"साम्यवाद": अवतरणों में अंतर

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[[File:Red star with hammer and sickle.svg|thumb|right|200px|एक साम्यवादी प्रतीक।]]
'''साम्यवाद''', '''[[कार्ल मार्क्स]]''' और '''[[फ्रेडरिक एंगेल्स]]''' द्वारा प्रतिपादित तथा '''[[कम्युनिस्ट पार्टी का घोषणापत्र|साम्यवादी घोषणापत्र]]''' में वर्णित [[समाजवाद]] की चरम परिणति है। साम्यवाद, सामाजिक-राजनीतिक [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]] के अंतर्गत एक ऐसी [[विचारधारा]] के रूप में वर्णित है, जिसमें संरचनात्मक स्तर पर एक समतामूलक [[वर्गविहीन समाज]] की स्थापना की जाएगी। ऐतिहासिक और आर्थिक वर्चस्व के प्रतिमान ध्वस्त कर उत्पादन के साधनों पर समूचे समाज का स्वामित्व होगा। [[अधिकार]] और [[कर्तव्य]] में आत्मार्पित सामुदायिक सामंजस्य स्थापित होगा। [[स्वतन्त्रता|स्वतंत्रता]] और [[समानता]] के सामाजिक राजनीतिक आदर्श एक दूसरे के पूरक सिद्ध होंगे। [[न्याय]] से कोई वंचित नहीं होगा और मानवता एक मात्र [[जाति]] होगी। श्रम की [[संस्कृति]] सर्वश्रेष्ठ और तकनीक का स्तर सर्वोच्च होगा। साम्यवाद सिद्धांततः अराजकता का पोषक हैं जहाँ राज्य की आवश्यकता समाप्त हो जाती है। मूलतः यह विचार समाजवाद की उन्नत अवस्था को अभिव्यक्त करता है। जहाँ समाजवाद में कर्तव्य और अधिकार के वितरण को 'हरेक से अपनी क्षमतानुसार, हरेक को कार्यानुसार' ({{lang-en|From each according to her/his ability, to each according to her/his work}}) के सूत्र से नियमित किया जाता है, वहीं साम्यवाद में 'हरेक से क्षमतानुसार, हरेक को आवश्यकतानुसार' ({{lang-en|From each according to her/his ability, to each according to her/his need}}) सिद्धांत का लागू किया जाता है। साम्यवाद निजी संपत्ति का पूर्ण प्रतिषेध करता है।<ref>राजनीतिक सिद्धांत की रूपरेखा, ओम प्रकाश गाबा, मयूर पेपरबैक्स, २०१०, पृष्ठ- २७, ISBN:८१-७१९८-०९२-९</ref>
 
== इतिहास ==
[[पहला विश्व युद्ध|प्रथम विश्वयुद्ध]], समाजवादी आंदोलन के लिए एक महत्वपूर्ण घटना थी। जहाँ एक ओर तो इसके आरंभ होते ही समाजवादी आंदोलन और उनका अंतरराष्ट्रीय संगठन प्राय: छिन्न-भिन्न हो गया वहीं दूसरी ओर इसके बीच रूस में [[रूसी क्रान्तिक्रांति|बोल्शेविक क्रांति]] (अक्टूबर-नंवबर 1917) हुई और संसार में प्रथम सफल समाजवादी राज्य की नींव पड़ी जिसका संसार के समाजवादी आंदोलनों पर गहरा असर पड़ा। प्रथम महायुद्ध के पूर्व समाजवादी दलों का मत था कि पूंजीवादी व्यवस्था ही युद्धों के लिए उत्तरदायी है और यदि विश्वयुद्ध आरंभ हुआ तो प्रत्येक समाजवादी दल का कर्तव्य होना चाहिए कि वह अपनी पूँजीवादी सरकार की युद्धनीति का विरोध करे और गृहयुद्ध द्वारा समाजवाद की स्थापना के लिए प्रयत्नशील हो। परंतु ज्यों ही युद्ध आरंभ हुआ, [[रूस]] और [[इटली]] के समाजवादी दलों को छोड़कर शेष सब दलों के बहुमत ने अपनी सरकारों की नीति का समर्थन किया। समाजवादियों के केवल एक नगण्य अल्पमत ने ही युद्ध का विरोध किया और आगे चलकर इनमें से कुछ [[व्लादिमीर लेनिन]] और उसके साम्यवादी अंतरराष्ट्रीय संगठन के समर्थक बने। परंतु विभिन्न देशों के समाजवादी आंदोलनों की परस्पर विरोधी युद्धनीति के कारण उनका ऐक्य खत्म हो गया।
 
== रूस में साम्यवाद ==
बोल्शेविक दल रूस के कई समाजवादी दलों में से एक था। 1917 की विशेष परिस्थितियों में इसको सफलता प्राप्त हुई। रूसी समाजवाद की पार्श्वभूमि अन्य यूरोपीय समाजवादों की स्थिति से भिन्न थी। रूसी साम्राज्य यूरोप के अग्रणी देशों से उद्योग धंधों में पिछड़ा हुआ था, अत: यहाँ मजदूर वर्ग बहुसंख्यक और अधिक प्रभावशाली न हो सका। यहाँ लोकतंत्रात्मक शासन और व्यक्तिगत स्वाधीनताओं का भी अभाव था। रूसी बुद्धिजीवी और मध्यमवर्ग इनके लिए इच्छुक था पर जारशाही दमननीति के कारण इनकी प्राप्ति का संवैधानिक मार्ग अवरुद्धप्राय था। इन परिस्थितियों से प्रभावित वहाँ के प्रथम समाजवादी रूस के ग्रामीण कम्यून (समुदाय) को अपने विचारों का आधार मानते थे तथा क्रांतिकारी मार्ग द्वारा जारशाही का नाश लोकतंत्रवाद की सफलता के लिए प्रथम सोपान समझते थे। उन विचारकों में हर्जेन (Herzen), लावरोव (Lavrov), चर्नीशेव्सकी (Chernishevrzky) और बाकुनिन (Bakunin) मुख्य हैं। इनसे प्रभावित होकर अनेक बुद्धिजीवी क्रांति की ओर अग्रसर हुए। इस प्रकार नरोदनिक (Narodnik) जन आंदोलन की नींव पड़ी तथा नारोदन्या वोल्या (Narodnya Volya, '''जनेच्छा''') संगठन बना। सन् 1901 में इसका नाम सामाजिक क्रांतिकारी पार्टी (Social Revolutionary Party) रखा गया। सन् 1917 की बोल्शेविक क्रांति के समय तक यह रूस का सबसे बड़ा समाजवादी दल था, परंतु इसका प्रभावक्षेत्र अधिकांशत: ग्रामीण जनता थी। इसके वाम पक्ष ने बोल्शेविक क्रांति का समर्थन किया।
 
दूसरी समाजवादी विचारधारा, जिसमें बोल्शेविक दल भी सम्मिलित था, [[रूसी सामाजिक जनवादी मज़दूर पार्टी|रूसी सामाजिक जनवादी मजदूर पार्टी]] (Russian Social Democratic Labour Party, R. S. D. L. P.) के नाम से प्रसिद्ध है। इसका प्रभाव मुख्यत: नागरिक मजदूर वर्ग में था। रूस में उद्योग कम थे, परंतु बड़े पैमाने के थे और अपेक्षया अधिक मजदूरों को नौकर रखते थे। अत: इन मजदूरों में राजनीतिक चेतना और संगठन अधिक था। लोकतंत्र के अभाव में मजदूरों का संघर्ष करना कठिन था, इसलिए मजदूर वर्ग क्रांतिकारी प्रभाव में आ गया और जर्मनी जैसी परिस्थितियों के कारण यहाँ के अधिकांश मजदूर नेता भी मार्क्सवादी तथा जर्मनी के सामाजिक लोकतंत्रवादी दल से प्रभावित हुए। सन् 1890 के लगभग एक्सलरोड (Axelrod) और प्लेखानोव (Plekhanov) ने पीटर्सवर्ग (बाद में लेनिनग्राड) में प्रथम मजदूर समूह स्थापित किए जो आगे चलकर 1898 में रूसी सामाजिक लोकतंत्रवादी मजदूर पार्टी के आधार बने।
 
रूसी सामाजिक लोकतंत्रवादी मजदूर पार्टी के नेता कट्टर मार्क्सवादी थे, अत: उन्होंने पुनरावृत्तिवाद को अस्वीकार किया और मार्क्सवाद को विकसित कर रूसी परिस्थितियों में लागू किया। मजदूरों की रहन सहन के स्तर में उन्नति हुई थी, इस सत्य को न मानना कठिन था, परंतु प्लेखानोव ने सिद्ध किया कि नई मशीनों के प्रयोग और मजदूरी में अपेक्षया वृद्धि न होने के कारण पूँजीवादी शोषण की दर बढ़ती जा रही है। बुखारिन (Bukharim) का तर्क था कि साम्राज्यवादी देश उपनिवेशों के शोषण द्वारा अपने श्रमजीवी वर्ग को संतुष्ट रख पाते हैं। ट्राटस्की आदि ने कहा कि पूँजीवादी का संकट सर्वव्यापी हो गया है और इस स्थिति में यह संभव है कि क्रांति पश्चिम यूरोप के अग्रणी देशों में न होकर अपेक्षाकृत पिछड़े देशों में, जहाँ सम्राज्यवादी कड़ी सबसे कमजोर है, वहाँ हो। कुछ विचारकों ने सर्वप्रथम समाजवादी क्रांति का स्थान रूस को बतलाया। ट्राटस्की और लेनिन का मत था कि समाजवादी क्रांति उसी समय सफल हो सकती है जब वह कई देशों में एक साथ फैले, स्थायी क्रांति के बिना केवल एक देश में समाजवाद की स्थापना कठिन है। बाद में लेनिन और स्टालिन ने इस सिद्धांत में संशोधन कर एकदेशीय समाजवाद के आधार पर सोवियत सत्ता का निर्माण किया। निकोलाई लेनिन ने उपर्युक्त विचारों का समन्वय करके बोल्शेविक दल का संगठन और अक्टूबर (नवंबर) क्रांति का नेतृत्व किया।
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==समाजवाद (साम्यवाद) का प्रसार और कठिनाइयाँ==
[[द्वितीय विश्वयुद्ध|द्वितीय महायुद्ध]] के बीच और उसके बाद सोवियत सेनाओं की सफलता तथा अन्य अंतरराष्ट्रीय परिस्थितियों के कारण संसार में समाजवाद (साम्यवाद सहित) का प्रभाव बढ़ा। युद्ध का अंत होने तक न केवल पूर्वी यूरोप सोवियत प्रभावक्षेत्र बन गया, वरन् सन् 1948 ई. तक इनमें से अधिकांश देशों में साम्यवादी राज्य स्थापित हो गए। [[एशिया]] में भी [[चीन]] जैसे विशाल देश में साम्यवाद सफल हुआ और सोवियत तथा जनवादी चीनी गणराज्य के प्रभाव में उत्तरी एशिया और उत्तरी [[वियतनाम]] के शासन साम्यवादी प्रभाव में आ गए। साम्यवाद का असर सभी देशों में बढ़ा। फ्रांस, इटली और हिंदएशिया जैसे देशों में शक्तिशाली साम्यवादी दल हैं। परंतु साम्यवाद के प्रसार ने उस आंदोलन के सामने कई सैद्धांतिक और व्यावहारिक कठिनाइयाँ उपस्थित की हैं-
 
:(१) मार्क्सवाद लेनिनवाद की धारणा थी कि साम्यवादी स्थापना क्रांति द्वारा ही संभव है परंतु [[यूगोस्लाविया]] और [[अल्बानिया]] को छोड़ कर शेष पूर्वीय यूरोप में युद्धकाल में साम्यवादी दलों का अस्तित्व नहीं के बराबर था और बाद में भी [[चेकोस्लोवाकिया]] को छोड़ कदाचित् किसी भी देश में इनका बहुमत नहीं था। पूर्वी यूरोप और उत्तरी कोरिया में से अधिकांश देशों में साम्यवादी शासनों की स्थापना क्रांति द्वारा नहीं, सोवियत प्रभाव द्वारा हुई।