"माधवाचार्य विद्यारण्य": अवतरणों में अंतर

शुद्ध शब्द वाङ्मय स्थापित किया
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 1:
माधवाचार्य, [[द्वैतवाद]] के प्रवर्तक '''[[मध्वाचार्य|माध्वाचार्य]]''' से भिन्न हैं।
 
----
 
'''माधवाचार्य''' या '''माधव विद्यारण्य''' (१२९६ -- १३८६), [[विजयनगर साम्राज्य]] के संस्थापक [[हरिहर राय प्रथम|हरिहर राया प्रथम]] एवं [[बुक्क राय प्रथम|बुक्का राया प्रथम]] के संरक्षक, सन्त एवं दार्शनिक थे। उन्होने दोनो भाइयों को सन् १३३६ में विजयनगर साम्राज्य की स्थापना में सहायता की। वे विद्या के भण्डार-सरस्वती के वरद पुत्र, महान तपस्वी और अद्भुत प्रतिभावान् थे। [[संस्कृत साहित्य|संस्कृत वाङ्मय]] में इतनी अधिक एवं उनकी इतनी उच्चकोटि की कृतियाँ है कि उन्हें इस युग के [[वेद व्यासवेदव्यास|व्यास]] कहा जाता है। उन्होने [[सर्वदर्शनसंग्रह]] की रचना की जो हिन्दुओं दार्शनिक सम्प्रदायों के दर्शनों का संग्रह है। इसके अलावा उन्होने [[अद्वैत वेदान्त|अद्वैत दर्शन]] के '[[पञ्चदशी|पंचदशी]]' नामक ग्रन्थ की रचना भी की। विद्यारण्य की तुलना में यदि मध्यकाल में दूसरा कोई नाम लिया जा सकता है, तो वह [[गुरु राम दास|समर्थ गुरु रामदास]] का है, जिन्होंने [[शिवाजी|शिवाजी महाराज]] को माध्यम बनाकर इस्लामी साम्राज्य का मुकाबला किया।
 
स्वामी विद्यारण्य का जन्म 11 अप्रैल 1296 को [[तुंगभद्रा नदी]] के तटवर्ती पम्पाक्षेत्र (वर्तमान [[हम्पी]]) के किसी गांव में हुआ था। उनके पिता मायणाचार्य उस समय के [[वेद]] के प्रकांड विद्वान थे। मां श्रीमती देवी भी विदुषी थी। इन्हीं विद्यारण्य के भाई आचार्य [[सायण]] ने चारों वेदों का वह प्रतिष्ठित टीका की थी, जिसे ‘सायणभाष्य’ के नाम से जाना जाता है। विद्यारण्य का बचपन का नाम माधव था। विद्यारण्य का नाम तो 1331 में उन्होंने तब धारण किया, जब उन्होंने संन्यास ग्रहण किया।
 
विद्यारण्य ने हरिहर प्रथम के समय से राजाओं की करीब तीन पीढ़ियों का राजनीतिक व सांस्कृतिक निर्देशन किया। 1372 में करीब 76 वर्ष की आयु में उन्होंने राजनीति से सेवानिवृत्ति ली और [[शृंगेरी|श्रृंगेरी]] वापस पहुंच गये और उसके पीठाधीश्वर बने। इसके करीब 14 वर्ष बाद 1386 में उनका स्वर्गवास हो गया। लेकिन जीवनभर वह भारत देश, समाज व संस्कृति के संरक्षण की चिंता करते रहे। उन्होंने अद्वैत दर्शन से संबंधित ग्रंथों के साथ सामाजिक महत्व के ग्रंथों का भी प्रणयन किया। अपनी पुस्तक ‘प्रायश्चित सुधानिधि’ में उन्होंने हिन्दुओं के पतन के कारणों की भी अपने ढंग से व्याख्या की है। उन्होंने हिन्दुओं की विलासिता को उनके पतन का सबसे बड़ा कारण बताया। नियंत्रणहीन विलासिता का इस्लामी जीवन हिन्दुओं को बहुत आकर्षित कर रहा था। नाचने गाने वाली दुश्चरित्र स्त्रियों व मुस्लिम वेश्याओं के संग का उन्होंने कठोरता से निषेध किया है।
 
विद्यारण्य की प्रारंभिक शिक्षा तो उनके पिता के सान्निध्य में ही हुई थी, लेकिन आगे की शिक्षा के लिए वह [[कांची कामकोटि पीठ]] के आचार्य [[विद्यातीर्थ]] के पास गये थे। इन स्वामी विद्यातीर्थ ने विद्यारण्य को मुस्लिम आक्रमण से देश की [[संस्कृति]] और समाज की रक्षा हेतु नियुक्त किया था। विद्यारण्य ने गुरु का आदेश पाकर पूरा जीवन उसी लक्ष्य की प्राप्ति हेतु समर्पित कर दिया।
पंक्ति 25:
* [[विजयनगर साम्राज्य]]
* [[हरिहर राय प्रथम]]
* [[बुक्क राय प्रथम|बुक्का राय]]
* [[सर्वदर्शनसंग्रह]]
* [[अद्वैत वेदान्त]]