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'''योगवार्तिक''', [[विज्ञानभिक्षु]] द्वारा रचित [[योग]] का प्रामाणिक ग्रन्थ माना जाता है। [[पतञ्जलि|पतंजलि]] के [[पतञ्जलि योगसूत्र|योगसूत्र]] ग्रन्थ पर सबसे प्रमाणिक भाष्य [[व्यास भाष्य]] है और योगवार्तिक, व्यासभाष्य की सुस्पष्ट व्याख्या प्रस्तुत करता है।
पतंजलि के योगसूत्र को अवगम्य करने के लिये [[व्यास]]-[[भाष्य]] प्रमाणिक व्याख्या है तो व्यास भाष्य को समझने के लिये विज्ञानभिक्षु की व्याख्या निश्चित रूप से अत्यन्त उपोयगी है। योगशास्त्र पर विभिन्न मत-मतान्तरों पर भी इस ग्रन्थ में वर्णन-आलोचन-अनुशीलन प्रस्तुत किया गया है। रामशंकर भट्टाचार्य के मतानुसार, समकालीन मतों के साथ समन्वय का प्रयास भी किया गया है।(पातंजल योगदर्शनम्, पृ.74)
योगवार्तिक में योगविवेचन में गहरी अन्तर्दृष्टि दिखायी देती है। साथ ही [[स्मृति]]-[[पुराण]] आदि सन्दर्भों के द्वारा विज्ञानभिक्षु ने [[सांख्य दर्शन|सांख्य-]]
इसके साथ ही योगवार्तिककार ने अपने ग्रन्थ में योगभाष्य के अनेक पाठभेद का भी निदर्शन किया है। पाठभेद से अभिप्राय है कि पातजंलि-योगसूत्र में तथा उसपर उपलब्ध व्यासभाष्य व्याख्या में एक ही सूत्र की व्याख्य़ा में किसी के द्वारा किसी शब्द तथा अन्य के द्वारा अन्य शब्द का प्रयोग किया जाना। वस्तुतः इससे व्याख्या में ही महत्वपूर्ण अन्तर पड़ता है। अतः प्रमाणिक अर्थ निरूपण के लिये पाठभेद जानना आवश्यक होता है।
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==इन्हें भी देखें==
*[[भाष्य|वार्तिक]]
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