Birth place
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'''रामानुजाचार्य''' ([[अंग्रेज़ी भाषा|अंग्रेजी]]: Ramanuja [[जन्म]]: १०१७ - [[मृत्यु]]: ११३७) [[विशिष्टाद्वैत]] वेदान्त के प्रवर्तक थे। वह ऐसे [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव]] सन्त थे जिनका भक्ति [[परम्परा]] पर बहुत गहरा प्रभाव रहा।
 
वैष्णव आचार्यों में प्रमुख रामानुजाचार्य की शिष्य परम्परा में ही [[रामानन्द]] हुए जिनके शिष्य [[कबीर]] और [[सूरदास]] थे। रामानुज ने [[वेदान्त दर्शन]] पर आधारित अपना नया दर्शन ''विशिष्ट अद्वैत वेदान्त'' लिखा था।
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== संक्षिप्त जीवनी ==
१०१७ ईसवी सन् में रामानुज का जन्म दक्षिण भारत के [[तमिल नाडु]] प्रान्त में हुआ था। बचपन में उन्होंने [[कांचीपुरम|कांची]] जाकर अपने गुरू यादव प्रकाश से वेदों की शिक्षा ली। रामानुजाचार्य आलवार सन्त यमुनाचार्य के प्रधान शिष्य थे। गुरु की इच्छानुसार रामानुज से तीन विशेष काम करने का संकल्प कराया गया था - ब्रह्मसूत्र, विष्णु सहस्रनाम और दिव्य प्रबन्धम् की टीका लिखना। उन्होंने गृहस्थ आश्रम त्याग कर श्रीरंगम् के यतिराज नामक संन्यासी से [[संन्यास|सन्यास]] की दीक्षा ली।
 
मैसूर के श्रीरंगम् से चलकर रामानुज शालिग्राम नामक स्थान पर रहने लगे। रामानुज ने उस क्षेत्र में बारह वर्ष तक [[वैष्णव सम्प्रदाय|वैष्णव धर्म]] का प्रचार किया। उसके बाद तो उन्होंने वैष्णव धर्म के प्रचार के लिये पूरे [[भारतवर्षभारत]]वर्ष का ही भ्रमण किया। ११३७ ईसवी सन् में १२० वर्ष की आयु पूर्ण कर वे [[मृत्यु|ब्रह्मलीन]] हुए।
 
उन्होंने यूँ तो कई ग्रन्थों की रचना की किन्तु ब्रह्मसूत्र के भाष्य पर लिखे उनके दो मूल ग्रन्थ सर्वाधिक लोकप्रिय हुए - ''श्रीभाष्यम्'' एवं ''वेदान्त संग्रहम्''।
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* [[आदि शंकराचार्य]]
* [[मध्वाचार्य]]
* [[सुदर्शनाचार्य|जगद्गुरु सुदर्शनाचार्य]]
 
==सन्दर्भ==