"दशनामी सम्प्रदाय": अवतरणों में अंतर

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'''दशनामी''' शब्द [[संन्यास|संन्यासियों]] सरस्वती, गिरि, पुरी, बन,भारती, तीर्थ,सागर,अरण्य,पर्वत और 10वा आश्रम है) के एक संगठन विशेष गोस्वामियों के लिए प्रयुक्त होता है और प्रसिद्ध है कि उसे सर्वप्रथम स्वामी [[आदि शंकराचार्य|शंकराचार्य]] ने चलाया था, किंतु इसका श्रेय कभी-कभी [[स्वामी सुरेश्वराचार्य]] को भी दिया जाता है, जो उनके अनन्तर दक्षिण भारत के [[शृंगेरी शारदा पीठम|शृंगेरी मठ]] के तृतीय आचार्य थे। ("ए हिस्ट्री ऑव दशनामी नागा संन्यासीज़ पृ. 50")
इन दशनामी गोस्वामियों को आद्य शंकराचार्य जी का आध्यात्मिक उत्तराधिकारी भी माना जाता है
 
== परिचय ==
कहते हैं, शंकराचार्य ने अपने मत के प्रचारार्थ [[भारत]]भ्रमण करते समय चार [[मठ|मठों]] की स्थापना की थी जिनमें उक्त शृंगेरी मठ के अतिरिक्त उत्तर में [[जोशीमठ]], पूर्व में [[गोवर्धन मठ]] तथा पश्चिम में [[शारदामठ]] नामों के थे। इन चारों के पृथक्-पृथक् आचार्य क्रमश: हस्तामलक, त्रोटकाचार्य, पद्मपादाचार्य एवं स्वरूपाचार्य बतलाए जाते हैं और इनकी विभिन्न परंपराओं के ही साथ क्रमश: पुरी, भारती एवं सरस्वती, गिरि पर्वत एवं अरण्य तथा तीर्थ एवं आश्रम जैसे उक्त दशनामों के सबंधित होने की भी चर्चा की जाती है। इन चारों में से शृंगेरी मठ का क्षेत्र आंध्र, द्रविड़, कर्णाटक एवं केरल प्रदेशों तक सीमित समझा जाता है, इसका तीर्थस्थान [[रामेश्वरम्रामेश्वरम]] है, इसका वेद [[यजुर्वेद]] है, महावाक्य "[[अहं ब्रह्मास्मि]]" है, गोत्र "भूरिवर" है और इसके ब्रह्मचारी "चैतन्य" कहलाते हैं जहाँ जोशी मठ के क्षेत्र में उत्तर के कुरु, पांचाल, कश्मीर, कंबोज एवं तिब्बत आदि आ जाते हैं, इसका तीर्थस्थान बदरिकाश्रम है, वेद अथर्ववेद है, महावाक्य "[[अयमात्मा ब्रह्म]]" है, गोत्र "आनंदवर" है तथा इसके ब्रह्मचारी भी "आनन्द" कहे जाते हैं। इसी प्रकार गोवर्धनमठ का क्षेत्र भी अंग, वंग, कलिंग, मगध, उत्कल एवं बर्बर तक विस्तृत है, इसका तीर्थस्थान पुरी है, इसका वेद ऋग्वेद है, महावाक्य "[[प्रज्ञानं ब्रह्म]]" है, गोत्र "भोगवर" है तथा इसके ब्रह्मचारी "प्रकाश" कहे जाते हैं जहाँ शारदामठ का क्षेत्र सिंधु, सौवीर, सौराष्ट्र एवं महाराष्ट्र तक चला जाता है। इसका वेद सामवेद है, महावाक्य "[[तत्त्वमसि|तत्वमसि]]" है, गोत्र "कीटवर" है तथा इसके ब्रह्मचारी भी "स्वरूप" कहे जाते हैं जो दूसरों से सर्वथा भिन्न है।
 
दशनामियों की 52 गढ़ियाँ भी प्रसिद्ध हैं जिनमें से 27 गिरियों की, 16 पुरियों की, 4 भारतीयों की, 4 वनों की तथा 1 लामा की कही जाती है और तीर्थों, आश्रमों, सरस्वतियों तथा भारतीयों में से आधे अर्थात् साढ़े तीन "दंडी" और शेष छह "गोसाई" कहे जाते हैं।
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== उद्देश्य ==
दशनामी संन्यासियों का उद्देश्य [[धर्म]]प्रचार के अतिरिक्त धर्मरक्षा का भी जान पड़ता है। इस दूसरे उद्देश्य की सिद्धि के लिए उन्होंने अपना संगठन विभिन्न [[अखाड़ा|अखाड़ों]] के रूप में भी किया है। ऐसे अखाड़ों में से "जूना अखाड़ा" ([[काशी]]) के इष्टदेव [[कालभैरव]] अथवा कभी-कभी [[दत्तात्रेय]] भी समझे जाते हैं और "आवाहन" जैसे एकाध अन्य अखाड़े भी उसी से संबंधित हैं। इसी प्रकार "निरंजनी अखाड़ा" ([[इलाहाबाद|प्रयाग]]) के इष्टदेव [[कार्तिकेय]] प्रसिद्ध हैं और इसकी भी "आनंद" जैसी कई शाखाएँ पाई जाती हैं। "महानिर्वाणी अखाड़ा" ([[झारखण्ड|झारखंड]]) की विशेष प्रसिद्धि इस कारण है कि इसने ज्ञानवापी युद्ध [[औरंगज़ेब|औरंगजेब]] के विरुद्ध ठान दिया था। इसके इष्टदेव [[कपिल|कपिल मुनि]] माने जाते हैं तथा इसके साथ अटल जैसे एकाध अन्य अखाड़ों का भी संबंध जोड़ा जाता है। इन अखाड़ों में शस्त्राभ्यास कराने की व्यवस्था रही है और इनमें प्रशिक्षित होकर [[नागा|नागाओं]] ने अनेक अवसरों पर काम किया है। इनके प्रमुख महंत को "मंडलेश्वर" कहा जाता है जिसके नेतृत्व में ये विशिष्ट धार्मिक पर्वो के समय एक साथ स्नान भी करते हैं तथा इस बात के लिए नियम निर्दिष्ट है कि इनकी शोभायात्रा का क्रम क्या और किस रूप में रहा करे।
 
दशनामियों के जैसे अन्य नागाओं के कुछ उदाहरण हमें [[दादू पंथ]] आदि के धार्मिक संगठनों में भी मिलते हैं जिनके लोगों ने, [[जयपुर]] जैसी कतिपय रियासतों का संरक्षण पाकर, उन्हें समय समय पर सहायता पहुँचाई हैं। दशनामियों में कुछ गृहस्थ भी होते हैं जिन्हें "गोसाई" कहते हैं।
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* सरस्वती, तीर्थ, अरण्य, भारती - [[शृंगेरि शारदा पीठम्]]
* तीर्थ, आश्रम - [[द्वारका पीठ]]
* गिरि, पर्वत, सागर - [[जोशीमठ|ज्योतिर्मठ]]
* वन, पुरी, अरण्य - [[गोवर्धनपुरी मठ]]