"जॉन स्टूवर्ट मिल": अवतरणों में अंतर

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| caption     = मिल (सन १८७० में)
| birth_date = {{Birth date|1806|05|20|df=y}}
| birth_place = [[Pentonville]], [[इंग्लैण्ड|England]],<br/>[[United Kingdom of Great Britain and Ireland|United Kingdom]]
| death_date = {{Death date and age|1873|5|8|1806|5|20|df=y}}
| death_place = [[Avignon]], [[French Third Republic|France]]
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== परिचय ==
[[File:Mill - Essays on economics and society, 1967 - 5499347.tif |thumb|''Essays on economics and society'', 1967]]
बचपन में कुशाग्र-बुद्धि और प्रतिभाशाली था। [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]], [[अर्थशास्त्र]], [[फ़्रान्सीसी भाषा|फ्रेंच]], [[यूनान|ग्रीक]] तथा [[इतिहास]] का अध्ययन किया। 17 वर्ष की उम्र में [[ईस्ट इण्डिया कम्पनी|ईस्ट इंडिया कंपनी]] की सेवा में प्रविष्ट हुआ और 35 वर्ष तक सेवा करता रहा। स्त्री, श्रीमती टेलर, समाजवादी थीं और मिल को समाजवाद की ओर खींचने में उनका हाथ था। जीवन के प्रथम भाग में शास्त्रीय विचारधारा में आस्था रखता था और प्राचीन आर्थिक परंपरा का समर्थक था। [[एडम स्मिथ]] तथा [[रिकार्डो]] के सिद्धांतों का अध्ययन किया। [[बेथम]] के [[उपयोगितावाद]] से भी प्रभावित हुआ। लगान के क्षेत्र में रिकार्डो उसके चिंतन का आधार बना रहा। व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थक था। आर्थिक समस्याओं के समाधान में उपयोगितावाद के समावेश का पक्षपाती था। उसने स्वतंत्र स्पर्द्धा और स्वतंत्र व्यापार के सिद्धांत को प्रोत्साहन दिया। अपने सिद्धांत की व्याख्या में [[माल्थस]] के जनसंख्या के सिद्धांत का प्रयोग किया। मूल्य निर्धारण के सिद्धांत में सीमांत को महत्वपूर्ण स्थान दिया। संतुलन बिंदु पर मूल्य 'उत्पादन व्यय' के बराबर होता है। शास्त्री-विचारधारा के 'मजदूरीकोष' के सिद्धांत को मानता था। स्वतंत्रस्पर्द्धा और व्यक्तिगत स्वातत्रय का समर्थक होते हुए भी यदि उसने समाजवाद का समर्थन किया तो केवल इसलिये कि पूँजीवाद के अन्याय और दोष स्पष्ट होने लगे थे। साधारण तौर पर वह [[मुक्त व्यापार|अबाध व्यापार]] का समर्थक रहा परंतु आवश्यक अपवादों की ओर भी उसने संकेत किया। साम्यवाद के दोषों को पूँजीवाद के अन्याय के सामने नगण्य मानता था।
 
मिल का महत्व उसके मौलिक विचारों के कारण नहीं बल्कि इसलिये है कि यत्र तत्र बिखरे विचारों को एकत्र कर उनको एक रूप में बाँधने का प्रयास किया। वह शास्त्रीय विचारधारा और समाजवाद के बीच खड़ा रहा किंतु दोनों में कौन श्रेष्ठ है, इस विषय पर वह निश्चयात्मक आदेश न दे सका। अर्थशास्त्र को दार्शनिक रूप देने और उसे व्यापक बनाने का श्रेय मिल को है। 'अर्थशास्त्र के सिद्धांत' (1848) इसका प्रमुख ग्रंथ है।