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'''अरविन्द अडिग''' ([[कन्नड़]]: ಅರವಿಂದ ಅಡಿಗ, जन्म 23 अक्टूबर 1974) [[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेजी]] में लिखने वाले [[भारत|भारतीय]] लेखक हैं, जिन्हें अपने पहले [[उपन्यास]] ''द व्हाइट टाइगर'' (श्वेत बाघ) के लिए [[मैन बुकर पुरस्कार]] से सम्मानित किया गया है।
 
== प्रारंभिक जीवन ==
अरविन्द के कन्नड़ माता-पिता [[कर्नाटक]] के [[मैंगलुरु|मैंगलोर]] शहर से हैं। इनका जन्म 1974 में [[चेन्नई]] में हुआ और परवरिश मैंगलोर में हुई। कनड़ हाई स्कूल और सेंट एलोसियस महाविद्यालय में अपनी शिक्षा पूरी करके इन्होंने 12वीं कक्षा की परीक्षा में पूरे प्रदेश में पहला स्थान प्राप्त किया। इसके पश्चात अरविन्द सपरिवार [[सिडनी]], [[ऑस्ट्रेलिया]] में बस गए जहाँ इन्होंने जेम्स रूस एग्रीकल्चरल हाई स्कूल में पढ़ाई की। इसके बाद इन्होंने कोलम्बिया विश्वविद्यालय, [[न्यूयॉर्क|न्यू यार्क]] और मैग्डेलन कॉलेज, [[ऑक्सफर्ड]] से [[अंग्रेजी साहित्य]] की उच्च शिक्षा प्राप्त की।<ref name=webduniya>{{cite news|url=http://hindi.webdunia.com/miscellaneous/literature/articles/0810/16/1081016047_1.htm|title='बलराम हलवाई' से 'बुकर' तक - अरविन्द अडिगा बुकर से सम्मानित|author=स्मृति जोशी|publisher=वेबदुनिया हिन्दी|date=2008-10-16|accessdate=2008-10-16}}</ref>
 
== पत्रकारिता ==
अरविन्द ने अपने व्यावसायिक जीवन की शुरुआत की [[पत्रकार]] के रूप में। इनके लेख अनेक प्रसिद्ध अंग्रेजी अखबारों और पत्रिकाओं में छपे हैं, जिनमें शामिल हैं, [[फाइनैंशियल टाइम्स]], [[मनी]] और [[वाल स्ट्रीट जर्नल]]। इन्होंने [[टाइम (अंग्रेज़ी पत्रिका)|टाइम पत्रिका]] के लिए तीन साल तक पत्रकारिता की। टाइम पत्रिका के लिए शोध करते हुए ये [[कानपुर]] आए जहाँ व्याप्त प्रदूषण पर इन्होंने रिपोर्ट लिखी जिसमें खुलासा किया गया कि कानपुर विश्व का सातवां सबसे प्रदूषित शहर है।<ref name=kanpur>{{cite news|url=http://in.jagran.yahoo.com/news/national/general/5_1_4913263/|title=बुकर विजेता का कानपुर से भी है नाता|publisher=याहू जागरण|date=2008-10-16|accessdate=2008-10-16}}</ref> इसके बाद अरविन्द स्वतंत्र पत्रकार बन गए और अपना पहला उपन्यास ''द व्हाइट टाइगर'' (श्वेत बाघ) लिख डाला।
 
== पहला उपन्यास ==
अरविन्द ने इस उपन्यास की परिकल्पना 2005 में ही कर ली थी, जब ये बहुत समय बाद भारत वापिस लौटे तो उनके मन में जो उथल-पुथल मची उसने इन्हें उपन्यास पर काम शुरु करने को प्रेरित किया।<ref name=webduniya /> यह उपन्यास एक आम आदमी बलराम हलवाई की कहानी है, जो रिक्शा चालक के लड़के से सफल व्यवसायी बनने तक का सफर तय करता है। परिस्थितियों के थपेड़ों से बलराम [[बिहार]] से दिल्ली आता है और ड्राइवर बन जाता है। अपने मालिक की हत्या करके वह [[बंगलौर|बंगलूरु]] पहुंचता है जहाँ सफल व्यवसायी बन जाता है। फिर एक दिन [[चीन|चीनी]] प्रधानमंत्री के भारत आगमन की खबर सुनकर वह सात चिट्ठियों के माध्यम से अपने जीवन की कहानी उनको लिखता है।<ref name=bhaskar>{{cite news|url=http://www.bhaskar.com/2008/10/16/0810160947_arvind_adiga.html|title=फिर भारतीय लेखक को बुकर|publisher=दैनिक भास्कर|date=2008-10-16|accessdate=2008-10-16}}</ref> बलराम की कहानी के माध्यम से आर्थिक प्रगति की चका-चौंध में भारत का गरीब वर्ग किस तरह जी रहा है, इसका सफलतापूर्वक वर्णन किया गया है।<ref name=jagran>{{cite news|url=http://in.jagran.yahoo.com/news/international/general/3_5_4909580/|title=अदिगा ने जीता बुकर पुरस्कार|publisher=याहू जागरण|author=|date=2008-10-16|accessdate=2008-10-16}}</ref> इस उपन्यास का कथानक वर्तमान में हो रही आर्थिक उथल-पुथल की पृष्ठभूमि में और भी प्रासंगिक हो गया है।
 
== बुकर पुरस्कार ==
अरविन्द को इस उपन्यास के लिए वर्ष 2008 के मैन बुकर पुरस्कार से सम्मानित किया गया है। उन्हें यह पुरस्कार भारत की एक नई तस्वीर उकेरने के लिए दिया गया जिसने निर्णायक समिति के सदस्यों के स्तब्ध भी किया और उनका मनोरंजन भी किया। साथ ही अरविन्द ने खलनायक के प्रति घृणा की अपेक्षा मिश्रित भावनाएँ जगाने का मुश्किल काम सफलतापूर्वक कर डाला है।<ref name=jagran /> यह पुरस्कार पाने वाले वे भारतीय मूल के पांचवें लेखक हैं ([[विद्याधर सूरजप्रसाद नैपाल|वी एस नाइपॉल]], [[अरुंधति राय]], [[सलमान रुश्दी|सलमान रश्दी]] और [[किरन देसाई]] के पश्चात्)।<ref name=navbharat>{{cite news|url=http://navbharattimes.indiatimes.com/articleshow/3597189.cms|title=अरविंद अडिगा को मैन बुकर पुरस्कार|author=|publisher=नवभारत टाइम्स|date=2008-10-15|accessdate=2008-10-16}}</ref> साथ ही अपने पहले उपन्यास पर यह पुरस्कार पाने वले ये तीसरे लेखक हैं और सबसे कम उम्र में बुकर पाने वाले लेखकों में दूसरे हैं।<ref name=janpath>{{cite news|url=http://janpathsamachar.co.in/newsdtl.php?type=QTAy&id=QTA5RS9dSTAzaC9S|title=अरविंद अडिगा ने जीता बुकर|author=|publisher=जनपथ समाचार|date=2008-10-16|accessdate=2008-10-16}}</ref> इस वर्ष बुकर पुरस्कार के लिए जिन लेखकों के नाम पर विचार किया गया उनमें भारतीय मूल के एक और लेखक [[अमिताभ घोष]] शामिल थे। अरविन्द ने यह पुरस्कार [[दिल्ली]] शहर को समर्पित किया है।<ref name=bbc>{{cite news|url=http://www.bbc.co.uk/hindi/entertainment/story/2008/10/081014_booker_adiga.shtml|title=अरविंद अडिगा को मिला बुकर पुरस्कार|author=|publisher=बी बी सी हिन्दी|date=2008-10-16|accessdate=2008-10-16}}</ref>
 
== सन्दर्भ ==