"नृतत्वशास्त्र के सिद्धांत": अवतरणों में अंतर

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होमोसैपियंस (मानव) की उत्पत्ति, भूत से वर्तमान काल तक उनके परिवर्तन, परिवर्तन की प्रक्रिया, संरचना, मनुष्यों और उनकी निकटवर्ती जातियों के सामाजिक संगठनों के कार्य और इतिहास, मनुष्य के भौतिक और सामाजिक रूपों के प्रागैतिहासिक और मूल ऐतिहासिक पूर्ववृत्त और मनुष्य की भाषा का - जहाँ तक वह मानव विकास की दिशा निर्धारित करे और सामाजिक संगठन में योग दे - अध्ययन नृतत्वशास्त्र की विषय वस्तु है। इस प्रकार नृतत्वशास्त्र जैविक और सामाजिक विज्ञानों की अन्य विधाओं से अविच्छिन्न रूप से संबद्ध है।
 
[[चार्ल्स डार्विन|डार्विन]] ने 1871 में मनुष्य की उत्पत्ति पशु से या अधिक उपयुक्त शब्दों में कहें तो प्राइमेट (वानर) से - प्रामाणिक रूप से सिद्ध की यूरोप, अफ्रीका, दक्षिणी पूर्वी और पूर्वी एशिया में मानव और आद्यमानव के अनेक जीवाश्मों (फासिलों) की अनुवर्ती खोजों ने विकास की कहानी की और अधिक सत्य सिद्ध किया है। मनुष्य के उदविकास की पाँच अवस्थाएँ निम्नलिखित है :-
 
'''ड्राईपिथेसीनी अवस्था''' (Drypithecinae Stage) वर्तमान वानर (ape) और मनुष्य के प्राचीन जीवाश्म अधिकतर यूरोप, उत्तर अफ्रीका और भारत में पंजाब की शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में पाये गए हैं।