"शिश्न": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Penis Anatomy2 numbers.svg|thumb|300px|right|शिश्न की संरचना: 1 — [[मूत्राशय]], 2 — [[जघन संधान]], 3 — [[पुरस्थ ग्रन्थि]], 4 — कोर्पस कैवर्नोसा, 5 — [[शिश्न मुण्ड|शिश्नमुंड]], 6 — [[अग्रत्वचा]], 7 — [[कुहर]] (मूत्रमार्ग), 8 — [[वृषणकोष]], 9 — [[वृषण]], 10 — [[अधिवृषण]], 11— [[शुक्रवाहिनी]]]]
 
'''शिश्न''' (Penis) [[कशेरुकी प्राणी|कशेरुकी]] और अकशेरुकी दोनो प्रकार के कुछ [[नर]] जीवों का एक बाह्य [[यौन अंग]] है।
 
तकनीकी रूप से शिश्न मुख्यत: स्तनधारी जीवों में [[जनन|प्रजनन]] हेतु एक [[प्रवेशी अंग]] है, साथ ही यह [[मूत्र]] निष्कासन हेतु एक बाहरी अंग के रूप में भी कार्य करता है। शिश्न आमतौर स्तनधारी जीवों और सरीसृपों में पाया जाता है।
 
हिन्दी में शिश्न को [[लिंग]] भी कहते हैं पर, इन दोनो शब्दों के प्रयोग में अंतर होता है, जहाँ शिश्न का प्रयोग वैज्ञानिक और चिकित्सीय संदर्भों में होता है वहीं लिंग का प्रयोग आध्यात्म और धार्मिक प्रयोगों से संबंद्ध है। दूसरे अर्थो में लिंग शब्द, किसी व्यक्ति के पुरुष (नर) या स्त्री (मादा) होने का बोध भी कराता है। हिन्दी में सभी संज्ञायें या तो पुल्लिंग या फिर स्त्रीलंग होती हैं।
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[[चित्र:Gray1158.png|thumb|left|मानव शिश्न की शरीर रचना का आरेख . (आवर्धन हेतु 'क्लिक' करें)]]
मानव शिश्न जैविक [[ऊतक]] के तीन स्तंभों से मिल कर बनता है। पृष्ठीय पक्ष पर दो कोर्पस कैवर्नोसा एक दूसरे के साथ-साथ तथा एक कोर्पस स्पोंजिओसम उदर पक्ष पर इन दोनो के बीच स्थित होता है।
कोर्पस स्पोंजिओसम का वृहत और गोलाकार सिरा [[शिश्न मुण्ड|शिश्नमुंड]] में परिणित होता है जो [[अग्रत्वचा]] द्वारा सुरक्षित रहता है। अग्रत्वचा एक ढीली त्वचा की संरचना है जिसको अगर पीछे खींचा जाये तो शिश्नमुंड दिखने लगता है। शिश्न के निचली ओर का वह क्षेत्र जहाँ से अग्रत्वचा जुड़ी रहती है [[अग्रत्वचा का बंध]] (फेरुनुलम) कहलाता है।
 
शिश्नमुंड के सिरे पर मूत्रमार्ग का अंतिम हिस्सा जिसे [[कुहर]] के रूप में जाना जाता है, स्थित होता है। यह मूत्र त्याग और [[वीर्य]] [[वीर्य स्खलन|स्खलन]] दोनों के लिए एकमात्र रास्ता होता है। [[शुक्राणु]] का उत्पादन दोनो [[वृषण|वृषणों]] में होता है और इनका संग्रहण संलग्न [[अधिवृषण]] (एपिडिडिमिस) में होता है। वीर्य स्खलन के दौरान, शुक्राणु दो नलिकाएं जिन्हें शुक्रवाहक (वास डिफेरेंस) के नाम से जाना जाता है और जो मूत्राशय के पीछे की स्थित होती हैं से होकर गुजरते है। इस यात्रा के दौरान सेमिनल वेसाइकल और शुक्रवाहक द्वारा स्रावित तरल शुक्राणुओं में मिलता है और जो दो स्खलन नलिकाओं के माध्यम से [[पुर:स्थ ग्रंथि]] (प्रोस्टेट) के अंदर मूत्रमार्ग से जा मिलता है। प्रोस्टेट और बल्बोयूरेथ्रल ग्रंथियों, इसमे और अधिक स्रावों को जोड़ते है और वीर्य अंतत: शिश्न के माध्यम से बाहर निकल जाता है।
 
रैफ शिश्न कि नीचे की जहाँ शिश्न के पार्श्व आर्ध जुड़ते हैं पर स्थित एक दृश्य रिज होती है। यह कुहर (मूत्रमार्ग का द्वार) से शुरु होकर वृषणकोष (वृषण की थैली) को पार कर पेरिनियम (अंडकोश की थैली और गुदा के बीच का क्षेत्र) तक जाता है।
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== [[स्तंभन]] ==
[[चित्र:Erection development animated.ogv|thumb|right|स्तंभन विकास.]]
[[स्तंभन]] से अभिप्राय शिश्न के आकार में बढ़ने और कडा़ होने से है, जो यौनिच्छा करने पर शिश्न के उत्तेजित होने के कारण होता है, यद्यपि यह गैर यौन स्थितियों में भी हो सकता है। प्राथमिक शारीरिक तंत्र जिसके चलते स्तंभन होता है, में शिश्न की धमनियाँ स्वतः फैल जाती हैं, जिसके कारण अधिक रक्त शिश्न के तीन स्पंजी ऊतक कक्षों में भर जाता है और इसे लंबाई और कठोरता प्रदान करता है। यह रक्त से भरे ऊतक रक्त को वापस ले जाने वाली शिराओं पर दबाव डाल कर सिकोड़ देते है, जिसके कारण अधिक रक्त प्रवेश करता है और कम रक्त वापस लौटता है। थोडी़ देर बाद एक [[संतुलन|साम्यावस्था]] अस्तित्व में आती है जिसमे फैली हुई धमनियों और सिकुडी़ हुई शिराओं में रक्त की समान मात्रा बहने लगती है और इस साम्यावस्था के कारण शिश्न को एक निश्चित स्तंभन आकार मिलता है।
 
यद्यपि स्तंभन [[सम्भोग|संभोग]] के लिये आवश्यक है पर विभिन्न अन्य यौन गतिविधियों के लिए यह आवश्यक नहीं है।
 
== स्तंभन कोण ==
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|}
 
== [[वीर्य स्खलन|स्खलन]] ==
[[वीर्य स्खलन|स्खलन]] का अभिप्राय शिश्न से [[वीर्य]] के निकलने से है और आमतौर पर [[सम्भोग|संभोग]] सुख के साथ संबद्ध है। पेशी संकुचन की एक श्रृंखला के द्वारा, शुक्राणु कोशिकाओं या [[शुक्राणु]], को शिश्न के माध्यम से निकाल (प्रजनन के लिये संभोग के माध्यम से, मादा की योनि में) दिया जाता है। यह आमतौर पर यौन उत्तेजना, का परिणाम होता है जो प्रोस्टेट के उत्तेजित होने से भी सकता है। शायद ही कभी, यह प्रोस्टैटिक रोग के कारण होता है। स्खलन अनायास नींद के दौरान हो सकता है जिसे [[स्वप्नदोष]] कहते हैं। स्वप्नदोष नाम के विपरीत एक स्वाभाविक क्रिया है और कोई दोष नहीं है। स्खलन दो चरणों में होता है:''उत्सर्जन'' और '' पूर्ण स्खलन''।
 
== सामान्य अन्तर ==
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* '''वसामय विशिष्ठताएं''' (Sebaceous prominences): फ़ोर्डाइस के धब्बे के समान ही शिश्न दण्ड पर वसामय ग्रंथियों में स्थित उभरे हुये छोटे धब्बे हैं और सामान्य हैं।
* '''[[फाइमोसिस|फ़िमोसिस]]''' (Phimosis): यह एक अक्षमता है जिसमे अग्रत्वचा को पूर्ण रूप से वापस खींचा नहीं जा सकता। शैशव और पूर्व किशोरावस्था में यह हानिरहित होती है। यह 10 वर्ष तक के लगभग 8% लड़कों में पायी जाती है। ब्रिटिश मेडिकल एसोसिएशन के अनुसार इसके लिये 19 वर्ष की उम्र तक उपचार (स्टेरॉयड क्रीम, हाथ से पीछे खींचना) करने की आवश्यकता नहीं होती है।
* '''वक्रता''' या टेढ़ापन: बहुत कम शिश्न ही पूरी तरह से सीधे होते हैं, जबकि अधिकतर शिश्नों में वक्रता होती है जो किसी भी दिशा (ऊपर, नीचे, दाएं, बाएं) में हो सकती है। कभी कभी यह वक्र बहुत ज्यादा होता है लेकिन यह शायद ही कभी [[सम्भोग|संभोग]] करने में आड़े आता है। 30° तक की वक्रता सामान्य होती है और चिकित्सा उपचार की जरूरत तब ही पड़ती है जब यह 45° से अधिक हो। कभी कभी '''पियरॉनी रोग''' के कारण भी शिश्न में टेढ़ापन हो सकता है।
 
== इन्हें भी देखें ==
"https://hi.wikipedia.org/wiki/शिश्न" से प्राप्त