"अरस्तु का विरेचन सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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इसी प्रकार प्रो॰ बूचर का अर्थ भी विचारणीय है। उनके अनुसार विरेचन के दो पक्ष है- एक अभावात्मक और दूसरा भावात्मक। अभावात्मक पक्ष यह है कि वह पहले मनोवेगों को उत्तेजित करें, तदुपरान्त उनका शमनकर मनःशांति प्रदान करे। इसके बाद सम्पन्न कलात्मक परितोष उसका भावात्मक पक्ष है। विरेचन को भावात्मक रूप देना उचित नहीं है। अरस्तू का अभीष्ट केवल मन का सामंजस्य और तज्जन्य विमदता तक ही है, जिसके आधार पर वर्तमान आलोचक रिचर्ड्स ने ‘अन्तवृत्तियों के समंजन’ का सिद्धान्त प्रतिपादन किया है।
 
डॉ॰ [[डॉ॰ नगेन्द्र|नगेन्द्र]] का मत है कि ‘‘विरेचन कला-स्वाद का साधक तो अवश्य है- समंजित मन कला के आनन्द को अधिक तत्परता से ग्रहण करता है, परन्तु विरेचन में कला-स्वाद का सहज अन्तर्भाव नहीं है। अतएव विरेचन सिद्धान्त को भावात्मक रूप देना कदाचित न्यायसंगत नहीं है।’’
 
=== आधुनिकतम मत ===
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== विरेचन का मनोवैज्ञानिक आधार ==
[[मनोविश्लेषण]] शास्त्र के अनुसार भावनाओं की अतृप्ति या दमन मानसिक रोगों का प्रमुख कारण है। इनका विचार भावों की उचित अभिव्यक्ति और परितोष द्वारा हो सकता है। अचेतन मन में पड़े भाव उचित अभिव्यक्ति के अभाव में मानसिक ग्रन्थियों को जन्म देते हैं। इन ग्रंथियों को चेतन स्तर पर लाकर मन की घुटन और अतृप्ति को दूर किया जाता है। इससे मन का तनाव दूर हो जाता है और चित्त एक प्रकार की विशदता एवं हल्कापन अनुभव करता है। मनोविश्लेषण शास्त्र की उन्मुक्त विचार-प्रवाह-प्रणाली का आधार यही प्रक्रिया है। इस दृष्टि से विरेचन का मनोवैज्ञानिक आधार सर्वथा पुष्ट है। [[सिग्मंड फ्रायड|फ्रायड]] आदि विद्वानों ने अनेक स्थलों पर अरस्तू वाक्यों को अपन मत के समर्थन में प्रस्तुत किया है।
 
== विरेचन और करुण रस ==