"न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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'''मैस्केलीन''' ने १७७४ ई. में एक दूसरा प्रयोग किया। स्कॉटलैंड के पर्थशायर प्रांत में स्थित शीहैलियन (Schiehallian) पर्वत के उत्तर और दक्षिण की ओर की खड़ी ढालों के अत्यंत निकट उसने दो केंद्र स्थापित किए, जो एक ही याम्योत्तर (meridian) पर पड़ते हैं। दोनों के अक्षांशों ४२.९४ सेकंड का अंतर था। उसने एक [[दूरदर्शी]] में एक साहुल (plumb bob) लगाया और दोनों स्थानों से कई नक्षत्रों की याम्योत्तरीय शिरोबिंदु (meridian zenith) दूरियाँ नापीं। यदि पर्वत न होता तो साहुलसूत्र (plumb line) ऊर्ध्वाधर रहता, जिसके परिणामस्वरूप दोनों केंद्रों से नापी गई शिरोबिंदु दूरियों का अंतर ४२.९४ सें० के बराबर आता। किंतु प्रयोग करने पर यह अंतर ५४.२ सें. आया। इससे स्पष्ट था कि पर्वत के आकर्षण के कारण साहुलसूत्र दोनों केंद्रों पर पर्वत की ओर झुक गया। कालांतर में चार्ल्स हटन ने इस परिणाम की सहायता से पर्वत तथा पृथ्वी के घनत्वों में ५ और ९ की निष्पत्ति प्राप्त की। अन्य प्रयोगों द्वारा पर्वत का माध्य घनत्व (mean density) २.५ ज्ञात हुआ, अत: पृथ्वी का माध्य घनत्व ४.५ तथा इसके अनुसार G का मान ७.४ x १०<sup>-८</sup> स्थिर हुआ।
 
'''सर जी. बी. एयरी''' ने १८५४ ई. में [[इंग्लैंड]] के [[साउथशील्डस]] प्रांत में स्थित हार्टन खान में एक अन्य प्रयोग किया था जो वस्तुत: बूगर के प्रयोग का ही संशोधित रूप था। एक ही लोलक को एक खान के ऊ परऊपर तथा तली में दोलन कराकर उसके आवर्त कालों (periods) की परस्पर तुलना की और इस प्रकार खान की गहराई के बराबर भूतत्व के आकर्षण की तुलना संपूर्ण पृथ्वी के आकर्षण से की। इसे इस प्रकार समझा जा सकता है : मान लीजिए पृथ्वी के केंद्र से खान की तली तक भूतत्व का घनत्व D तथा वहाँ से खान के ऊपर तक के भूतत्व का घनत्व d है। यदि खान के ऊपर तथा तली में गुरुत्वाकर्षण की तीव्रता का मान क्रमश: ga और gb हो तो
 
gb = G (4/3) r‍<sup>3</sup> D/r<sup>2</sup> = G (4/3) r D ......... (९)