"विक्रम संवत": अवतरणों में अंतर

छो 106.192.142.195 (Talk) के संपादनों को हटाकर Singhajitesh07 के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 1:
'''विक्रम संवत्''' एक प्राचीन [[हिन्दू पंचांग|हिन्दू कालगणना प्रणाली]] है जो भारतीय उपमहाद्वीप्प में प्रचलित रही है। यह [[भारत]] का सास्कृतिक आधिकारिक पञ्चांग है। [[भारत]] में यह अनेकों राज्यों में प्रचलित पारम्परिक पञ्चाङ्ग है। इसमें चान्द्र मास एवं सौर नाक्षत्र वर्ष (solar sidereal years) का उपयोग किया जाता है। इसका प्रणेता सम्राट [[चन्रगुप्त द्वितीय|विक्रमादित्य]] को माना जाता है। कुछ आरम्भिक [[शिलालेखअभिलेख|शिलालेखों]] में ये वर्ष 'कृत' के नाम से आये हैं। ८वीं एवं ९वीं शती से विक्रम संवत का नाम विशिष्ट रूप से मिलता है। संस्कृत के ज्योतिष शास्त्रीय ग्रंथों में यह [[शक संवत]] से भिन्नता प्रदर्शित करने के लिए यह सामान्यतः केवल 'संवत' नाम से प्रयोग किया गया है।
 
यह संवत 57 ई.पू. आरम्भ होती है (विक्रमी संवत = ईस्वी सन + 57) । इस संवत का आरम्भ [[गुजरात]] में [[कार्तिक]] शुक्ल [[प्रतिपदा]] से और उत्तरी भारत में [[चैत्र]] कृष्ण प्रतिपदा से माना जाता है। बारह महीने का एक वर्ष और सात दिन का एक सप्ताह रखने का प्रचलन विक्रम संवत से ही शुरू हुआ। महीने का हिसाब [[सूर्य]] व [[चन्द्रमा|चंद्रमा]] की गति पर रखा जाता है। यह बारह [[राशिराशियाँ]]याँ बारह सौर मास हैं। जिस दिन सूर्य जिस [[राशियाँ|राशि]] में प्रवेश करता है उसी दिन की संक्रांति होती है। [[पूर्णिमा]] के दिन, चंद्रमा जिस [[नक्षत्र]] में होता है, उसी आधार पर [[मास|महीनों]] का नामकरण हुआ है। चंद्र वर्ष, सौर वर्ष से 11 दिन 3 घाटी 48 पल छोटा है, इसीलिए प्रत्येक 3 वर्ष में इसमें 1 महीना जोड़ दिया जाता है ([[अधिक मास|अधिमास]], देखें)।
 
जिस दिन नव संवत का आरम्भ होता है, उस दिन के वार के अनुसार वर्ष के राजा का निर्धारण होता है। उदाहरण के लिए, 18-मार्च-2018 को विक्रम संवत 2075 का प्रथम दिन था। 18 मार्च को रविवार होने से वर्ष का राजा [[सूर्य]] होगा।
पंक्ति 8:
'विक्रम संवत' के उद्भव एवं प्रयोग के विषय में विद्वानों में मतभेद है। मान्यता है कि 'विक्रमादित्य' नामक किसी राजा ने ईशापूर्व 57 में इसका प्रचलन आरम्भ कराया था। कुछ लोग ईसवी सन 78 और कुछ लोग ईसवी सन 544 में इसका प्रारम्भ मानते हैं।
 
फ़ारसी ग्रंथ 'कलितौ दिमनः' में [[पञ्चतन्त्र|पंचतंत्र]] का एक पद्य 'शशिदिवाकरयोर्ग्रहपीडनम्श' का भाव उद्धृत है। विद्वानों ने सामान्यतः 'कृत संवत' को 'विक्रम संवत' का पूर्ववर्ती माना है। किन्तु 'कृत' शब्द के प्रयोग की व्याख्या सन्तोषजनक नहीं की जा सकी है। कुछ शिलालेखों में [[मावल-गण] का संवत उल्लिखित है, जैसे- [[नरवर्मा]] का [[मन्दसौर शिलालेख]]। 'कृत' एवं 'मालव' संवत एक ही कहे गए हैं, क्योंकि दोनों पूर्वी [[राजस्थान]] एवं पश्चिमी [[मालवा]] में प्रयोग में लाये गये हैं। कृत के 282 एवं 295 वर्ष तो मिलते हैं, किन्तु मालव संवत के इतने प्राचीन शिलालेख नहीं मिलते। यह भी सम्भव है कि कृत नाम पुराना है और जब मालवों ने उसे अपना लिया तो वह 'मालव-गणाम्नात' या 'मालव-गण-स्थिति' के नाम से पुकारा जाने लगा। किन्तु यह कहा जा सकता है कि यदि 'कृत' एवं 'मालव' दोनों बाद में आने वाले विक्रम संवत की ओर ही संकेत करते हैं, तो दोनों एक साथ ही लगभग एक सौ वर्षों तक प्रयोग में आते रहे, क्योंकि हमें 480 कृत वर्ष एवं 461 मालव वर्ष प्राप्त होते हैं।
 
=== महीनों के नाम ===
पंक्ति 19:
| चित्रा, स्वाति
|-
| [[वैशाख|बैशाख]]
| विशाखा, अनुराधा
|-
| [[ज्येष्ठ (मास)|जेष्ठ]]
| जेष्ठा, मूल
|-
पंक्ति 34:
| पूर्वाभाद्र, उत्तरभाद्र
|-
| [[अश्विनीकुमार (पौराणिक पात्र)|आश्विन]]
| अश्विन, रेवती, भरणी
|-
पंक्ति 57:
=== इन्हें भी देखें ===
;अन्य संवत
* [[प्राचीन सप्तर्षि संवत|प्राचीन सप्तर्षि]] ६६७६ ईपू
* [[कलि संवत|कलियुग संवत]] ३१०२ ईपू
* [[सप्तर्षि संवत]] ३०७६ ईपू
* [[वीर निर्वाण संवत]]