"रामानन्द": अवतरणों में अंतर

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{{विलय|रामानन्द}}
 
'''स्वामी रामानंद''' को मध्यकालीन भक्ति आंदोलन का महान संत माना जाता है। उन्होंने रामभक्ति की धारा को समाज के निचले तबके तक पहुंचाया। वे पहले ऐसे आचार्य हुए जिन्होंने उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार किया। उनके बारे में प्रचलित कहावत है कि - ''द्वविड़ भक्ति उपजौ-लायो रामानंद।'' यानि उत्तर भारत में भक्ति का प्रचार करने का श्रेय [[स्वामी रामानन्दाचार्य|स्वामी रामानंद]] को जाता है। उन्होंने तत्कालीन समाज में व्याप्त कुरीतियों जैसे छुआछूत, ऊंच-नीच और जात-पात का विरोध किया। किन्तु आपने कभी वर्णसंकरता की अनुमति प्रदान नहीं करी, केवल आपने सभी जातियों के लिए भक्ति मार्ग का द्वार खोला ।
 
== आरंभिक जीवन==
 
स्वामी रामानंद का जन्म [[इलाहाबाद|प्रयाग]](इलाहाबाद) में एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। उनकी माता का नाम सुशीला देवी और पिता का नाम पुण्य सदन था। आरंभिक काल में हीं उन्होंने कई तरह के अलौकिक चमत्कार दिखाने शुरू किये। धार्मिक विचारों वाले उनके माता-पिता ने बालक रामानंद को शिक्षा पाने के लिए काशी के स्वामी राधवानंद के पास [[श्रीमठ]] भेज दिया। श्रीमठ में रहते हुए उन्होंने वेद, पुराणों और दूसरे धर्मग्रंथों का अध्ययन किया और प्रकांड विद्वान बन गये।[[पंचगंगा घाट]] स्थित श्रीमठ में रहते हुए उन्होंने कठोर साधना की। उनके जन्म दिन को लेकर कई तरह की भ्रंतियां प्रचलित है लेकिन अधिकांश विद्वान मानते हैं कि स्वामीजी का जन्म 1300 ईस्वी में हुआ था। यानि आज से कोई सात सौ दस साल पहले.
 
== शिष्य परंपरा ==
स्वामी रामानंद ने राम भक्ति का द्वार सबके लिए सुलभ कर दिया। साथ ही ग्रहस्तो में वर्णसंकरता ना फैले, इस हेतु विरक्त संन्यासी के लिए कठोर नियम भी बनाए। उन्होंने [[अनंतानंद]], [[भावानंद]], [[पीपाजी|पीपा]], [[सेन]] [नाई], [[भगत धन्ना|धन्ना]], [[नाभा दास]], [[नरहर्यानंद]], [[सुखानंद]], [[कबीर]], [[रविदास|रैदास]], [[सुरसरी]], [[पदमावती]] जैसे बारह लोगों को अपना प्रमुख शिष्य बनाया, जिन्हे [[द्वादश महाभागवत]] के नाम से जाना जाता है। इन्हें अपने अपने जाति समाज मे, और इनके क्षेत्र में भक्ति का प्रचार करने का दायित्व सौपा, इनमें कबीर दास और रैदास आगे चलकर काफी ख्याति अर्जित किये। कालांतर में कबीर पंथ, रामानंदीय सम्प्रदाय से अलग रास्ते पर चल पड़ा । रामानंदीय सम्प्रदाय सगुण उपासक है और विशिष्टाद्वेत सिद्धान्त को मानते है । कबीर औऱ [[रविदास]] ने [[निर्गुण ब्रह्म|निर्गुण]] राम की उपासना की। इस तरह कहें तो स्वामी रामानंद ऐसे महान संत थे जिसकी छाया तले सगुण और निर्गुण दोनों तरह के संत-उपासक विश्राम पाते थे। जब समाज में चारो ओर आपसी कटूता और वैमनस्य का भाव भरा ङुआ था, वैसे समय में स्वामी रामानंद ने भक्ति करने वालों के लिए नारा दिया-जात-पात पूछे ना कोई-ङरि को भजै सो हरी का होई. उन्होंने सर्वे प्रपत्तेधिकारिणों मताः का शंखनाद किया और भक्ति का मार्घ सबके लिए खोल दिया। किन्तु वर्णसंकरता नहीं हो, इसलिये संन्यासी/विरक्त के लिए कठोर नियम बनाए, उन्होंने महिलाओं को भी भक्ति के वितान में समान स्थान दिया। उनके द्वारा स्थापित [[रामानंद सम्प्रदाय]] या [[रामावत]] संप्रदाय आज वैष्णव संन्यासी/ साधुओं का सबसे बड़ा धार्मिक जमात है। वैष्णवों के 52 द्वारों में 32 द्वारे केवल रामानंदिय सन्यासियों/विरक्त के हैं। यह सभी द्वारे ब्राह्मण कुल के शिष्यों ने स्थापित किए, इनमे से एक पीपासेन जी क्षत्रिय थे, सम्प्रदाय की शर्त अनुसार यह सभी ब्रह्मचारी हो, यह आवश्यक है । इस संप्रदाय के संन्यासी/ साधु बैरागी भी कहे जाते हैं। इनके अपने अखाड़े भी हैं। यूं तो रामानंद सम्प्रदाय की शाखाएं औऱ उपशाखाएँ देश भर में फैली हैं। लेकिन [[अयोध्या]],[[चित्रकूट धाम|चित्रकूट]],[[नासिक|नाशिक]], [[हरिद्वार]] में इस संप्रदाय के सैकड़ो मठ-मंदिर हैं। [[काशी]] के [[पंचगंगा घाट]] पर अवस्थित [[श्रीमठ]], दुनिया भर में फैले रामानंदियों का मूल गुरुस्थान है। दूसरे शब्दों में कहें तो [[काशी]] का [[श्रीमठ]] हीं सगुण और निर्गुण रामभक्ति परम्परा और [[रामानंद सम्प्रदाय]] का मूल आचार्यपीठ है। वर्तमान में [[जगदगुरू रामानंदाचार्य स्वामी श्रीरामनरेशाचार्यजी महाराज]], श्रीमठ के गादी पर विराजमान हैं। वे न्याय शास्त्र के प्रकांड विद्वान हैं और संन्यासी जगत में समादृत हैं।
 
== भक्ति-यात्रा ==
स्वामी रामानंद ने भक्ति मार्ग का प्रचार करने के लिए देश भर की यात्राएं की। वे पुरी औऱ [[दक्षिण भारत]] के कई धर्मस्थानों पर गये और रामभक्ति का प्रचार किया। पहले उन्हें [[स्वामी रामनुज]] का अनुयाय़ी माना जाता था लेकिन [[श्रीसम्प्रदाय]] का आचार्य होने के बावजूद उन्होंने अपनी उपासना पद्धति में ऱाम और सीता को वरीयता दी। उन्हें हीं अपना उपास्य बनाया। राम भक्ति की पावन धारा को हिमालय की पावन ऊंचाईयों से उतारकर [[स्वामी रामानन्दाचार्य|स्वामी रामानंद]] ने गरीबों और वंचितों की झोपड़ी तक पहुंचाया. वे भक्ति मार्ग के ऐसे सोपान थे जिन्होंने भक्ति साधना को नया आयाम दिया। उनकी पवित्र चरण पादुकायें आज भी श्रीमठ, काशी में सुरक्षित हैं, जो करोड़ों रामानंदियों की आस्था का केन्द्र है। स्वामीजी ने भक्ति के प्रचार में संस्कृत की जगह लोकभाषा को प्राथमिकता गी.उन्होंने कई पुस्तकों की रचना की जिसमें आनंद भाष्य पर टीका भी शामिल है।[[वैष्णवमताब्ज भाष्कर]] भी उनकी प्रमुख रचना है।
 
== चिंतनधारा ==
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== रामानंद का समन्वयवाद ==
तत्कालीन समाज में विभिन्न मत-पंथ संप्रदायों में घोर वैमनस्यता और कटुता को दूर कर हिंदू समाज को एक सूत्रबद्धता का महनीय कार्य किया। स्वामीजी ने मर्यादा पुरूषोत्तम [[राम|श्रीराम]] को आदर्श मानकर रामभक्ति मार्ग का निदर्शन किया। उनकी शिष्य मंडली में तत्कालीन विद्वान कबीरदास, रैदास, सेननाई जैसे निर्गुणवादी संत थे तो दूसरे पक्ष में अवतारवाद के पूर्ण समर्थक अर्चावतार मानकर मूर्तिपूजा करने वाले स्वामी अनंतानंद, भावानंद, सुरसुरानंद, नरहर्यानंद जैसे वैष्णव ब्राह्मण सगुणोपासक आचार्य भक्त भी थे। तो पीपानरेश जैसे क्षत्रिय, सगुणोपासक भक्त भी थे । उसी परंपरा में कृष्णदत्त पयोहारी जैसा तेजस्वी साधक और गोस्वामी तुलसीदास जैसा विश्व विश्रुत महाकवि भी उत्पन्न हुआ। आचार्य रामानंद के बारे में प्रसिद्ध है कि तारक राममंत्र का उपदेश उन्होंने पेड़ पर चढ़कर दिया था ताकि सब जाति के लोगों के कान में पड़े और अधिक से अधिक लोगों का कल्याण हो सके।
 
आचार्यपाद ने स्वतंत्र रूप से [[श्रीसंप्रदाय]] का प्रवर्तन किया। इस संप्रदाय को रामानंदी अथवा रामावत संप्रदाय भी कहते हैं। इसके 32 ऋषि गोत्री ग्रहस्त अनुयायी, वैष्णव ब्राह्मण है । इस सम्प्रदाय के सन्यासियों या विरक्त को वैरागी कहा जाता है । अन्य कई समाज जैसे, धन्नावंशी समाज, सेन समाज, रैदासी समाज इत्यादि रामन्दाचार्य जी के अनुयायी है । रामानन्दाचार्य जी ने बिखरते और नीचे गिरते हुए हिन्दू धर्म को मजबूत बनाने की भावना से भक्ति मार्ग में जाति-पांति के भेद को व्यर्थ बताया और कहा कि भगवान की शरणागति का मार्ग सबके लिए समान रूप से खुला है-
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(1) [[वैष्णवमताब्ज भास्कर]]: (संस्कृत), <br />
(2) [[श्रीरामार्चनपद्धतिः]] (संस्कृत), <br />
(3) [[श्रीरामरक्षास्तोत्रम्|रामरक्षास्तोत्र]] (हिन्दी), <br />
(4) [[सिद्धान्तपटल]] (हिन्दी), <br />
(5) [[ज्ञानलीला]] (हिन्दी), <br />