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[[Image:Patanjali.jpg|right|thumb|300px|पतंजलि की मूर्ति]]
ये गोनर्द(संभवता गोंडा जिला) के निवासी थे, बाद में वे काशी में बस गए , इनकी माता का नाम गोणिका था ! '''पतंजलि''' [[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]] के रचनाकार है जो हिन्दुओं के छः [[
== जीवन ==
पतंजलि शुंग वंश के शासनकाल में थे | डॉ. भंडारकर ने पतंजलि का समय 158 ई. पू. द बोथलिक ने पतंजलि का समय 200 ईसा पूर्व एवं कीथ ने उनका समय 140 से 150 ईसा पूर्व माना है | उन्होंने पुष्यमित्र शुंग का अश्वमेघ यज्ञ भी संपन्न कराया था । इनका जन्म गोनार्ध में हुआ था | साहित्यिक, पुरातात्विक ,भौगोलिक एवं अन्य साक्ष्यों के आधार पर यह स्थान भोपाल के पास का गांव गोदरमऊ है |
बाद में वे काशी में बस गए | ये व्याकरणाचार्य [[पाणिनि|पाणिनी]] के शिष्य थे। काशीवासी आज भी श्रावण कृष्ण ५, [[नाग पंचमी|नागपंचमी]] को ''छोटे गुरु का, बड़े गुरु का नाग लो भाई नाग लो'' कहकर नाग के चित्र बाँटते हैं क्योंकि पतंजलि को [[शेषनाग]] का [[अवतार]] माना जाता है।
== योगदान ==
पतंजलि महान चिकित्सक थे और इन्हें ही '[[चरक संहिता]]' का प्रणेता माना जाता है। '[[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]]' पतंजलि का महान अवदान है। पतंजलि रसायन विद्या के विशिष्ट आचार्य थे - अभ्रक विंदास, अनेक धातुयोग और लौहशास्त्र इनकी देन है। पतंजलि संभवत: [[पुष्यमित्र शुंग]] (१९५-१४२ ई.पू.) के शासनकाल में थे। [[परमार भोज|राजा भोज]] ने इन्हें तन के साथ मन का भी चिकित्सक कहा है।<ref>Patañjali; James Haughton Woods (transl.) (1914). The Yoga Sutras of Patañjali. Published for Harvard University by Ginn & Co. pp. xiv–xv.</ref>
:'''योगेन चित्तस्य पदेन वाचां मलं शारीरस्य च वैद्यकेन।'''
:'''योऽपाकरोत्तं प्रवरं मुनीनां पतंजलिं प्रांजलिरानतोऽस्मि॥'''
(अर्थात् चित्त-शुद्धि के लिए योग ([[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]]), वाणी-शुद्धि के लिए [[व्याकरण]] ([[महाभाष्य]]) और शरीर-शुद्धि के लिए वैद्यकशास्त्र ([[चरक संहिता|चरकसंहिता]]) देनेवाले मुनिश्रेष्ठ पातंजलि को प्रणाम !)
ई.पू. द्वितीय शताब्दी में '[[महाभाष्य]]' के रचयिता पतंजलि काशी-मण्डल के ही निवासी थे। मुनित्रय की परंपरा में वे अंतिम मुनि थे। [[पाणिनि|पाणिनी]] के पश्चात् पतंजलि सर्वश्रेष्ठ स्थान के अधिकारी पुरुष हैं। उन्होंने पाणिनी व्याकरण के महाभाष्य की रचना कर उसे स्थिरता प्रदान की। वे अलौकिक प्रतिभा के धनी थे। व्याकरण के अतिरिक्त अन्य शास्त्रों पर भी इनका समान रूप से अधिकार था। व्याकरण शास्त्र में उनकी बात को अंतिम प्रमाण समझा जाता है। उन्होंने अपने समय के जनजीवन का पर्याप्त निरीक्षण किया था। अत: महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ होने के साथ-साथ तत्कालीन समाज का [[विश्वज्ञानकोश|विश्वकोश]] भी है। यह तो सभी जानते हैं कि पतंजलि शेषनाग के अवतार थे। द्रविड़ देश के सुकवि रामचन्द्र दीक्षित ने अपने 'पतंजलि चरित' नामक काव्य ग्रंथ में उनके चरित्र के संबंध में कुछ नये तथ्यों की संभावनाओं को व्यक्त किया है। उनके अनुसार [[आदि शंकराचार्य]] के दादागुरु आचार्य गौड़पाद पतंजलि के शिष्य थे किंतु तथ्यों से यह बात पुष्ट नहीं होती है।
प्राचीन [[माधवाचार्य विद्यारण्य|विद्यारण्य स्वामी]] ने अपने ग्रंथ '[[शंकरविजयम्|शंकर दिग्विजय]]' में [[आदि शंकराचार्य]] में गुरु गोविंद पादाचार्य को पतंजलि का रुपांतर माना है। इस प्रकार उनका संबंध [[अद्वैत वेदान्त|अद्वैत वेदांत]] के साथ जुड़ गया।
== काल निर्धारण ==
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==इन्हें भी देखें==
*[[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]]
*[[महाभाष्य]]
*[[चरक संहिता|चरकसंहिता]]
== बाहरी कड़ियाँ ==
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