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'''म्यूचुअल फंड''' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]]:''Mutual fund'') जिसे [[हिन्दी]] में '''पारस्परिक निधि''' कहते हैं, किन्तु इसका [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेज़ी]] नाम अधिक प्रचलित है, एक प्रकार का सामुहिक [[निवेश]] होता है। निवेशकों के समूह मिल कर [[स्टॉक]], अल्प अविधि के निवेश या अन्य प्रतिभूतियों (सेक्यूरीटीज) मे निवेश करते है।। [[यूटीआई एमएफ|यूटीआई एएमसी]] भारत की सबसे पुरानी म्यूचुअल फंड कंपनी है।<ref name="नवभारत ">[http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/5110648.cms म्यूचुअल फंड कंपनियां कौड़ी के भाव बेच रही हैं हिस्सा]।[[नवभारत टाइम्स]]-हिन्दी।[[९ अक्टूबर]], [[२००९]]</ref> म्यूचुअल फंड मे एक फंड प्रबंधक होता है जो फंड के निवेशों को निर्धारित करता है और लाभ और हानि का हिसाब रखता है। इस प्रकार हुए फायदे-नुकसान को निवेशको मे बाँट दिया जाता है। स्टॉक बाजार की पर्याप्त जानकारी न होने पर भी निवेश की इच्छा रखने वालों के लिए एक सुलभ मार्ग म्यूचुअल फंड होता है।<ref name="इकोनॉमिक ">[http://hindi.economictimes.indiatimes.com/articleshow/4795868.cms म्यूचुअल फंड में निवेश की बारीकियां जानें]।[[द इकॉनोमिक टाइम्स|इकोनॉमिक टाइम्स]]।[[२० जुलाई]], [[२००९]]</ref><ref name="हिन्दुस्तान २">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/mantra/67-76-76573.html म्यूचुअल फंड जोखिम]।[[हिन्दुस्तान लाइव]]।[[१५ अक्टूबर]], [[२००९]]</ref> म्यूचुअल फंड संचालक (कंपनी) सभी निवेशकों के निवेश राशि को लेकर इकट्ठे करती है और उनसे कुछ सुविधा शुल्क भी लेती है। फिर इस राशि को उनके लिए बाजार में निवेश करती है। इनमें में निवेश करने का फायदा यह है कि निवेशक को इस बात की चिंता करने की जरूरत नहीं होती कि आप कब शेयर खरीदें या बेचें, क्योंकि यह चिंता फंड मैनेजर की होती है। वही निवेशक के निवेश का रखरखाव करने वाला होता है। एक दूसरा लाभ ये भी होता है, कि छोटे निवेशक बहुत कम राशि जैसे १०० रु.प्रतिमाह तक निवेश कर सकते हैं। ऐसे में उन्हें सिस्टेमेटिक इनवेस्टमेंट प्लान लेना होता है, जिसमें बैंक से ये राशि मासिक सीधे फंड में स्थानांतरित होती रहती है।<ref name="हिन्दुस्तान २"/><ref name="एसआईपी">[http://hindi.utimf.com/product_services/value_added_services/sip.aspx सिस्टमेटिक इन्वेस्टमेन्ट प्लान]।[[यूटीआई एमएफ]] पर</ref> [https://www.couponinindia.in/]
 
म्यूचुअल फंड के शेयर की कीमत ''नेट ऐसेट वैल्यु'' या एनएवी (''NAV'') कहलाती है। इसकी गणना के लिए फंड के कुल मूल्य को निवेशको द्वारा खरीदे गए कुल शेयरो की संख्या से भाग दिया जाता है।<ref name="हिन्दुस्तान">[http://www.livehindustan.com/news/tayaarinews/gyan/67-75-79815.html म्यूचुअल फंड]।[[हिन्दुस्तान लाइव]]।[[६ नवम्बर|६ नवंबर]], [[२००९]]</ref>
 
== प्रकार ==
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== म्युच्युअल फंड का गठन कैसे किया जाता है? ==
म्युच्युअल फंड का गठन एक ट्रस्ट के रूप में किया जाता है जो स्पांसर (प्रायोजक), ट्रस्टी, एसेट मैनेजमेंट कंपनी (एएमसी) और कस्टोडियन के अधीन होता है। ट्रस्ट की स्थापना एक या उससे अधिक स्पांसर द्वारा की जाती है। कंपनी में जिस तरह प्रमोटर होते हैं उसी तरह म्युच्युअल फंड में प्रायोजक होते हैं। म्युच्युअल फंड के ट्रस्टी लोग निवेशकों के लाभार्थ फंड की प्रापर्टी धारण [http://shopghaat.com कर] रखते हैं। सेबी द्वारा मान्यता प्राप्त [[एसेट मैनेजमेंट कंपनी]] (एएमसी) विभिन सिक्युरिटीज में पूंजी निवेश द्वारा धन का प्रशासन करती है। [[भारतीय प्रतिभूति और विनिमय बोर्ड|सेबी]] द्वारा मान्य कस्टोडियन विविध स्कीमों की सिक्युरिटीज अपने कब्जे में रखता है। एएमसी पर सर्वसामान्य देखरेख और नियंत्रण की सत्ता ट्रस्टियों की होती है। वे फंड के कार्य का संचालन करते हैं और सेबी के नियमों का पालन हो, यह देखते हैं। सेबी के नियमानुसार ट्रस्टी कंपनी के डाइरेक्टर अथवा ट्रस्टी मंडल के दो तिहाई सदस्य स्वतंत्र होने चाहिए ताकि वे स्पांसर के साथ जुडे न हों। इसके अलावा एएमसी के 50 प्रतिशत डाइरेक्टर स्वतंत्र होने चाहिए। सभी म्युच्युअल फंडो को कोई भी स्कीम खोलने से पहले सेबी का रजिस्ट्रेशन प्राप्त करना पडता है।
 
== भारत में म्यूचुअल फंड ==
बाजार में कोई भी फंड हाउस जब कोई नई योजना निकालता है, तब इससे जुड़े सभी नियमों, शर्त और दूसरी बातों की जानकारी सिक्योरिटीज एंड एक्सचेंज बोर्ड ऑफ इंडिया (सेबी) को अनिवार्य रूप से उपलब्ध कराता है।<ref name="गिरधर">[http://girdher.wordpress.com/2007/11/12/%E0%A4%AE%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%9A%E0%A5%81%E0%A4%85%E0%A4%B2-%E0%A4%AB%E0%A4%82%E0%A4%A1-%E0%A4%AA%E0%A4%A2%E0%A4%BC-%E0%A4%B8%E0%A4%AE%E0%A4%9D%E0%A4%95%E0%A4%B0-%E0%A4%B2%E0%A4%97/ म्यूचुअल फंड: पढ़-समझकर लगाएं पैसा]। गिरधर वेबलॉग। सुशील गिरधर।[[१२ नवम्बर|१२ नवंबर]], [[२००९]]</ref> यह जानकारी जिस दस्तावेज के द्वारा सेबी को दी जाती है, उसे 'स्कीम का ऑफर डॉक्युमेंट' कहते हैं। इसमें इनवेस्टमेंट का उद्देश्य, जोखिम कारक, लोड व अन्य व्यय आदि से जुड़ी पर्याप्त जानकारियां दी गई होती हैं। म्यूचुअल फंड संचालन करने में अडवाइजरी, कस्टोडियल, ऑडिट ट्रांसफर एजेंट व ट्रस्टी फीस और एजेंट कमिशन आदि कई मदों में व्यय होता है, ऑफर डॉक्युमेंट में इन मदों में किए जाने वाले व्यय के बारे में पूरी दी गई होती है। इसके अलावा, यह भी बताया गया होता है कि स्कीम में निवेश करने पर निवेशक को कौन-कौन से शुल्क देने होंगे, जैसे एंट्री लोड, एग्जिट लोड, स्विचिंग चाजेर्ज, रेकरिंग एक्सपेंस आदि। जिस योजना में खर्चे कम आते हों, फंड हाउस के पास [http://naukriserver.com निवेशक] के लिए रकम अधिक होगी और इससे रिटर्न भी अधिक मिलने की उम्मीद बनेगी। ऐसी योजना निवेशकों के लिए अधिक लाभदायक होती हैं। किसी भी योजना के तहत ६५ प्रतिशत से अधिक रकम यदि इक्विटी में लगाई जाने वाली है तो ऐसी योजना को इक्विटी योजना कहा जाता है। यदि कंपनी इक्विटी व ऋण (''डेट'') में बराबर-बराबर रकम निवेश करने जा रही है, तो ऐसी योजना ''बैलेंस्ड स्कीम'' के अंतर्गत आती है। बैलेंस्ड स्कीम की तुलना में इक्विटी स्कीम अधिक जोखिमकारी होती हैं।
 
भारत मे २०१० तक म्यूचुअल फंड में निवेश हेतु बिचौलियों की भूमिका समाप्त हो जायेगी। [[नेशनल स्टॉक एक्सचेंज]] यानी एनएसई और एनएसडीएल मिलकर एक ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म विकसित कर रहे हैं, जिसके जरिए म्यूचुअल फंड के यूनिट सीधे खरीदे या बेचे जा सकेंगे। एकाधिकार से बचने के लिए [[एसोसिएशन ऑफ म्यूचुअल फंड्स इन इंडिया]] (एम्फी) ने बीएसई की अंग सेंट्रल डिपॉजिटरी सर्विसेज और रजिस्ट्रार सीएएमएस-कार्वी को इसी तरह का प्लेटफॉर्म तैयार करने के लिए कहा है।