"खण्डकाव्य": अवतरणों में अंतर

छो 2405:204:B288:3451:0:0:1054:48AC (Talk) के संपादनों को हटाकर के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 3:
प्रबन्धात्मकता [[महाकाव्य]] एवं खण्ड काव्य दोनों में ही रहती है परंतु खण्ड काव्य के कथासूत्र में जीवन की अनेकरुपता नहीं होती। इसलिए इसका कथानक कहानी की भाँति शीघ्रतापूर्वक अन्त की ओर जाता है। महाकाव्य प्रमुख कथा केसाथ अन्य अनेक प्रासंगिक कथायें भी जुड़ी रहती हैं इसलिए इसका कथानक उपन्यास की भाँति धीरे-धीरे फलागम की ओर अग्रसर होता है। खण्डाकाव्य में केवल एक प्रमुख कथा रहती है, प्रासंगिक कथाओं को इसमें स्थान नहीं मिलने पाता है।
 
[[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] साहित्य में इसकी जो एकमात्र परिभाषा [[साहित्य दर्पण]] में उपलब्ध है वह इस प्रकार है-
 
भाषा विभाषा नियमात् काव्यं सर्गसमुत्थितम्।
पंक्ति 9:
खंड काव्यं भवेत् काव्यस्यैक देशानुसारि च।
 
इस परिभाषा के अनुसार किसी भाषा या उपभाषा में सर्गबद्ध एवं एक कथा का निरूपक ऐसा पद्यात्मक ग्रंथ जिसमें सभी संधियां न हों वह खंडकाव्य है। वह [[महाकाव्य]] के केवल एक अंश का ही अनुसरण करता है। तदनुसार [[हिन्दी|हिंदी]] के कतिपय आचार्य खंडकाव्य ऐसे काव्य को मानते हैं जिसकी रचना तो महाकाव्य के ढंग पर की गई हो पर उसमें समग्र जीवन न ग्रहण कर केवल उसका खंड विशेष ही ग्रहण किया गया हो। अर्थात् खंडकाव्य में एक खंड जीवन इस प्रकार व्यक्त किया जाता है जिससे वह प्रस्तुत रचना के रूप में स्वत: प्रतीत हो।
 
वस्तुत: खंडकाव्य एक ऐसा पद्यबद्ध काव्य है जिसके कथानक में एकात्मक अन्विति हो; कथा में एकांगिता (साहित्य दर्पण के शब्दों में एकदेशीयता) हो तथा कथाविन्यास क्रम में आरंभ, विकास, चरम सीमा और निश्चित उद्देश्य में परिणति हो और वह आकार में लघु हो। लघुता के मापदंड के रूप में आठ से कम सर्गों के प्रबंधकाव्य को खंडकाव्य माना जाता है।
पंक्ति 16:
* [[काव्य]]
* [[महाकाव्य]]
* [[मुक्तक|मुक्तक काव्य]]
 
[[श्रेणी:साहित्य]]