"विकृतिविज्ञान": अवतरणों में अंतर

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जिन कारणों से [[शरीर]] के विभिन्न अंगों की साम्यावस्था, या स्वास्थ्यावस्था, नष्ट होकर उनमें विकृतियाँ उत्पन्न होती हैं, उनको [[हेतुकीकारक]] (Etiological factors) और उनके शास्त्र को [[रोग हेतुविज्ञान|हेतुविज्ञान]] (Etiology) कहते हैं। ये कारण अनेक हैं। इन्हें निम्नलिखित भागों में विभक्त किया गया है :
 
*1. वंशानुगत, जन्मजात या शरीर रचना संबंधी (Hereditary Congenital or Constitutional),
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== विकृतियाँ ==
शरीर के अंगों में होनेवाली विकृतियाँ अव्यक्त होते हुए भी [[प्रतिक्रिया]] (Reaction), [[फुल्लन|सूजन]] (Inflammation), [[जीर्णोद्धार]] (Repair), वृद्धि में बाधा (Disturbance in growth), [[अपजनन]] (Degeneration), [[अर्बुद]] (Tumour) इत्यादि कुछ इनी-गिनी सामान्य प्रकार की होती है। शरीर के भीतर इन विकृतियों का स्वरूप जब आसानी से इंद्रिय ग्राह्य होता है, तब उसको स्थूल (grross) विकृति कहते हैं तथा सूक्ष्म स्वरूप की विकृति होने पर इन विकृतियों को देखने के लिए जब [[सूक्ष्मदर्शी]] यंत्र की आवश्यकता होती है तब उसको सूक्ष्म (microscopic) विकृति कहते हैं।
 
=== विकृति और रोग में भेद ===
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=== सूजन (Inflammation) ===
आधुनिक विचारक यह मानते हैं कि [[फुल्लन|सूजन]], सजीव शरीरस्थ कोशिकाओं के द्वारा किसी भी क्षोभ (irritation) के विरोध में की गई प्रतिक्रिया मात्र है। क्षोभ के चार कारण माने गए हैं :
*(1) आघात (Injury),
*(2) जीवाण्विक कारणों द्वारा (Bacterial Agency),
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=== ऊतकक्षय (Tissue Necrosis) ===
शरीर का निर्माण करनेवाले विभिन्न [[उत्तक|ऊतकोंऊतक]]ों के (Tissues) के ह्रास, विनाश तथा क्षति को सामान्य '''ऊतकक्षय''' कहते हैं।
 
'''कारण''' - ऊतकक्षय के निम्न कारण प्रमुख हैं :