"बालकृष्ण शर्मा नवीन": अवतरणों में अंतर
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'''बालकृष्ण शर्मा नवीन''' (१८९७ - १९६० ई०) [[हिन्दी]] [[कवि]] थे। वे परम्परा और समकालीनता के कवि हैं। उनकी कविता में स्वच्छन्दतावादी धारा के प्रतिनिधि स्वर के साथ-साथ राष्ट्रीय आंदोलन की चेतना, गांधी दर्शन और संवेदनाओं की झंकृतियां समान ऊर्जा और उठान के साथ सुनी जा सकती हैं। आधुनिक हिन्दी कविता के विकास में उनका स्थान अविस्मरणीय है। वे जीवनभर पत्रकारिता और राष्ट्रीय आंदोलन से जुड़े रहे।
नवीन जी [[द्विवेदी युग]] के कवि हैं। इनकी कविताओं में भक्ति-भावना, राष्ट्र-प्रेम तथा विद्रोह का स्वर प्रमुखता से आया है। आपने [[बृज भाषा|ब्रजभाषा]] के प्रभाव से युक्त [[खड़ीबोली|खड़ी बोली]] हिन्दी में काव्य रचना की।
उन्हे साहित्य एवं शिक्षा के क्षेत्र में सन [[१९६०]] में [[पद्म भूषण|पद्मभूषण]] से सम्मानित किया गया था।
==जीवन परिचय==
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==साहित्य रचना==
शर्माजी के साहित्यिक जीवन की पहली रचना 'सन्तू' नामक एक कहानी थी। इसे उन्होंने छपने के लिए [[सरस्वती
इनके महत्वपूर्ण काव्यग्रंथ हैं- कुमकुम, रश्मिरेखा, अपलक, क्वासि, उर्मिला, विनोबा स्तवन, प्राणार्पण तथा हम विषपायी जन्म के। पहली जेलयात्रा के दौरान उर्मिला की शुरूआत की। उर्मिला महाकाव्य के प्रणयन में आचार्य [[महावीर प्रसाद द्विवेदी]] की प्रेरणा की झलक साफ देखी जा सकती है। छः सर्गों वाली इस कृति में यद्यपि [[उर्मिला (रामायण)|उर्मिला]] के जन्म से लेकर [[लक्ष्मण]] से पुर्नमिलन तक की कथा कही गई है, लेकिन अन्य पक्षों के बजाय उर्मिला का विरह-वर्णन कला की दृष्टि से सबसे सरस बन पड़ा है।
:''देवि उर्मिले तेरी अकथित गाथा गाता हँ मैं;
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