"तुकोजी होल्कर": अवतरणों में अंतर

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|name = तुकोजी राव होल्कर
|caption = Tukoji Rao Holkar
|title =''महाराज'' ([[इन्दौर|इंदौर]] के शासक) ''
|religion = [[हिन्दू]]
|full name =
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== आरम्भिक समय ==
बाजीराव प्रथम के समय से ही 'शिन्दे' तथा '[[होलकर|होल्कर]]' [[मराठा साम्राज्य]] के दो प्रमुख आधार स्तंभ थे। राणोजी शिंदे एवं [[मल्हारराव होलकर]] ''[[शिवाजी| शिवाजी महाराज]]'' के सर्वप्रमुख सरदारों में से थे, लेकिन इन दोनों परिवारों का भविष्य सामान्य स्थिति वाला नहीं रह पाया। राणोजी शिंदे के सभी उत्तराधिकारी सुयोग्य हुए जबकि मल्हारराव होलकर की पारिवारिक स्थिति दुर्भाग्यपूर्ण हो गयी। उनके पुत्र खंडेराव के दुर्भाग्यपूर्ण अंत के पश्चात अहिल्याबाई होल्कर के स्त्री तथा भक्तिभाव पूर्ण महिला होने से द्वैध शासन स्थापित हो गया।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, [[गोविंद सखाराम सरदेसाई]], शिवलाल अग्रवाल एंड कंपनी, आगरा; द्वितीय संशोधित संस्करण 1972, पृष्ठ-215.</ref> राजधानी में नाम मात्र की शासिका के रूप में अहिल्याबाई होल्कर थी तथा सैनिक कार्यवाहियों के लिए उन्होंने तुकोजी होलकर को मुख्य कार्याधिकारी बनाया था। कोष पर अहिल्याबाई अपना कठोर नियंत्रण रखती थी तथा तुकोजी होलकर कार्यवाहक अधिकारी के रूप में उनकी इच्छाओं तथा आदेशों के पालन के लिए अभियानों एवं अन्य कार्यों का संचालन करता था। अहिल्याबाई भक्ति एवं दान में अधिक व्यस्त रहती थी तथा सामयिक आवश्यकताओं के अनुरूप सेना को उन्नत बनाने पर विशेष ध्यान नहीं दे सकी। तुकोजी होलकर अत्यधिक महत्वाकांक्षी परंतु अविवेकी व्यक्ति था। आरंभ में मराठा अभियानों में वह महाद जी के साथ सहयोगी की तरह रहा। तब तक उसकी स्थिति भी अपेक्षाकृत सुदृढ़ रही। बालक पेशवा माधवराव नारायण की ओर से बड़गाँव तथा तालेगाँव के बीच ब्रिटिश सेना की पराजय, [[रघुनाथराव]] के समर्पण तथा मराठों की विजय में महादजी के साथ तुकोजी होलकर का भी अल्प परंतु संतोषजनक भाग था।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-80.</ref>
 
== अवनति के पथ पर ==
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== पराभव का आरम्भ ==
तुकोजी लगातार पेशवा की आज्ञाओं को भी नजरअंदाज कर रहा था तथा 1792 में शिंदे के विरुद्ध उसने सरदारों को भी उभारा। परिणामस्वरूप महादजी ने उसका सर्वनाश करने का निश्चय किया। 8 अक्टूबर 1792 को महादजी की ओर से गोपाल राव भाऊ ने सुरावली नामक स्थान पर होलकर पर आकस्मिक आक्रमण किया। अनेक सैनिक मारे गए परंतु खुद तुकोजी होलकर बंदी होने से बच गया। यद्यपि बापूजी होलकर तथा पाराशर पंत के प्रयत्न से इस प्रकरण में समझौता हो गया, परंतु [[इन्दौर|इंदौर]] में अहिल्याबाई तथा तुकोजी के उद्धत पुत्र मल्हारराव द्वितीय को यह अपमानजनक लगा। बाहरी दुनिया से अनभिज्ञ होने के कारण अहिल्याबाई ने मल्हारराव के रण में अधिकारपूर्वक जाने देने के उद्धत प्रस्ताव को मंजूरी दे दी। उसने मनचाही सेना तथा धन लेकर अपने पिता के शिविर में पहुँचकर समझौते तथा बापूजी एवं पाराशर पंत के परामर्श का उल्लंघन कर महादजी के बिखरे अश्वारोहियों पर आक्रमण आरंभ कर दिया।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-255.</ref> गोपालराव द्वारा समाचार पाकर महादजी ने आक्रमण का आदेश दे दिया।
 
== लाखेरी के युद्ध में भीषण पराजय ==
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== निराशापूर्ण अन्त ==
उक्त घटना के बाद तुकोजी प्रायः शांत रहा। 1795 में निजाम के विरुद्ध मराठों के खरडा के युद्ध में अत्यंत वृद्धावस्था में उसने भाग लिया था। 1795 ई० में अहिल्याबाई का देहान्त हो जाने पर तुकोजी ने इंदौर का राज्याधिकार ग्रहण किया।<ref>[[हिन्दी विश्वकोश|हिंदी विश्वकोश]], खण्ड-5, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणसी, संस्करण-1965ई०, पृष्ठ-395.</ref> अपनी अंतिम अवस्था में तुकोजी [[पुणे]] में ही रहा। अपने अविनीत पुत्रों तथा विभक्त परिवार का नियंत्रण करने में वह असमर्थ रहा। 15 अगस्त 1797 को पुणे में ही तुकोजी का निधन हो गया।<ref>मराठों का नवीन इतिहास, भाग-3, पूर्ववत्, पृ०-339.</ref>
 
==इन्हें भी देखें==
* [[महादजी शिंदे|महादजी सिंधिया]]
* [[अहिल्याबाई होल्कर]]
* [[मल्हारराव होलकर]]