"न्यूटन का सार्वत्रिक गुरुत्वाकर्षण का सिद्धान्त": अवतरणों में अंतर

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उपर्युक्त नियम को सूत्र रूप में इस प्रकार व्यक्त किया जा सकता है : मान लिया m<sub>1</sub> और m<sub>2</sub> संहति वाले दो पिंड परस्पर d दूरी पर स्थित हैं। उनके बीच कार्य करनेवाले बल F का मान होगा :
 
::; F = G m<sub>1</sub> m<sub>2</sub>/d‍<sup>2</sup> .........................(1)
 
यहाँ '''G''' एक समानुपाती नियतांक है जिसका मान सभी पदार्थों के लिए एक जैसा रहता है। इसे [[गुरुत्वीय स्थिरांक]] (Gravitational Constant) कहते हैं। इस नियतांक की [[विमा]] (dimension) है और आंकिक मान प्रयुक्त इकाई पर निर्भर करता है। सूत्र (१) द्वारा किसी पिंड पर पृथ्वी के कारण लगनेवाले आकर्षण बल की गणना की जा सकती है। मान लीजिए पृथ्वी की संहति M है और इसके धरातल पर m संहति वाला कोई पिंड पड़ा हुआ है। पृथ्वी की संहति यदि उसके केंद्र पर ही संघनित मानी जाए और पृथ्वी का अर्धव्यास r हो तो पृथ्वी द्वारा उस पिंड पर कार्य करनेवाला आकर्षण बल :
 
::; F=G Mm/r‍<sup>2</sup> ..........................(2)
 
[[न्यूटन के गति का दूसरा नियम|न्यूटन के द्वितीय गतिनियम]] के अनुसार किसी पिंड पर लगनेवाला बल उस पिंड की संहति तथा त्वरण के गुणनफल के बराबर होता है। अत: पृथ्वी के आकर्षण के प्रभाव में मुक्त रूप से गिरनेवाले पिंड पर कार्य करनेवाला गुरुत्वाकर्षण बल:
 
::; F=m g
 
जहाँ g उस पिंड का [[गुरुत्वजनित त्वरण]] (acceleration due to gravity) है, अत:
 
::; F/m = g...........................(3)
 
अर्थात g= पिंड की इकाई संहति पर कार्य करनेवाला बल।
पंक्ति 23:
किंतु समीकरण (२) से
 
::; F/m = G M/r<sup>2</sup>..................(4)
 
अतएव गुरुत्वजनित त्वरण '''g''' को बहुधा ‘पृथ्वी’ के गुरुत्वाकर्षण की तीव्रता भी कहते हैं।
पंक्ति 32:
समीकरण (३) और (४) में तुलना करने पर
 
::;g = G M/r<sup>2</sup>
 
किंतु पृथ्वी की मात्रा (पृथ्वी को पूर्णत: गोल मानने पर)
 
::;M = (4/3) p r<sup>3</sup> D
 
जहाँ '''D''' पृथ्वी का माध्य घनत्व (mean density) है।
 
::g = G (4/3) p r<sup>3</sup> D /r<sup>2</sup>= (4/3) G p r D
 
अर्थात्‌ G. D. = 3 g / (4 p r)
पंक्ति 48:
गुरुत्व नियतांक का मान ज्ञात करने के लि, किए जानेवाले वैज्ञानिक प्रयासों को हम तीन कोटियों में विभक्त कर सकते हैं :
 
* (1). पृथ्वी द्वारा किसी पिंड पर ठीक नीचे की ओर लगने वाले गुरुत्वाकर्षण बल की उस पिंड पर किसी भारी संहतिवाले प्राकृतिक पिंड, (जैसे पर्वत आदि) द्वारा लगनेवाले पार्श्विक (lateral) आकर्षण बल के साथ तुलना करके,
 
* (2). पृथ्वी द्वारा किसी पिंड पर लगने वाले आकर्षण बल की किसी अन्य कृत्रिम पिंड द्वारा लगने वाले ऊर्ध्वाधर आर्कषण बल के साथ (किसी तुला द्वारा) तुलना करके और
 
* (3). दो कृत्रिम पिंडों के बीच कार्यरत पारस्परिक आकर्षण बल की गणना करके।
 
== प्रथम कोटि के प्रयासों की समीक्षा ==
पंक्ति 59:
मान लीजिए m संहति का कोई पिंड पृथ्वी द्वारा आकर्षित हो रहा है। स्पष्ट है कि यह आकर्षण बल उस पिंड के भार w के बराबर होगा। अब यदि उस पिंड पर एक पार्श्विक बल भी, किसी अन्य बृहत्काय प्राकृतिक पिंड (जैसे पहाड़ इत्यादि) द्वारा लग रहा हो तो न्यूटन के नियमानुसार पार्श्विक बल
 
:: F = F m m’/ d‍<sup>2</sup>.........................(6)
 
यहाँ m’ उस बृहत्काय प्राकृतिक पिंड की संहति तथा d उसके तथा छोटे पिंड के बीच की दूरी है। यदि पृथ्वी का अर्धव्यास r हो तो
 
:: W = G (4/3) µ r<sup>3</sup> Dm/r<sup>2</sup> = (4/3) mµ r (G.D.) ........... (7)
 
समीकरण (६) और (७) की तुलना करने पर
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G = 4 p2 Id2/mm’ I
 
अन्याअन्य राशियाँ ज्ञात रहने पर G का मान ज्ञात किया जा सकता है।
 
अपने प्रयोग में कैवेंडिश ने बड़ा पिंड १६९ किलोग्राम का, छोटा पिंड ७८० ग्राम तथा निलंबन तार १ मीटर लंबा लिया था। अधिक सटीक परिणाम प्राप्त करने के लिए उसने पहले भारी पिंडों को छोटे पिंडों के दोनों ओर इस प्रकार रखा जैसा चित्र १ (ब) पूर्ण वृत्त द्वारा प्रदर्शित है। इसके बाद बड़े पिडों को दूसरे पार्श्वों में रखा, जैसा बिंदुओं से प्रदर्शित वृत्तों द्वारा दिखाया गया है। दोनों स्थितियों से G का मान ज्ञात कर उसका मध्यमान ले लेने से अधिक शुद्ध मान प्राप्त हुआ। कैवेंडिश द्वारा प्राप्त परिणाम इस प्रकार है :
 
: G = 6.75´1075x10<sup>-8</sup> स. ग. स.cgs इकाईunit और D = 5.45 ग्राम प्रति घन सें. मी.।
 
कैवेंडिश की विधि की दुर्बलताओं का परिहार कर उससे अधिक सटीक परिणाम प्राप्त करने के लिए बेली (Baily, सन्‌ १८४३), शील (Reich, सन्‌ १८५२), कॉर्नू और बेली (Cornu & Baily, सन्‌ १८७८) और बॉयज़ (Boys, सन्‌ १८९५), ने कई प्रयोग किए। बॉयज़ ने यह पता लगाया कि क्वार्टज़ के अत्यंत पतले तंतु बनाए जा सकते हैं और दृढ़ता तथा प्रत्यास्थता संबंधी गुणों में वे फौलाद से भी अधिक श्रेष्ठ होंगे। इसलिए कैवेंडिश के प्रयोग में इनका प्रयोग करने पर कैवेंडिश के उपकरण का अनावश्यक दीर्घ आकार कम किया जा सकता है तथा उसके कारण होनेवाली त्रुटियों का बहुत कुछ निराकरण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त त्रुटियों का बहुत कुछ निराकरण किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त बॉयज़ ने विक्षेप नापने के लिए दीप ऑर मापनी व्यवस्था (lamp and scale arrangement) का अवलंबन किया। बॉयज़ की प्रायोगिक व्यवस्था नीचे दिए चित्र २ (अ) द्वारा समझी जा सकती है।
 
इसमें एक अत्यंतअत्यन्त छोटा (लगभग १" इंच लंबा) आयताकार दर्पण '' डंडी के स्थान पर प्रयुक्त किया गया था। उससे दो छोटे छोटे गोल ‘अ’ और ‘ब’ (संहति लगभग २.६ ग्राम) क्वार्टज के तागों से लटकाए गए थे जिनके बीच ऊ र्ध्वाधर दूरी लगभग ६" थी इन गोलों पर आकर्षण प्रभाव डालनेवाले गोलों अ और ब का अर्धव्यास लगभग ११ सें. मी. तथा संहति लगभग ८.९ कि. ग्रा. थी। इस प्रकार बड़े और छोटे गोलों के बीच पारस्परिक आकर्षण प्रभाव का बहुत कुछ परिहार कर दिया गया था। बड़े गोलों को पहले छोटे गोलों के अगल बगल इस प्रकार रखा गया था जैसा चित्र (ब) में पूर्णवृत्त द्वारा दिखलाया गया है। इससे दर्पण द में एक और विक्षेप हुआ। पुन: बड़े गोलों को बिंदुओं (dots) द्वारा दिखलाई गई स्थितियों में लाया गया जिससे छोटे गोलों पर विपरीत दिशाओं में आकर्षण हुआ और दर्पण इस बार विपरीत ओर विक्षिप्त हुआ। ज्ञातव्य है कि समतल दर्पण में विक्षेप होने पर परावर्तित किरणों में उसका दूना विक्षेप उत्पन्न होता है। यह विक्षेप दीप और मापनी व्यवस्था द्वारा नाप लिया गया। इसके लिए एक मापनी दर्पण से ७ मीटर दूर रखी गई थी और उसी के नीचे कुछ हटकर, दीप रखा गया था।
 
== गुरूत्वजनित त्वरण (गुरूत्व की तीवता) (Acceleration due to gravity) ==
 
मुख्य लेख - '''[[पृथ्वी का गुरुत्व]]'''
 
पृथ्वी के निकट स्थित प्रत्येक पिंड पृथ्वी द्वारा पृथ्वी के केंद्र की ओर आकर्षित होता है। इस आकर्षण बल को पिंड का [[भार]] कहते हैं। यदि किसी पिंड को पृथ्वी के ऊपर ले जाकर छोड़ा जाय और उस पर किसी प्रकार का अन्य बल कार्य न करे तो वह सीधा पृथ्वी की ओर गिरता है और उसका वेग एक नियत क्रम से बढ़ता जाता है। इस प्रकार पृथ्वी के आकर्षण बल के कारण किसी पिंड में उत्पन्न होने वाली वेगवृद्धि या त्वरण को '''गुरूत्वजनित त्वरण''' (Acceleration due to gravity) कहते हैं। इसे अंग्रेजी अक्षर '''g''' द्वारा व्यक्त किया जाता है। ऊपर कहा जा चुका है कि इसे किसी स्थान पर गुरूत्व की तीव्रता भी कहते हैं।
 
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== बाहरी कड़ियाँ ==