"आपातकाल (भारत)": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Indira Gandhi 1966.jpg|right|thumb|200px|प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी, जिन्होंने भारत के राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद से राष्ट्रीय आपातकाल की घोषणा करवाई।]]
 
25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक का 21 महीने की अवधि में [[भारत]] में [[आपातकाल (भारत)|आपातकाल]] घोषित था। तत्कालीन [[भारत के राष्ट्रपति|राष्ट्रपति]] [[फ़ख़रुद्दीन अली अहमद]] ने तत्कालीन भारतीय [[भारत केका प्रधानमंत्रीप्रधानमन्त्री|प्रधानमंत्री]] [[इन्दिरा गांधी]] के कहने पर [[भारत का संविधान|भारतीय संविधान]] की धारा 352 के अधीन '''आपातकाल''' की घोषणा कर दी। स्वतंत्र भारत के इतिहास में यह सबसे विवादास्पद और अलोकतांत्रिक काल था। आपातकाल में चुनाव स्थगित हो गए तथा नागरिक अधिकारों को समाप्त करके मनमानी की गई। इंदिरा गांधी के राजनीतिक विरोधियों को कैद कर लिया गया और प्रेस पर प्रतिबंधित कर दिया गया। प्रधानमंत्री के बेटे [[संजय गांधी]] के नेतृत्व में बड़े पैमाने पर [[पुरुष नसबंदी]] अभियान चलाया गया। [[जयप्रकाश नारायण]] ने इसे 'भारतीय इतिहास की सर्वाधिक काली अवधि' कहा था।
 
== परिचय ==
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इंदिरा गांधी ने चतुराई से अपने प्रतिद्वंदियों को अलग कर दिया जिस कारण कांग्रेस विभाजित हो गयी और 1969-में दो भागों , कांग्रेस (ओ) ("सिंडीकेट" के रूप में जाना जाता है जिसमें पुराने गार्ड शामिल हैं) व कांग्रेस (आर) जो इंदिरा की ओर थी, भागों में बट गयी। अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी और कांग्रेस सांसदों के एक बड़े भाग ने प्रधानमंत्री का साथ दिया। इंदिरा गांधी की पार्टी पुरानी कांग्रेस से ज्यादा ताकतवर व आंतरिक लोकतंत्र की परंपराओं के साथ एक मजबूत संस्था थी। दूसरी और कांग्रेस (आर) के सदस्यों को जल्दी ही समझ में आ गया कि उनकी प्रगति इंदिरा गांधी और उनके परिवार के लिए अपनी वफादारी दिखने पर पूरी तरह निर्भर करती है और चाटुकारिता का दिखावटी प्रदर्शित करना उनकी दिनचर्या बन गया। आने वाले वर्षों में इंदिरा का प्रभाव इतना बढ़ गया कि वह कांग्रेस विधायक दल द्वारा निर्वाचित सदस्यों की बजाय, राज्यों के मुख्यमंत्रियों के रूप में स्वयं चुने गए वफादारों को स्थापित कर सकती थीं।
 
इंदिरा की उस सरकार के पास जनता के बीच उनकी करिश्माई अपील का समर्थन प्राप्त था। इसकी एक और कारण सरकार द्वारा लिए गए फैसले भी थे। इसमें जुलाई 1969 में प्रमुख [[भारत में बैंकों का राष्ट्रीयकरण|बैंकों का राष्ट्रीयकरण]] व सितम्बर 1970 में [[भारत में राजभत्ता|राजभत्ते]]([[भारत में प्रिवी पर्सराजभत्ता|प्रिवी पर्स]]) से उन्मूलन शामिल हैं; ये फैसले अपने विरोधियों को सार्वभौमिक झटका देने के लिए, अध्यादेश के माध्यम से अचानक किये गए थे। इसके बाद, सिंडीकेट और अन्य विरोधियों के विपरीत, इंदिरा को "गरीब समर्थक , धर्म के मामलों में, अर्थशास्त्र और धर्मनिरपेक्षता व समाजवाद के साथ पूरे देश के विकास के लिए खड़ी एक छवि के रूप में देखा गया।"<ref>https://en.m.wikipedia.org/wiki/The_Emergency_(India)#cite_ref-Guha.2C_p._439_4-0</ref><ref>https://en.m.wikipedia.org/wiki/The_Emergency_(India)#cite_ref-Guha.2C_p._439_4-1</ref> प्रधानमंत्री को विशेष रूप से वंचित वर्गों-गरीब, दलितों, महिलाओं और अल्पसंख्यकों द्वारा बहुत समर्थन मिला। उनके लिए, वह उनकी इंदिरा अम्मा थीं।
 
1971 के आम चुनावों में, "[[गरीबी हटाओ]]" का इंदिरा का लोकलुभावन नारा लोगों को इतना पसंद आया कि पुरस्कार स्वरुप उन्हें एक विशाल बहुमत (518 से बाहर 352 सीटें) से जीता दिया। " जीत के इतने बड़े अंतर के सम्बन्ध में इतिहासकार रामचंद्र गुहा ने बाद में लिखा था कि "कांग्रेस (आर) असली कांग्रेस के रूप में खड़ी है इसे योग्यता प्रदर्शित करने के लिए किसी प्रत्यय की आवश्यकता नहीं है।"
 
दिसंबर 1971 में, इनके सक्रिय युद्ध नेतृत्व में भारत ने पूर्व में [[पूर्वी पाकिस्तान]] ([[बांग्लादेश]]) को अपने कट्टर दुश्मन पाकिस्तान से स्वतंत्रता दिलवाई। अगले महीने ही उन्हें [[भारत रत्‍न|भारत रत्न]] से सम्मानित किया गया, वह उस समय अपने चरम पर थीं; उनकी जीवनी लेखक इंदर मल्होत्रा, के लिए 'भारत की साम्राज्ञी' के रूप में उनका वर्णन" उपयुक्त लग रहा था। नियमित रूप से एक तानाशाह होने का और एक व्यक्तित्व पंथ को बढ़ावा देने का आरोप लगाने वाले विपक्षी नेताओं ने भी उन्हें [[दुर्गा]] सामान माना।<ref>https://en.m.wikipedia.org/wiki/The_Emergency_(India)#cite_ref-5</ref>
[[चित्र:Indian Herald 1975.jpg|right|thumb|350px|आपातकाल घोषित करके प्रमुख नेताओं को पकड़कर जेल में डाल दिया गया।]]
1975 की तपती गर्मी के दौरान अचानक भारतीय राजनीति में भी बेचैनी दिखी। यह सब हुआ [[इलाहाबाद उच्च न्यायालय]] के उस फ़ैसले से जिसमें [[इन्दिरा गांधी|इंदिरा गांधी]] को चुनाव में धांधली करने का दोषी पाया गया और उन पर छह वर्षों तक कोई भी पद संभालने पर प्रतिबंध लगा दिया गया था। लेकिन इंदिरा गांधी ने इस फ़ैसले को मानने से इनकार करते हुए [[भारत का उच्चतम न्यायालय|सर्वोच्च न्यायालय]] में अपील करने की घोषणा की और 26 जून को आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी गई।
 
[[आकाशवाणी]] पर प्रसारित अपने संदेश में इंदिरा गांधी ने कहा, "जब से मैंने आम आदमी और देश की महिलाओं के फायदे के लिए कुछ प्रगतिशील क़दम उठाए हैं, तभी से मेरे ख़िलाफ़ गहरी साजिश रची जा रही थी।"
 
आपातकाल लागू होते ही [[आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम|आंतरिक सुरक्षा क़ानून (मीसा)]] के तहत राजनीतिक विरोधियों की गिरफ़्तारी की गई, इनमें [[जयप्रकाश नारायण]], [[ज्योर्जजॉर्ज फ़र्नान्डिस|जॉर्ज फ़र्नांडिस]] और [[अटल बिहारी वाजपेयी]] भी शामिल थे।u
 
== मामला ==
{{main|उत्तर प्रदेश राज्य बनाम राज नारायण}}
मामला 1971 में हुए लोकसभा चुनाव का था, जिसमें उन्होंने अपने मुख्य प्रतिद्वंद्वी [[राजनारायण|राज नारायण]] को पराजित किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के चार साल बाद राज नारायण ने हाईकोर्ट में चुनाव परिणाम को चुनौती दी। उनकी दलील थी कि इंदिरा गांधी ने चुनाव में सरकारी मशीनरी का दुरूपयोग किया, तय सीमा से अधिक खर्च किए और मतदाताओं को प्रभावित करने के लिए ग़लत तरीकों का इस्तेमाल किय। अदालत ने इन आरोपों को सही ठहराया। इसके बावजूद इंदिरा गांधी टस से मस नहीं हुईं। यहाँ तक कि कांग्रेस पार्टी ने भी बयान जारी कर कहा कि इंदिरा का नेतृत्व पार्टी के लिए अपरिहार्य है।
 
==आपातकाल-विरोधी आन्दोलन==
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===सिखों द्वारा विरोध===
सभी विपक्षी दलों के नेताओं और सरकार के अन्य स्पष्ट आलोचकों के गिरफ्तार किये जाने और सलाखों के पीछे भेज दिये जाने के बाद पूरा भारत सदमे की स्थिति में था। आपातकाल की घोषणा के कुछ ही समय बाद, [[सिख]] नेतृत्व ने [[अमृतसर]] में बैठकों का आयोजन किया जहां उन्होंने "कांग्रेस की फासीवादी प्रवृत्ति" का विरोध करने का संकल्प किया। देश में पहले जनविरोध का आयोजन [[शिरोमणि अकाली दल|अकाली दल]] ने किया था जिसे "लोकतंत्र की रक्षा का अभियान" के रूप में जाना जाता है। इसे ९ जुलाई को अमृतसर में शुरू किया गया था।
 
== पहली गैर-कांग्रेसी सरकार ==
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==घटनाक्रम==
===1975===
* '''12 जून 1975''' को इंदिरा गांधी को इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने दोषी पाया और छह साल के लिए पद से बेदखल कर दिया। इंदिरा गांधी पर वोटरों को घूस देना, सरकारी मशनरी का गलत इस्तेमाल, सरकारी संसाधनों का गलत इस्तेमाल जैसे 14 आरोप साबित तो हुआ लेकिन आदतन श्रीमती गांधी उनको न मान कर हमारे न्यायलय का मन बहुत बढ़ाया । [[राजनारायण|राज नारायण]] ने 1971 में [[रायबरेली]] में इंदिरा गांधी के हाथों हारने के बाद मामला दाखिल कराया था। जस्टिस [[जगमोहनलाल सिन्हा]] ने यह फैसला सुनाया था।
* '''24 जून 1975''' को सुप्रीम कोर्ट ने आदेश बरकरार रखा, लेकिन इंदिरा को प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बने रहने की इजाजत दी जो कि होना भी जरुरी था क्योकि राजतन्त्र में ऐसा ही होता है।
* '''25 जून 1975''' को [[जयप्रकाश नारायण]] ने इंदिरा के न चाहते हुए भी इस्तीफा देने तक देश भर में रोज प्रदर्शन करने का आह्वाहन किया।
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*[[जगमोहनलाल सिन्हा]]
*[[जयप्रकाश नारायण]]
*[[सम्पूर्ण क्रांति|सम्पूर्ण क्रान्ति]]
*[[जनता पार्टी]]
*[[आंतरिक सुरक्षा व्यवस्था अधिनियम]] (मीसा)