"लालबहादुर शास्त्री": अवतरणों में अंतर

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|image = 1736 Lal Bahadur Shastri cropped.jpg
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|office = [[भारत]] के [[भारत केका प्रधानमन्त्री|दूसरे प्रधानमंत्री]]
|president = [[सर्वेपल्लि राधाकृष्णन|सर्वपल्ली राधाकृष्णन]]
|term_start = ९ जून १९६४
|term_end = ११ जनवरी १९६६
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|term_start3 = ४ अप्रैल १९६१
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|predecessor3 = [[गोविन्द बल्लभ पन्त|गोविन्द वल्लभ पन्त]]
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|birth_place = [[मुग़लसराय|मुगलसराय]], [[अब पंडित दीन दयाल उपाध्याय]] [[ब्रिटिश भारत के प्रेसीडेंसी और प्रांत|ब्रिटिश भारत]]
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}}
 
''' लालबहादुर शास्त्री''' ([[जन्म]]: 2 अक्टूबर 1904 [[मुगलसरायमुग़लसराय|मुगलसराय (वाराणसी)]] [[मृत्यु]]: 11 जनवरी 1966 [[ताशकन्द|ताशकन्द (सोवियत संघ रूस)]]), [[भारत]] के दूसरे प्रधानमन्त्री थे। वह [[९ जून|9 जून]] [[१९६४|1964]] से [[११ जनवरी|11 जनवरी]] [[१९६६|1966]] को अपनी मृत्यु तक लगभग अठारह महीने [[भारत का प्रधानमन्त्री|भारत के प्रधानमन्त्री]] रहे। इस प्रमुख पद पर उनका कार्यकाल अद्वितीय रहा।शास्त्री जी ने काशी विद्यापीठ से शास्त्री की उपाधि प्राप्त की।
 
भारत की स्वतन्त्रता के पश्चात शास्त्रीजी को [[उत्तर प्रदेश]] के संसदीय सचिव के रूप में नियुक्त किया गया था। [[गोविन्द बल्लभ पन्त|गोविंद बल्लभ पंत]] के मन्त्रिमण्डल में उन्हें पुलिस एवं परिवहन मन्त्रालय सौंपा गया। परिवहन मन्त्री के कार्यकाल में उन्होंने प्रथम बार महिला संवाहकों (कण्डक्टर्स) की नियुक्ति की थी। पुलिस मन्त्री होने के बाद उन्होंने भीड़ को नियन्त्रण में रखने के लिये लाठी की जगह पानी की बौछार का प्रयोग प्रारम्भ कराया। [[१९५१|1951]] में, जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में वह अखिल भारत काँग्रेस कमेटी के महासचिव नियुक्त किये गये। उन्होंने [[१९५२|1952]], [[१९५७|1957]] व [[१९६२|1962]] के चुनावों में कांग्रेस पार्टी को भारी बहुमत से जिताने के लिये बहुत परिश्रम किया।
 
[[जवाहरलाल नेहरू]] का उनके प्रधानमन्त्री के कार्यकाल के दौरान [[२७ मई|27 मई]], [[१९६४|1964]] को देहावसान हो जाने के बाद साफ सुथरी छवि के कारण शास्त्रीजी को 1964 में देश का प्रधानमन्त्री बनाया गया। उन्होंने [[९ जून|9 जून]] 1964 को भारत के प्रधान मन्त्री का पद भार ग्रहण किया।
 
उनके शासनकाल में 1965 का [[भारत पाकिस्तान युद्ध|भारत पाक युद्ध]] शुरू हो गया। इससे तीन वर्ष पूर्व [[चीन]] का युद्ध [[भारत]] हार चुका था। शास्त्रीजी ने अप्रत्याशित रूप से हुए इस युद्ध में नेहरू के मुकाबले राष्ट्र को उत्तम नेतृत्व प्रदान किया और [[पाकिस्तान]] को करारी शिकस्त दी। इसकी कल्पना पाकिस्तान ने कभी सपने में भी नहीं की थी।
 
[[ताशकन्द]] में पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब ख़ान के साथ युद्ध समाप्त करने के समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही रहस्यमय परिस्थितियों में उनकी मृत्यु हो गयी।
 
उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये मरणोपरान्त [[भारत रत्‍न|भारत रत्न]] से सम्मानित किया गया।
 
'''शास्त्री जयन्ती व लाल बहादुर शास्त्री स्मृति दिवस'''
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== संक्षिप्त जीवनी ==
लालबहादुर शास्त्री का जन्म [[१९०४|1904]] में मुगलसराय ([[उत्तर प्रदेश]]) में एक कायस्थ परिवार में मुंशी शारदा प्रसाद श्रीवास्तव के यहाँ हुआ था। उनके पिता प्राथमिक विद्यालय में शिक्षक थे अत: सब उन्हें मुंशीजी ही कहते थे। बाद में उन्होंने राजस्व विभाग में लिपिक (क्लर्क) की नौकरी कर ली थी । लालबहादुर की माँ का नाम रामदुलारी था। परिवार में सबसे छोटा होने के कारण बालक लालबहादुर को परिवार वाले प्यार में नन्हें कहकर ही बुलाया करते थे। जब नन्हें अठारह महीने का हुआ दुर्भाग्य से [[पिता]] का निधन हो गया। उनकी माँ रामदुलारी अपने पिता हजारीलाल के घर [[मिर्जापुर|मिर्ज़ापुर]] चली गयीं। कुछ समय बाद उसके [[नाना]] भी नहीं रहे। बिना पिता के बालक नन्हें की परवरिश करने में उसके [[मौसा]] रघुनाथ प्रसाद ने उसकी माँ का बहुत सहयोग किया। ननिहाल में रहते हुए उसने प्राथमिक शिक्षा ग्रहण की। उसके बाद की शिक्षा हरिश्चन्द्र हाई स्कूल और [[महात्मा गाँधी काशी विद्यापीठ|काशी विद्यापीठ]] में हुई। काशी विद्यापीठ से '''शास्त्री''' की उपाधि मिलने के बाद उन्होंने जन्म से चला आ रहा जातिसूचक शब्द ''श्रीवास्तव'' हमेशा हमेशा के लिये हटा दिया और अपने नाम के आगे 'शास्त्री' लगा लिया। इसके पश्चात् शास्त्री शब्द लालबहादुर के नाम का पर्याय ही बन गया।
 
[[१९२८|1928]] में उनका विवाह [[मिर्ज़ापुर|मिर्जापुर]] निवासी गणेशप्रसाद की पुत्री ललिता से हुआ। ललिता शास्त्री से उनके छ: सन्तानें हुईं, दो पुत्रियाँ-कुसुम व सुमन और चार पुत्र-हरिकृष्ण, अनिल, सुनील व अशोक। उनके चार पुत्रों में से दो-अनिल शास्त्री और [[सुनील शास्त्री]] अभी हैं, शेष दो दिवंगत हो चुके हैं। [[अनिल शास्त्री]] कांग्रेस पार्टी के एक वरिष्ठ नेता हैं जबकि सुनील शास्त्री [[भारतीय जनता पार्टी]] में चले गये।
 
== राजनीतिक जीवन ==
[[चित्र:L.B.Shastri1286.gif|thumb|right|200px|'''"मरो नहीं, मारो!"''' का नारा लालबहादुर शास्त्री ने दिया जिसने क्रान्ति को पूरे देश में प्रचण्ड किया।]]
संस्कृत भाषा में [[स्नातक]] स्तर तक की [[शिक्षा]] समाप्त करने के पश्चात् वे [[भारत सेवक समाज|भारत सेवक संघ]] से जुड़ गये और देशसेवा का व्रत लेते हुए यहीं से अपने राजनैतिक जीवन की शुरुआत की। शास्त्रीजी सच्चे [[गांधीवाद|गान्धीवादी]] थे जिन्होंने अपना सारा जीवन सादगी से बिताया और उसे गरीबों की सेवा में लगाया। [[भारतीय स्वतन्त्रता आन्दोलन|भारतीय स्वाधीनता संग्राम]] के सभी महत्वपूर्ण कार्यक्रमों व आन्दोलनों में उनकी सक्रिय भागीदारी रही और उसके परिणामस्वरूप उन्हें कई बार जेलों में भी रहना पड़ा। स्वाधीनता संग्राम के जिन आन्दोलनों में उनकी महत्वपूर्ण भूमिका रही उनमें [[१९२१|1921]] का [[असहयोग आन्दोलन|असहयोग आंदोलन]], [[१९३०|1930]] का [[दांडी मार्च]] तथा [[१९४२|1942]] का [[भारत छोड़ो आन्दोलन]] उल्लेखनीय हैं।
दूसरे विश्व युद्ध में [[इंग्लैण्ड]] को बुरी तरह उलझता देख जैसे ही नेताजी ने [[आज़ाद हिन्द फ़ौज|आजाद हिन्द फौज]] को "दिल्ली चलो" का नारा दिया, [[महात्मा गांधी|गान्धी]] जी ने मौके की नजाकत को भाँपते हुए 8 अगस्त 1942 की रात में ही [[मुम्बई|बम्बई]] से अँग्रेजों को "भारत छोड़ो" व भारतीयों को "करो या मरो" का आदेश जारी किया और सरकारी सुरक्षा में यरवदा [[पुणे]] स्थित [[आगा खान पैलेस]] में चले गये। 9 अगस्त 1942 के दिन शास्त्रीजी ने [[इलाहाबाद]] पहुँचकर इस आन्दोलन के गान्धीवादी नारे को चतुराई पूर्वक '''"मरो नहीं, मारो!"''' में बदल दिया और अप्रत्याशित रूप से क्रान्ति की [[दावानल]] को पूरे देश में प्रचण्ड रूप दे दिया। पूरे ग्यारह दिन तक भूमिगत रहते हुए यह आन्दोलन चलाने के बाद 19 अगस्त 1942 को शास्त्रीजी गिरफ्तार हो गये।
शास्त्रीजी के राजनीतिक दिग्दर्शकों में [[पुरुषोत्तम दास टंडन|पुरुषोत्तमदास टंडन]] और पण्डित [[गोविन्द बल्लभ पन्त|गोविंद बल्लभ पंत]] के अतिरिक्त [[जवाहरलाल नेहरू]] भी शामिल थे। सबसे पहले [[१९२९|1929]] में [[इलाहाबाद]] आने के बाद उन्होंने टण्डनजी के साथ भारत सेवक संघ की [[इलाहाबाद]] इकाई के सचिव के रूप में काम करना शुरू किया। इलाहाबाद में रहते हुए ही नेहरूजी के साथ उनकी निकटता बढी। इसके बाद तो शास्त्रीजी का कद निरन्तर बढता ही चला गया और एक के बाद एक सफलता की सीढियाँ चढते हुए वे नेहरूजी के मंत्रिमण्डल में गृहमन्त्री के प्रमुख पद तक जा पहुँचे। और इतना ही नहीं, नेहरू के निधन के पश्चात [[भारतवर्षभारत]]वर्ष के प्रधान मन्त्री भी बने।
 
== प्रधान मन्त्री ==
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भारत पाक युद्ध के दौरान ६ सितम्बर को भारत की १५वी पैदल सैन्य इकाई ने द्वितीय विश्व युद्ध के अनुभवी मेजर जनरल प्रसाद के नेत्तृत्व में इच्छोगिल नहर के पश्चिमी किनारे पर पाकिस्तान के बहुत बड़े हमले का डटकर मुकाबला किया। इच्छोगिल नहर भारत और पाकिस्तान की वास्तविक सीमा थी। इस हमले में खुद मेजर जनरल प्रसाद के काफिले पर भी भीषण हमला हुआ और उन्हें अपना वाहन छोड़ कर पीछे हटना पड़ा। भारतीय थलसेना ने दूनी शक्ति से प्रत्याक्रमण करके बरकी गाँव के समीप नहर को पार करने में सफलता अर्जित की। इससे भारतीय सेना [[लाहौर]] के हवाई अड्डे पर हमला करने की सीमा के भीतर पहुँच गयी। इस अप्रत्याशित आक्रमण से घबराकर [[संयुक्त राज्य अमेरिका|अमेरिका]] ने अपने नागरिकों को लाहौर से निकालने के लिये कुछ समय के लिये युद्धविराम की अपील की।
 
आखिरकार रूस और अमरिका की मिलीभगत से शास्त्रीजी पर जोर डाला गया। उन्हें एक सोची समझी साजिश के तहत [[रूस]] बुलवाया गया जिसे उन्होंने स्वीकार कर लिया। हमेशा उनके साथ जाने वाली उनकी पत्नी ललिता शास्त्री को बहला फुसलाकर इस बात के लिये मनाया गया कि वे शास्त्रीजी के साथ रूस की राजधानी [[ताशकन्द]] न जायें और वे भी मान गयीं। अपनी इस भूल का श्रीमती ललिता शास्त्री को मृत्युपर्यन्त पछतावा रहा। जब समझौता वार्ता चली तो शास्त्रीजी की एक ही जिद थी कि उन्हें बाकी सब शर्तें मंजूर हैं परन्तु जीती हुई जमीन पाकिस्तान को लौटाना हरगिज़ मंजूर नहीं। काफी जद्दोजहेद के बाद शास्त्रीजी पर अन्तर्राष्ट्रीय दबाव बनाकर ताशकन्द समझौते के दस्तावेज़ पर हस्ताक्षर करा लिये गये। उन्होंने यह कहते हुए हस्ताक्षर किये थे कि वे हस्ताक्षर जरूर कर रहे हैं पर यह जमीन कोई दूसरा प्रधान मन्त्री ही लौटायेगा, वे नहीं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति [[अयूब ख़ान (पाकिस्तानी शासक)|अयूब ख़ान]] के साथ युद्धविराम के समझौते पर हस्ताक्षर करने के कुछ घण्टे बाद 11 जनवरी 1966 की रात में ही उनकी मृत्यु हो गयी। यह आज तक रहस्य<ref name="hindustan_times_july11_2009">Dhawan, H. "45 years on, Shastri's death a mystery&nbsp;– PMO refuses to Entertain RTI Plea Seeking Declassification of Document". द टाइम्स ऑफ़ इण्डिया , नई दिल्ली Edition, Saturday, 11 जुलाई 2009, page 11, columns 1–5 (top left)</ref> बना हुआ है कि क्या वाकई शास्त्रीजी की मौत हृदयाघात के कारण हुई थी? कई लोग उनकी मौत की वजह जहर<ref>[http://wikisource.org/wiki/%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%AF%E0%A4%BE%E0%A4%B0%E0%A4%BF%E0%A4%A8_%E0%A4%B0%E0%A4%BE%E0%A4%9C%E0%A4%A8%E0%A5%80%E0%A4%A4%E0%A4%BF '''हत्यारिन राजनीति'''-हिन्दी विकीस्रोत पर]
</ref> को ही मानते हैं।
 
शास्त्रीजी को उनकी सादगी, देशभक्ति और ईमानदारी के लिये आज भी पूरा भारत श्रद्धापूर्वक याद करता है। उन्हें मरणोपरान्त वर्ष 1966 में [[भारत रत्‍न|भारत रत्न]] से सम्मानित किया गया।
 
== रहस्यपूर्ण मृत्यु ==
[[चित्र:Mumbai Shastri statue.jpg|thumb|right|200px|[[मुम्बई|मुंबई]] में शास्त्रीजी की आदमकद प्रतिमा]]
पाकिस्तान के आक्रमण का सामना करते हुए भारतीय सेना ने लाहौर पर धाबा बोल दिया। इस अप्रत्याशित आक्रमण को देख अमेरिका ने लाहौर में रह रहे अमेरिकी नागरिकों को निकालने के लिए कुछ समय के लिए युद्धविराम की मांग की। रूस और अमेरिका के चहलकदमी के बाद भारत के प्रधानमंत्री को रूस के ताशकंद समझौता में बुलाया गया। [https://indianelection2019.news/lal-bahadur-shastri-karykaal/ शास्त्री जी]<ref>{{Cite web|url=https://indianelection2019.news/lal-bahadur-shastri-karykaal/|title=indianelection2019.news/lal-bahadur-shastri-karykaal/|last=|first=|date=|website=Indian Election 2019|archive-url=|archive-date=|dead-url=|access-date=}}</ref> ने ताशकंद समझौते की हर शर्तों को मंजूर कर लिया मगर पाकिस्तान जीते इलाकों को लौटाना हरगिज स्वीकार नहीं था। अंतर्राष्ट्रीय दवाब में शास्त्री जी को ताशकंद समझौते पर हस्ताक्षर करना पड़ा पर लाल बहादुर शास्त्री ने खुद  प्रधानमंत्री कार्यकाल में इस जमीन को वापस करने से इंकार कर दिया। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री अयूब खान के साथ युद्ध विराम पर हस्ताक्षर करने के कुछ घंटे बाद ही भारत देश के प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का संदिग्ध निधन हो गया। 11 जनवरी 1966 की रात देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री की मृत्यु हो गई।
 
[[ताशकन्द|ताशकन्द समझौते]] पर हस्ताक्षर करने के बाद उसी रात उनकी मृत्यु हो गयी। मृत्यु का कारण हार्ट अटैक बताया गया। शास्त्रीजी की [[अंत्येष्टिअन्त्येष्टि क्रिया|अन्त्येष्टि]] पूरे राजकीय सम्मान के साथ शान्तिवन (नेहरू जी की समाधि) के आगे [[यमुना नदी|यमुना]] किनारे की गयी और उस स्थल को [[विजय घाट]] नाम दिया गया। जब तक कांग्रेस संसदीय दल ने [[इंदिराइन्दिरा गांधी|इन्दिरा गान्धी]] को शास्त्री का विधिवत उत्तराधिकारी नहीं चुन लिया, [[गुलजारीलालगुलज़ारीलाल नंदानन्दा|गुलजारी लाल नन्दा]] कार्यवाहक प्रधानमन्त्री रहे।<ref name="IPD">{{cite book|title=Indian Parliamentary Democracy|pages=121|author=U.N. Gupta|publisher=Atlantic Publishers & Distributors|year=2003|isbn=8126901934}}</ref>
 
शास्त्रीजी की मृत्यु को लेकर तरह-तरह के कयास लगाये जाते रहे। बहुतेरे लोगों का, जिनमें उनके परिवार के लोग भी शामिल हैं, मानते है कि शास्त्रीजी की मृत्यु हार्ट अटैक से नहीं बल्कि जहर देने से ही हुई।<ref name="hindustan_times_july11_2009"/> पहली इन्क्वायरी राज नारायण ने करवायी थी, जो बिना किसी नतीजे के समाप्त हो गयी ऐसा बताया गया। मजे की बात यह कि इण्डियन पार्लियामेण्ट्री लाइब्रेरी में आज उसका कोई रिकार्ड ही मौजूद नहीं है।<ref name="outlookindia.com">http://www.outlookindia.com/article.aspx?281537</ref> यह भी आरोप लगाया गया कि शास्त्रीजी का पोस्ट मार्टम भी नहीं हुआ। 2009 में जब यह सवाल उठाया गया तो भारत सरकार की ओर से यह जबाव दिया गया कि शास्त्रीजी के प्राइवेट डॉक्टर आर०एन०चुघ और कुछ रूस के कुछ डॉक्टरों ने मिलकर उनकी मौत की जाँच तो की थी परन्तु सरकार के पास उसका कोई रिकॉर्ड नहीं है। बाद में प्रधानमन्त्री कार्यालय से जब इसकी जानकारी माँगी गयी तो उसने भी अपनी मजबूरी जतायी।<ref name="hindustan_times_july11_2009"/>
शास्त्रीजी की मौत में संभावित साजिश की पूरी पोल आउटलुक नाम की एक पत्रिका ने खोली।<ref name="outlookindia.com"/><ref name="outlookindia.com"/> 2009 में, जब ''साउथ एशिया पर सीआईए की नज़र'' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेजी]]: CIA's Eye on South Asia) नामक पुस्तक के लेखक अनुज धर ने [[सूचना|सूचना के अधिकार]] के तहत माँगी गयी जानकारी पर प्रधानमन्त्री कार्यालय की ओर से यह कहना कि "शास्त्रीजी की मृत्यु के दस्तावेज़ सार्वजनिक करने से हमारे देश के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्ध खराब हो सकते हैं तथा इस रहस्य पर से पर्दा उठते ही देश में उथल-पुथल मचने के अलावा संसदीय विशेषधिकारों को ठेस भी पहुँच सकती है। ये तमाम कारण हैं जिससे इस सवाल का जबाव नहीं दिया जा सकता।"।<ref name="hindustan_times_july11_2009"/>
 
सबसे पहले सन् [[१९७८|1978]] में प्रकाशित<ref>''Hindustan'' ([[हिन्दी|Hindi]] daily) [[नई दिल्ली]] 12 जनवरी 1978 (ललिता के आँसू का विमोचन)</ref> एक हिन्दी पुस्तक ''ललिता के आँसू''<ref>*[http://www.worldcat.org/title/lalita-ke-amsu-sri-lalabahadura-sastri-ke-jivana-para-adharita-eka-karuna-kavya-krti/oclc/60419441&referer=brief_results Book:Lalita Ke Ansoo on worldcat]</ref> में शास्त्रीजी की [[मृत्यु]] की करुण कथा को स्वाभाविक ढँग से उनकी धर्मपत्नी ललिता शास्त्री के माध्यम से कहलवाया गया था। उस समय (सन् उन्निस सौ अठहत्तर में) ललिताजी जीवित थीं।<ref>[[पाञ्चजन्य]] साहित्यालोचन 24 फरवरी1980</ref>
 
यही नहीं, कुछ समय पूर्व प्रकाशित एक अन्य अंग्रेजी पुस्तक में लेखक पत्रकार [[कुलदीप नैयर]] ने भी, जो उस समय ताशकन्द में शास्त्रीजी के साथ गये थे, इस घटना चक्र पर विस्तार से प्रकाश डाला है। गत वर्ष जुलाई 2012 में शास्त्रीजी के तीसरे पुत्र सुनील शास्त्री ने भी [[भारत सरकार]] से इस रहस्य पर से पर्दा हटाने की माँग की थी।<ref name="hindustantimes.com">{{cite web|url=http://www.hindustantimes.com/India-news/Jaipur/Clear-air-on-Lal-Bahadur-Shastri-s-death-Son/Article1-915545.aspx |title=Clear air on Lal Bahadur Shastri's death: Son |work=हिन्दुस्तान टाइम्स | author=Saba Naqvi |date=Jul 16, 2012 |accessdate=6 सितम्बर 2013}}</ref>
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== इन्हें भी देखें ==
 
* [[१९६५ का भारत-पाक युद्ध|भारत पाकिस्तान के बीच द्वितीय युद्ध]]
 
== बाहरी कड़ियाँ ==