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'''मोहन जोदड़ो''' पाकिस्तान के सिन्ध प्रांत का एक पुरातात्विक स्थल है। [[सिंधु घाटी सभ्यता|सिन्धु घाटी सभ्यता]] के अनेकों अवशेष यहाँ से प्राप्त हुए हैं।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/india/2014/09/140906_hadappa_civilization_script_vr|title=क्या हड़प्पा की लिपियाँ पढ़ी जा सकती हैं?}}</ref>
 
==मोहन जोदड़ो सभ्यता==
 
मोहन जोदड़ो का सिन्धी भाषा में अर्थ है " '''मुर्दों का टीला''' "। यह दुनिया का सबसे पुराना नियोजित और उत्कृष्ट शहर माना जाता है। यह सिंघु घाटी सभ्यता का सबसे परिपक्व शहर है। यह नगर अवशेष सिन्धु नदी के किनारे [[सक्खर ज़िला|सक्खर ज़िले]] में स्थित है। मोहन जोदड़ो शब्द का सही उच्चारण है 'मुअन जो दड़ो'। इसकी खोज राखालदास बनर्जी ने 1922 ई. में की। भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के महानिदेशक जान मार्शल के निर्देश पर खुदाई का कार्य शुरु हुआ। यहाँ पर खुदाई के समय बड़ी मात्रा में इमारतें, धातुओं की मूर्तियाँ, और मुहरें आदि मिले। पिछले 100 वर्षों में अब तक इस शहर के एक-तिहाई भाग की ही खुदाई हो सकी है, और अब वह भी बंद हो चुकी है। माना जाता है कि यह शहर 125 हेक्टेयर क्षेत्र में हुआ था तथा इस में जल कुड भी हुआ करता था!
स्थिति- पाकिस्तान के सिंध प्रांत का लरकाना जिला।
 
==इतिहास==
 
'''मोहन जोदड़ो-''' ([[सिंधी]]:موئن جو دڙو और [[उर्दू भाषा|उर्दू]]: موئن جو دڑو) [[सिंध]] की वादी की क़दीम तहज़ीब का एक मरकज़ था। यह [[लाड़काना|लड़काना]] से बीस [[सहस्रमान|किलोमीटर]] दूर और सक्खर से 80 किलोमीटर जनूब मग़रिब में वाक़िअ है। यह वादी [[सिंध]] के एक और अहम मरकज़ [[हड़पा]] से 400 मील दूर है यह शहर 2600 क़बल मसीह मौजूद था और 1700 क़बल मसीह में नामालूम वजूहात की बिना पर ख़त्म हो गया। ताहम माहिरीन के ख़्याल में दरयाऐ सिंध के रख की तबदीली, सैलाब, बैरूनी हमला आवर या ज़लज़ला अहम वजूहात हो सकती हैं।
 
मोहन जोदड़ो- को 1922ए में बर्तानवी माहिर असारे क़दीमा [[जॉन मार्शल (पुरातत्वशास्त्री)|सर जान मार्शल]] ने दरयाफ़त किया और इन की गाड़ी आज भी मोहन जोदड़ो- के अजायब ख़ाने की ज़ीनत है। लेकिन एक मकतबा फ़िक्र ऐसा भी है जो इस तास्सुर को ग़लत समझता है और इस का कहना है कि उसे ग़ैर मुनक़िसम हिंदूस्तान के माहिर असारे क़दीमा आर के भिंडर ने 1911ए में दरयाफ़त किया था। मुअन जो दड़ो- कनज़रवेशन सेल के साबिक़ डायरेक्टर हाकिम शाह बुख़ारी का कहना है कि "आर के भिंडर ने बुध मत के मुक़ामि मुक़द्दस की हैसीयत से इस जगह की तारीख़ी हैसीयत की जानिब तवज्जो मबज़ूल करवाई, जिस के लगभग एक अशरऐ बाद सर जान मार्शल यहां आए और उन्हों ने इस जगह खुदाई शुरू करवाई।यह शहर बड़ी तरतीब से बसा हुआ था। इस शहर की गलियां खुली और सीधी थीं और पानी की निकासी का मुनासिब इंतिज़ाम था। अंदाज़न इस में 35000 के क़रीब लोग रिहाइश पज़ीर थे। माहिरीन के मुताबिक यह शहर सात मरत्तबा उजड़ा और दुबारा बसाया गया जिस की अहम तरीन वजह दरयाऐ सिंध का सैलाब था।यहाँ दुनिया का प्रथम स्नानघर मिला है जिसका नाम [[बृहत्स्नानागार]] है और अंग्रेजी में Great Bath. ये शहर [[अक़वाम मुतहदा]] के इदारा बराए तालीम, साईंस ओ- सक़ाफ़त [[युनीसको]] की जानिब से आलमी विरसा दिए क़रार गए मुक़ामात में शामिल हुए।"<ref>[http://jareeda.iucnp.org/janmar2006/aksi.htm/ जर यदा]</ref>
 
[[File:Panoramic view of the stupa mound and great bath in Mohenjodaro.JPG|thumb|मोहन जोदड़ो सभ्यता]]
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==कृषि==
 
खुदाई में यह बात भी उजागर हुई है कि यहाँ भी खेतिहर और पशुपालक सभ्यता रही होगी। सिंध के पत्थर, तथा राजस्थान के ताँबो से बनाये गये उपकरण यहाँ खेती करने के लिये काम में लिये जाते थे। इतिहासकार [[इरफान हबीब|इरफ़ान हबीब]] के अनुसार यहाँ के लोग [[रबी की फ़सल|रबी]] की फसल बोते थे। [[गेहूँ]], [[सरसों]], [[कपास]], [[जौ]] और [[चना|चने]] की खेती के यहाँ खुदाई में पुख़्ता सबूत मिले हैं। माना जाता है कि यहाँ और भी कई तरह की खेती की जाती थी, केवल कपास को छोडकर यहाँ सभी के [[बीज]] मिले है। दुनिया में [[सूत]] के दो सबसे पुराने कपड़ों में से एक का नमूना यहाँ पर ही मिला था। खुदाई में यहाँ कपड़ों की रंगाई करने के लिये एक कारख़ाना भी पाया गया
जल्द ही आत्माओं का बसर होगा यहाँ ।
 
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[[File:Dancing girl. Mohenjodaro.jpg|thumb|प्रसिद्ध “नृतकी” शिल्प]]
[[पुरातत्त्वशास्त्री]] [[काशीनाथ दीक्षित]] के नामकरण के अनुसार यहाँ “डीके-जी” परिसर हैं, जहाँ ज्यादातर उच्च वर्ग के घर हैं। इसी तरह यहाँ पर ओर डीके-बी,सी आदि नाम से जाने जाते हैं। इन्हीं जगहों पर प्रसिद्ध “नृतकी” शिल्प खुदाई के समय प्राप्त हुई। यह मूर्ति अब [[दिल्ली]] के [[राष्ट्रीय पुरातात्विक संग्रहालय, नई दिल्ली|राष्ट्रीय संग्रहालय]] में है।
 
==संग्रहालय==
मोहन जोदड़ो का संग्रहालय छोटा ही है। मुख्य वस्तुएँ [[कराची]], [[लाहौर]], [[दिल्ली]] और [[लंदन]] में हैं। यहाँ काले पड़ गए [[गेहूँ]], [[ताँबाताम्र|ताँबे]] और [[कांसी|कांसी]] के [[पकवान|बर्तन]], मोहरें, [[वाद्य संगीत|वाद्य]], [[चॉक]] पर बने विशाल मृद-भांड, उन पर काले-भूरे चित्र, चौपड़ की गोटियाँ, दीये, माप-तौल पत्थर, ताँबे का आईना, मिट्टी की बैलगाड़ी और दूसरे खिलौने, दो पाटन वाली चक्की, कंघी, मिट्टी के कंगन, रंग-बिरंगे पत्थरों के मनकों वाले हार और पत्थर के औज़ार मौजूद हैं। संग्रहालय में काम करने वाले अली नवाज़ के अनुसार यहाँ कुछ सोने के गहने भी हुआ करते थे जो चोरी हो गए।
 
एक खास बात यहाँ यह है जिसे कोई भी महसूस कर सकता है। अजायबघर ( संग्रहालय ) में रखी चीज़ों में औजार तो हैं, पर हथियार कोई नहीं है। इस बात को लेकर विद्वान सिंधु सभ्यता में शासन या सामाजिक प्रबंध के तौर-तरीके को समझने की कोशिश कर रहें हैं। वहाँ अनुशासन ज़रूर था, पर ताकत के बल पर नहीं बुद्धि के बल पर।
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==कला==
सिंधु घाटी के लोगों में [[कला]] या [[सृजना]] का महत्त्व अधिक था। वास्तुकला या नगर-नियोजन ही नहीं, [[धातु]] और [[पत्थर]] की मूर्तियाँ, मृद्-भांड, उन पर चित्रित [[होमो सेपियन्स|मनुष्य]], [[वनस्पति]] और पशु-पक्षियों की छवियाँ, सुनिर्मित मुहरें, उन पर सूक्ष्मता से उत्कीर्ण आकृतियाँ, खिलौने, केश-विन्यास, आभूषण और सुघड़ अक्षरों का लिपिरूप सिंधु सभ्यता को तकनीक-सिद्ध से अधिक कला-सिद्ध प्रदर्शित करता है। एक पुरातत्त्ववेत्ता के अनुसार सिंधु सभ्यता की विशेषता उसका सौंदर्य-बोध है, “जो राज-पोषित या धर्म-पोषित न होकर समाज-पोषित था।"
 
== सन्दर्भ ==