"चंदबरदाई": अवतरणों में अंतर

→‎जीवनी: अधुरी लाइन को इतिहास को मध्य नजर रखते हुए पूर्ण किया। चुंकि मैं महाकवि चंद वरदाई कुल का वंशज हूं।
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
पंक्ति 1:
[[चित्र:Chandbardai.jpg|thumb|right|चंदबरदाई का चित्र हिन्दी साहित्यकार चित्रावली के सौजन्य से]]
'''चंदबरदाई''' ([[जन्म]]: संवत 1205 तदनुसार 1168 ई०<ref>‘हिन्दी साहित्यकार चित्रावली’, प्रकाशक एवं मुद्रक: हिन्दी बुक सेण्टर, नई दिल्ली</ref> [[लाहौर]] वर्तमान में पाकिस्तान में - [[मृत्यु]]: संवत 1249 तदनुसार 1192 ई० [[गज़नी]])चंदबरदाई का जन्म [[लाहौर]] में हुआ था| ये महाकवि चंडीसा राव जाति के कुलआधी गौत्र से थे । हिन्दी साहित्य के वीर गाथा कालीन कवि तथा [[पृथ्वीराज चौहान]] के मित्र थे। उन्होंने अपने मित्र का अन्तिम क्षण तक साथ दिया।
 
== जीवनी ==
चंदबरदाई का जन्म [[लाहौर]] में हुआ था| ये महाकवि चंडीसा राव जाति के कुलआधी गौत्र से थे । उनके पूर्वजों को लाहौर की गद्दी मिलने से राव राजा की पदमी मिली। इससे पूर्व में भट्ट (भट्ट संस्कृत शब्द है जिसका अर्थ योद्धा और ऋषि होता है।) नाम से जाना जाता था।
वह [[अजमेर]]-[[दिल्ली]] के सुविख्यात [[हिंदू]] नरेश पृथ्वीराज का सम्माननीय सखा, सामंत, राजकवि और सहयोगी रहे थे। इससे उनका अधिकांश जीवन महाराजा [[पृथ्वीराज चौहान]] के साथ दिल्ली में बीता था। वे राजधानी और युद्ध क्षेत्र सब जगह पृथ्वीराज के साथ रहे थे। उनकी विद्यमानता का काल 13 वीं सदी है। चंदवरदाई का प्रसिद्ध ग्रंथ "[[पृथ्वीराजरासो]]" है, इसकी भाषा को भाषा-शास्त्रियों ने पिंगल कहा है, जो [[राजस्थान]] में [[ब्रजभाषा]] का पर्याय है। इसलिए चंदबरदाई को ब्रजभाषा [[हिन्दी]] का प्रथम महाकवि माना जाता है। 'रासो' की रचना महाराज पृथ्वीराज के युद्ध-वर्णन के लिए हुई है। इसमें उनके वीरतापूर्ण युद्धों और प्रेम-प्रसंगों का कथन है। अत: इसमें वीर और श्रृंगार दो ही रस हैं। चंदबरदाई ने इस ग्रंथ की रचना प्रत्यक्षदर्शी की भाँति की है लेकिन शिलालेख प्रमाण से ये स्पष्ट होता है कि इस रचना को पूर्ण करने वाला कोई अज्ञात कवि है जो चंद और पृथ्वीराज के अन्तिम क्षण का वर्णन कर इस रचना को पूर्ण करता है।