिखा गया था उसमें आन्ध्रों को ऐसे दस्यु बताया गया है जो कि आर्य परिधि से बाहर थे तथा जो विश्वामित्र के वंशज थे। इस आधार पर डॉ॰डी0आर0 भण्डारकर ने 500 ई0पूर्व को सातवाहनों की आरम्भिक स्थिति माना है। डॉ॰वी0ए0 स्मिथ के अनुसार आन्ध्र पहले अधीनस्थ थे परन्तु उसकी मृत्यु के पश्चात् वे सिमुख के नेतृत्व में स्वतन्त्र हो गए तथा यह घटना तीसरी शताब्दी ई0पूर्व में हुई। इस विषय में स्मिथ ने पुराणों का ही आधार माना है जिनके अनुसार आन्ध्रों के कुल तीस शासकों ने लगभग 460वर्षों तक शासन किया। डॉ॰गोपालचारी ने भी इस तथ्य को स्वीकारते हुए यह माना है कि सातवाहन वंश की स्थापना लगभग 235ई0पूर्व तथा उसका पतन लगभग 255 ईस्वी में हुआ। कलिंग के शासक खारखेल के राज्यकाल में उत्कीर्ण हाथी गुम्फा शिलालेख के आधार पर रैपसन सातवाहन वंश का आरम्भ 220 ई0पूर्व तथा 211 ई0पूर्व के बीच मानते है परन्तु सातवाहनों के यासन काल को लेकर विभिन्न पुराणों में भी मतान्तर है। एक ओर जहा [[मत्स्य पुराण|मत्स्यपुराण]] उनका कुल यासन काल 460वर्ष बताता है वहीं दूसरी ओर [[ब्राह्मणपुराण]] में यह अवधि 456 वर्ष बताई गई है।
 
[[वायु पुराण|वायुपुराण]] के अनुसार सातवाहनों ने 411 वर्षों तक शासन किया जबकि [[विष्णु पुराण|विष्णुपुराण]] उनकी शासन अवधि 300 वर्ष मानता है। दूसरी आर डॉ॰ आर0 जी0 भण्डारकर सातवाहन वंश की स्थापना 72.73 ई0पूर्व को मानते हैं। पुराणों में वर्णित एक वक्तव्य के आधार पर उन्होंने यह माना है कि, ‘‘शुंग मृत्य’’ कण्व शासक शुंग शासकों के सेवक थे तथा पेशवाओं की भांति उनके साथ-साथ शासन करते थे तथा सिमुक अथवा शिशुक नामक सातवाहन वंश के संस्थापक ने कण्व राजा सुश्रमन को मारकर कण्व तथा शुंग दोनो वंशो का अन्त कर दिया तथा उनके साम्राज्य को अपने आधीन कर लिया। परन्तु यह तथ्य अविश्वसनीय है क्योकिं हम यह भली-भांति जानते है कि शुंग तथा कण्व वंश के शासकों ने कभी संयुक्त रूप से शासन नही किया तथा कण्व वंश के संस्थापक वासुदेव कण्व ने अन्तिम शुंग शासक देवभूति की हत्या कर शासन की बागडोर सम्भाली थी। वायुपुराण के उस वक्तव्य जिसके आधार पर डॉ॰भण्डारकर ने गलत व्याख्या की है, को डॉ॰राय चौधरी ने सही ढ़ंग से परिभाषित किया है। उनके अनुसार यह गंद्याश मात्रा इतना ही बताता है कि सिमुक ने जब कण्व वंश का अन्त कर सातवाहन वंश की स्थापना की तो उसने उन शुंग उपशासकों भी समाप्त कर दिया जो कि कण्व वंश के हाथों शुंग शासकों के पराजित होने के बाद भी बचे रह गए थे। अतएव सातवाहन शासकों ने 29 ई0पूर्व (72ई0पूर्व -45वर्ष) में कण्व वंश का अन्त कर स्वयं शासन की बागडोर संभाली। परन्तु इस सब कारकों के होते हुए भी इस सम्भावना से इनकार नही किया जा सकता कि सिमुक जिसने 23वर्षों तक शासन किया वह कुछ समय पहले ही अर्थात पहली शताब्दी ई0पू0 के मध्य में ही सिंहासनारूढ़ हो गया होगा।
 
== सातवाहन वंश के शासक ==
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* === हाल (20 ई0पू0 - 24 ई0पू0)===
हाल सातवाहनों का अगला महत्पूर्ण शासक था। यद्यपि उसने केवल चार वर्ष ही शासन किया तथापि कुछ विषयों उसका शासन काल बहुत महत्वपूर्ण रहा। ऐसा माना जाता है कि यदि आरम्भिक सातवाहन शासकों में शातकर्णी प्रथम योद्धा के रूप में सबसे महान था तो हाल शांतिदूत के रूप में अग्रणी था। हाल साहित्यिक अभिरूचि भी रखता था तथा एक कवि सम्राट के रूप में प्रख्यात हुआ। उसके नाम का उल्लेख पुराण, लीलावती, सप्तशती, अभिधान चिन्तामणि आदि ग्रन्थों में हुआ है। यह माना जाता है कि प्राकृत भाषा में लिखी गाथा सप्तशती अथवा सतसई (सात सौ श्लोकों से पूर्ण) का रचियता हाल ही था। बृहदकथा के लेखक गुणाढ्य भी हाल का समकालीन था तथा कदाचित पैशाची भाषा में लिखी इस पुस्तक की रचना उसने हाल ही के संरक्षण में की थी। कालानतर में बुद्धस्वामी की बृहदकथा‘यलोक-संग्रह, [[क्षेमेंद्र|क्षेमेन्द्र]] की बृहदकथा-मंजरी तथा [[सोमदेव]] की [[कथासरितसागर]] नामक तीन ग्रन्थों की उत्पति [[गुणाढ्य]] की [[बृहदकथा]] से ही हुई।
 
हाल के प्रधान सेनापति विजयानन्द ने अपने स्वामी के आदेशानुसार [[श्रीलंका]] पर आक्रमण कर उसे जीत लिया। इस विजय अभियान से वापिस लौटते समय वह कुछ समय के लिये सप्त गोदावरी भीमम् नामक स्थान पर रूका। वहाँ विजयानन्द ने श्रीलंका के राजा की अति रूपवान पुत्री लीलावती की चर्चा सुनी जिसका वर्णन उसने अपने राजा हाल से किया। हाल ने प्रयास कर लीलावती से विवाह कर लिया। किवदंती है कि हाल ने पूर्वी दक्कन में कुछ सैनिक अभियान किये परन्तु साक्ष्यों के अभाव में अधिकतर विद्वान इसे गलत मानते हैं। यद्यपि हाल तक के सातवाहन शासकों के शासनकाल में राजनैतिक क्षेत्र के अतिरिक्त साहित्यिक तथा आर्थिक क्षेत्रों में भी अत्याधिक विकास हुआ तथा व्यपार-वाणिज्य शहरों के विकास एवं जलपरिवहन की उन्नति हुई जो कि प्रथम शताब्दी ई0 के दूसरे मुण्डलक अथवा पुरिद्रंसेन के शासन काल में अपने उत्कर्ष की पराकाष्ठा पर पहुँच गई, तथापि आने वाले लगभग पचास वर्ष सातवाहन साम्राज्य के लिए बड़े ही कठिन साबित हुए। ऐसा प्रतीत हुआ मानो के [[पश्चिमी क्षत्रप|पश्चिम क्षत्रपों]] के रूप में हुए विदेशी आक्रमण के साथ ही सातवाहन साम्राज्य का पतन होने को है। कुषाण उत्तर-पश्चिम में अपना प्रसार कर रहे थे तथा उनके दबाव में शक तथा पहलाव शासक मध्य तथा पश्चिमी भारत की ओर आकर्षित होकर सातवाहनों से संघर्ष करने को आतुर थे। क्षहरात वंश के पश्चिमी क्षत्रपों ने अपने को पश्चिमा राजपुताना, गुजरात तथा काठियावाड़ में स्थापित कर लिया था। इन शक शासकों ने 35 ई0 से लेकर लगभग 90ई0 तक सातवाहन राज्य पर आक्रमण किये। उन्होंने सातवाहनों से पूर्वी तथा पयिचमा मालवा प्रदेशों को जीता; उत्तरी कोंकण (अपरान्त) उत्तरी महाराष्ट्र, जो कि सातवाहन शक्ति का केन्द्र था तथा बनवासी (वैजयन्ती) तक फैले दक्षिणी महाराष्ट्र पर भी अपना प्रभुत्व जमा लिया। क्षहरात वंश का पहला शासक घूमक था जिसकी जानकारी के स्रोत कुछ सिक्कें है जो कि अधिकांशतः गुजरात काठियावाड़ के तटीय प्रदेश तथा यदाकदा मालवा से पाए हैं। घूमक का उत्तराधिकारी नहपान था जिसकी जानकारी हमें उसके बहुसंख्य सिक्कों पर राजा (अथवा राजन्) की उपाधि धारण की है। वहीं शिलालेखों उसकी उपाधि क्षत्रप तथा महाक्षत्रप मिली। नासिक, कारले तथा जुनार (उत्तरी महाराष्ट्र) के उसके शिलालेख; एसके बहुसंख्य सिक्कें तथा उसके जामाता शक अशवदात के द्वारा उत्तरी तथा दक्षिणी भारत में दिए गए दान सब के सब ये प्रमाणित करते हैं कि नहपान के समय में क्षहरात वंश का साम्राज्य काफी विस्तुत था तथा उसने सातवाहन शासकों से काफी बड़ा प्रदेश छीन कर ही अपने साम्राज्य को इतना विशाल बनाया था। नहपान तथा उसके जामाता शक अशवदत ने मालवा, नर्मदा घाटी, उत्तरी कोंकण, बरार का पश्चिमा भाग एवं और दक्षिणी महाराष्ट्र को जीतकर पश्चिमी दक्कन में सातवाहन शक्ति को ल्रभ्र उखाड़ फैंका। वे सातवाहन राजा जो नहपान के हाथों पराजित हुए कदाचित सुन्दर शातकर्णी, चकोर शातकर्णी तथा शिवसाती थे जिनका कि कार्यकाल बहुत ही छोटा था (इनमें से पहले दो का शासन काल मात्रा डेढ़ वर्ष था) परन्तु यह परिस्थितियां अधिक समय तक नही चली तथा गौतमी पुत्र श्री शातकर्णी के सातवाहन शासक बनते ही इस क्षहरात-सातवाहन संघर्ष में नया मोड़ आया।