"पांडेय बेचन शर्मा 'उग्र'": अवतरणों में अंतर

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'''पांडेय बेचन शर्मा "उग्र"''' (१९०० - १९६७) [[हिन्दी]] के साहित्यकार एवं [[पत्रकार]] थे।
 
का जन्म [[उत्तर प्रदेश]] के [[मिर्ज़ापुर|मिर्जापुर]] जनपद के अंतर्गत [[चुनार]] नामक कसबे में 1900 ई. को हुआ था। इनके पिता का नाम वैद्यनाथ पांडेय था। ये सरयूपारीण ब्राह्मण थे। ये अत्यंत अभावग्रस्त परिवार में उत्पन्न हुए थे। अत: पाठशालीय शिक्षा भी इन्हें व्यवस्थित रूप से नहीं मिल सकी। अभाव के कारण इन्हें बचपन में राम-लीला में काम करना पड़ा था। ये अभिनय कला में बड़े कुशल थे। बाद में काशी के [[सेंट्रल हिंदू स्कूल]] से आठवीं कक्षा तक शिक्षा पाई, फिर पढाई का क्रम टूट गया। साहित्य के प्रति इनका प्रगाढ़ प्रेम [[लाला भगवानदीन]] के सामीप्य में आने पर हुआ। इन्होंने साहित्य के विभिन्न अंगों का गंभीर अध्ययन किया। प्रतिभा इनमें ईश्वरप्रदत्त थी। ये बचपन से ही काव्यरचना करने लगे थे। अपनी किशोर वय में ही इन्होंने [[प्रियप्रवास]] की शैली में "ध्रुवचरित्" नामक [[प्रबंध काव्य]] की रचना कर डाली थी।
 
मौलिक साहित्य की सर्जना में ये आजीवन लगे रहे। इन्होंने काव्य, कहानी, नाटक, उपन्यास आदि क्षेत्रों में समान अधिकार के साथ श्रेष्ठ कृतियाँ प्रस्तुत की। [[पत्रकारिता]] के क्षेत्र में भी उग्र जी ने सच्चे पत्रकार का आदर्श प्रस्तुत किया। वे असत्य से कभी नहीं डरे, उन्होंने सत्य का सदैव स्वागत किया, भले ही इसके लिए उनहें कष्ट झेलने पड़े। पहले [[काशी]] के दैनिक "[[आज]]" में "ऊटपटाँग" शीर्षक से व्यंग्यात्मक लेख लिखा करते थे और अपना नाम रखा था "अष्टावक्र"। फिर "भूत" नामक हास्य-व्यंग्य-प्रधान पत्र निकाला। [[गोरखपुर]] से प्रकाशित होनेवाले "स्वदेश" पत्र के "दशहरा" अंक का संपादन इन्होंने ही किया था। तदनंतर [[कोलकाता|कलकत्ता]] से प्रकाशित होनेवाले "मतवाला" पत्र में काम किया। "मतवाला" ने ही इन्हें पूर्ण रूप से साहित्यिक बना दिया। फरवरी, सन् 1938 ई. में इन्होंने [[काशी]] से "उग्र" नामक साप्ताहिक पत्र निकाला। इसके कुल सात अंक ही प्रकाशित हुए, फिर यह बंद हो गया। [[इन्दौर|इंदौर]] से निकलनेवाली "वीणा" नामक मासिक पत्रिका में इन्होंने सहायक संपादक का काम भी कुछ दिनों तक किया था। वहाँ से हटने पर "विक्रम" नामक मासिक पत्र इन्होंने पं॰ [[सूर्य नारायण व्यास|सूर्यनारायण व्यास]] के सहयोग से निकाला। पाँच अंक प्रकाशित होने के बाद ये उससे भी अलग हो गए। इसी प्रकार इन्होंने "संग्राम", "हिंदी पंच" आदि कई अन्य पत्रों का संपादन किया। किंतु अपने उग्र स्वभाव के कारण कहीं भी अधिक दिनों तक ये टिक न सके। इसमें संदेह नहीं, उग्र जी सफल पत्रकार थे। ये सामाजिक विषमताओं से आजीवन संघर्ष करते रहे। ये विशुद्ध साहित्यजीवी थे और साहित्य के लिए ही जीते रहे। सन. 1967 में [[दिल्ली]] में इनका देहावसान हो गया।
 
== कृतियाँ ==
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हिन्दी मे सर्वप्रथम आत्मकथा :- [[अपनी खबर]]
;नाटक
[[महात्मा ईसा]] , [[चुम्बन|चुंबन]] , [[चार बेचारे]] , गंगा का बेटा, आवास, अन्नदाता माधव महाराज महान्।
 
;उपन्यास
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; कहानी
[[भुनगा]], [[उसकी माँ]], [[चाँदनी (1989 फ़िल्म)|चाँदनी]], कुल 97 कहानियाँ।
 
;काव्य
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गालिब : उग्र
 
उग्र जी की मित्रमंडली में [[सूर्यकान्त त्रिपाठी 'निराला'|सूर्यकांत त्रिपाठी 'निराला']], [[जयशंकर प्रसाद]], [[शिवपूजन सहाय]], [[विनोदशंकर व्यास]] आदि प्रसिद्ध साहित्यकार थे। दो महाकवि उग्र जी के विशेष प्रिय थे : [[तुलसीदास|गोस्वामी तुलसीदास]] तथा [[उर्दू भाषा|उर्दू]] के प्रसिद्ध शायर [[असदुल्ला खाँ गालिब]]। इनकी रचनाओं के उद्धरण उग्र जी ने अपने लेखों में बहुश: दिए हैं।
 
== इन्हें भी देखिये ==