"सुलतानपुर जिला": अवतरणों में अंतर

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|Local = Sultanpur district
|State = उत्तर प्रदेश
|Division = [[फ़ैज़ाबाद|फैजाबाद]]
|HQ = सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश
|शासक पद 1 = [[सांसद]]
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|Literacy = 71.14
|SexRatio = 1000:922
|Tehsils = ''[[लंभुआ (तहसील), सुलतानपुर|लम्भुआ]], [[कादीपुर]], [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]], [[सुलतानपुर जिला|जयसिंहपुर]], [[सुलतानपुर जिला|बल्दीराय]]''
|LokSabha = [[सुलतानपुर लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र|सुलतानपुर]], [[अमेठी लोक सभा निर्वाचन क्षेत्र| अमेठी]] (आंशिक)
|Assembly = 5
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| पिन कोड = २२८००१
}}
[[उत्तर प्रदेश]] [[भारत]] देश का सर्वाधिक जिलों वाला [[राज्य]] है, जिसमें कुल 75 जिले हैं। आदिगंगा [[गोमती नदी (उत्तर प्रदेश)|गोमती]] नदी के तट पर बसा [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] इसी राज्य का एक प्रमुख जिला है। यहाँ के लोग सामान्यत: [[वाराणसी]], [[इलाहाबाद]], [[कानपुर]] और [[लखनऊ]] जिलों में पढ़ाई करने जाते हैं। सुलतानपुर जिले की स्थानीय बोलचाल की भाषा [[अवधी]] और सम्पर्क भाषा [[खड़ीबोली|खड़ी बोली]] है।
 
== इतिहास ==
<ref>{{cite web|url= http://sultanpur.nic.in/intro.htm|title=अधिकारीक जालस्थल}}</ref> [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]], [[उत्तर प्रदेश]] राज्य का एक ऐसा भाग है जहां अंग्रेजी शासन से पहले उदार नवाबों का राज था। पौराणिक मान्यतानुसार आज का [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] जिला पूर्व में [[गोमती नदी]] के तट पर मर्यादा पुरुषोत्तम "भगवान श्री [[राम]]" के पुत्र '''कुश''' द्वारा बसाया गया [[सुलतानपुर जिला|कुशभवनपुर]] नाम का नगर था। [[ख़िलजी वंश|खिलजी वंश]] के सुल्तान ने भारशिवो के राजा नंदकुवर भर एक महान प्रतापी राजा थे इनको खिलजी वंश के सुल्तानों ने वैश्यराजपूतों के साथ मिलकर छल पूर्वक पराजित किया और खिलजी वंश के सुल्तान ने वैश्य राजपूतों को भाले सुल्तान की उपाधि प्रदान की इसी भाले सुल्तान की उपाधि के नाम पर इस नगर को [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] के नाम से बसाया गया । यहां की भौगोलिक उपयुक्तता और स्थिति को देखते हुए [[अवध]] के नवाब सफदरजंग ने इसे [[अवध]] की राजधानी बनाने का प्रयास किया था, जिसमें उन्हें सफलता नहीं मिली। स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] का अहम स्थान रहा है। [[१८५७ का प्रथम भारतीय स्वतंत्रता संग्राम]] में ०९ जून १८५७ को [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] के तत्कालीन डिप्टी-कमिश्नर की हत्या कर इसे स्वतंत्र करा लिया गया था। संग्राम को दबाने के लिए जब अंग्रेजी सेना ने कदम बढ़ाया तो चाँदा के '''कोइरीपुर''' में अंग्रेजों से जमकर युद्ध हुआ था। चाँदा, गभड़िया नाले के पुल, अमहट और कादू नाले पर हुआ ऐतिहासिक युद्ध [[उत्तर प्रदेश]] की '''फ्रीडम स्ट्रगल इन उत्तर प्रदेश''' नामक किताब में दर्ज तो है लेकिन आज तक उन स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों की याद में कुछ भी नहीं किया गया। न स्तंभ बने न शौर्य-लेख के शिलापट। यहां की रियासतों में मेहंदी हसन, नानेमऊ कोट, राजा '''दियरा''' एवं कुड़वार जैसी रियासतों का नाम इतिहास के पन्नों में दर्ज है।
 
== भूगोल ==
जनपद [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] की उत्तरी सीमा पर [[अयोध्या]] एवं [[अम्बेडकर नगर ज़िला|अम्बेडकर नगर]], उत्तर पश्चिम में [[बाराबंकी]], पूरब में [[जौनपुर]] व [[आज़मगढ़|आजमगढ़]], पश्चिम में [[अमेठी]] व दक्षिण में [[प्रतापगढ़ जिला, उत्तर प्रदेश|प्रतापगढ़]] जिले स्थित हैं। जनपद में बहने वाली "अादि गंगा" [[गोमती नदी]] प्राकृतिक दृष्टि से जनपद को लगभग दो बराबर भागों में बांटती है। [[गोमती नदी]] उत्तर पश्चिम के समीप इस जिले में प्रवेश करती है और टेढ़ी-मेढ़ी बहती हुई दक्षिण पूर्व द्वारिका के निकट [[जौनपुर]] में प्रवेश करती है। इसके अतिरिक्त यहाँ गभड़िया नाला, मझुई नाला, जमुरया नाला, तथा भट गांव ककरहवा, सोभा, महोना आदि झीले हैं। जनपद की भूमि मुख्य रूप से मटियार है।
प्रशासनिक दृष्टि से जनपद [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] पाँच तहसील- [[लंभुआ (तहसील), सुल्तानपुर|लम्भुआ]], [[कादीपुर]], [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]], [[जयसिंहपुर]] और [[बल्दीराय]] व 14 विकास खंड- अखंड नगर, दोस्तपुर, करौंदी कला, [[कादीपुर]], मोतिगरपुर, जयसिंहपुर, कुरेभार, प्रतापपुर कमैचा, लंभुआ, भदैया, दूबेपुर, धनपतगंज, कुड़वार व बल्दीराय है।
 
== यातायात और परिवहन ==
 
सुलतानपुर सड़क और रेल मार्ग द्वारा [[लखनऊ]], [[कानपुर]], [[अमेठी]], [[मुसाफिरखाना]], [[जगदीशपुर]], [[इलाहाबाद|प्रयागराज]], [[जौनपुर]], [[वाराणसी]] (भूतपूर्व बनारस), [[प्रतापगढ़ जिला, उत्तर प्रदेश|प्रतापगढ़]], [[बाराबंकी]], [[फ़ैज़ाबाद|फैजाबाद]], [[अम्बेडकर नगर ज़िला|अंबेडकर नगर]] और उत्तर भारत के अन्य शहरों से भली-भाँति जुड़ा हुआ है।
 
=== हवाई मार्ग ===
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=== रेल मार्ग ===
[[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] से रेल मार्ग द्वारा [[दिल्ली]], [[लखनऊ]], [[मुम्बई]], [[अजमेर]],[[अहमदाबाद]], [[आगरा]], [[कोलकाता]], [[पटना]], [[वाराणसी]], [[जौनपुर]], [[इलाहाबाद|प्रयागराज]], [[अयोध्या]], [[प्रतापगढ़ जिला, उत्तर प्रदेश|प्रतापगढ़]], [[मुसाफिरखाना]] और [[जगदीशपुर]] आदि शहरों में रेल मार्ग द्वारा आसानी से पहुँचा जा सकता है।
 
=== सड़क मार्ग ===
सुलतानपुर सड़क मार्ग द्वारा भारत के कई प्रमुख शहरों से जुड़ा हुआ है।
[[दिल्ली]], [[कानपुर]], [[लखनऊ]], [[वाराणसी]], [[इलाहाबाद|प्रयागराज]], [[प्रतापगढ़ जिला, उत्तर प्रदेश|प्रतापगढ़]], [[जौनपुर]], [[फ़ैज़ाबाद|फैजाबाद]], [[बाराबंकी]], [[अम्बेडकर नगर ज़िला|अंबेडकर नगर]], [[रायबरेली]], [[अमेठी]], [[गौरीगंज]] और अन्य जगहों से सुलतानपुर आसानी से पहुँचा जा सकता है।
 
== विभिन्न शहरों से दूरी ==
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* '''[[जगदीशपुर]]:-''' यह क्षेत्र सुलतानपुर शहर से लगभग ६० किलोमीटर की दूरी पर [[राष्ट्रीय राजमार्ग]] सं. ५६ पर स्थित है। निहालगढ़, [[लखनऊ]]-[[वाराणसी]] मार्ग पर निकटतम रेलवे स्टेशन] है। निहालगढ़ तहसील [[मुसाफिरखाना]] से लगभग २७ कि.मी. की दूरी पर स्थित है। यहाँ "भारत हेवी इलेक्ट्रिकल्स लिमिटेड" [[:en:BHEL|BHEL]] नामक एक बड़ा औद्योगिक क्षेत्र है। यह एक प्रमुख उर्वरक उत्पादक क्षेत्र है। यह स्थान अपने तेल-शोधक कारखाने के लिए भी प्रसिद्ध है।
* '''हिंदुस्तान एयरोनॉटिक्स लिमिटेड, कोरवा, [[अमेठी]]:-''' यह "सुलतानपुर शहर" से ३० कि.मी. की दूरी पर [[रायबरेली]]-[[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] रोड पर स्थित है।
 
== प्रमुख स्थान ==
* '''सुंदर लाल मेमोरियल हॉल''':- "सुंदर लाल मेमोरियल हॉल" "सुलतानपुर शहर" के क्राइस्ट चर्च के दक्षिणी दिशा की ओर स्थित है। इसका निर्माण '''[[महारानी विक्टोरिया]]''' की याद में उनकी पहली जयन्ती पर करवाया गया था। वर्तमान समय में इसे '''विक्टोरिया मंजिल''' के नाम से जाना जाता है। लेकिन अब इस जगह पर "म्युनीसिपल बोर्ड" का कार्यालय है।
* '''सीताकुंड''':- यह "सुलतानपुर शहर" में [[गोमती नदी (उत्तर प्रदेश)|गोमती नदी]] के तट पर स्थित है। [[चैत रामनवमी]], [[माघ अमावस्या]], [[गंगा दशहरा]] व [[कार्तिक पूर्णिमा]] को अत्यधिक संख्या में इस स्थान पर लोग [[गोमती नदी]] में स्नान करने आते हैं। उपलब्ध अभिलेखों के अनुसार वनवास जाते समय भगवती [[सीता]] ने [[भगवान श्री राम]] के साथ यहाँ स्नान किया था। प्रत्येक रविवार को [[सीताकुंड]] के घाट पर [[आदि गंगा]] [[गोमती नदी|गोमती]] की भव्य आरती का भी आयोजन किया जाता है।
* '''विजेथुवा महावीरन''':- सुलतानपुर स्थित [[विजेथुवा महावीरन]] भगवान [[हनुमान]] को समर्पित एक प्रसिद्ध मंदिर है। माना जाता है कि यह वही स्थान है जहाँ पर पवनपुत्र भगवान [[हनुमान]] ने दशानन रावण के मामा "कालनेमी" नामक दानव का वध किया था। [[लक्ष्मण]] के प्राण बचाने के लिए जब हनुमान [[संजीवनी|संजीवनी बूटी]] लेने के लिए गए थे, तो [[रावण]] द्वारा भेजे गए [[कालनेमी दानव]] ने उनका रास्ता रोकने का प्रयास किया था। उस समय [[हनुमान]] जी ने कालनेमी दानव का वध इसी स्थान पर किया था। यही से कुछ दूरी पर उमरपुर गाँव में भगवान शिव मंदिर है।
* '''धोपाप''':- सुलतानपुर जिले में स्थित [[धोपाप]] यहां के प्रमुख स्थलों में से एक है, इसे "धोपाप धाम" के नाम से भी जाना जाता है। माना जाता है कि यह वही स्थान है जहां पर भगवान श्रीराम ने लंकेश्वर [[रावण]] का वध करने के पश्चात महर्षि वशिष्ठ के आदेशानुसार स्नान किया था। स्थानीय लोगों का मानना है कि जो भी व्यक्ति दशहरे के दिन यहां स्नान करता है, उसके सभी पाप [[गोमती नदी]] में धुल जाते हैं। यहां एक विशाल मंदिर भी है। काफी संख्या में श्रद्धालु इस मंदिर में पूजा के लिए आते हैं।
* <ref>{{cite web|url=https://hindi.news18.com/news/uttar-pradesh/lucknow/vindhyachal-dham-darshan-incomplete-without-leaned-forehead-to-this-temple-841014.html|title=इस मंदिर में माथा टेके बगैर विंध्याचल धाम का दर्शन अधूरा- hindi.news18.com}}</ref>'''लोहरामऊ मां भवानी मन्दिर''':- सुलतानपुर में नवरात्र पर शायद ही कोई मन्दिर हो जहां देवी मां के दर्शन के लिए श्रद्धालुओं की भीड़ न उमड़ती हो लेकिन इस जनपद के "लोहरामऊ" में स्थित मां दुर्गा भवानी मंदिर में नवरात्र के समय सूबे के विभिन्न इलाकों से आने वाले श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है। नगर से लगभग ७ कि.मी. दूर लखनऊ-वाराणसी राष्ट्रीय राजमार्ग-५६ पर स्थित लोहरामऊ में सैकड़ों वर्षों से स्थापित मां दुर्गा का यह मन्दिर केवल आस-पास के जिलों में ही नही सूबे के कई अन्य जिलों में भी खासा मशहूर है। खास बात ये है कि यहां आ कर लोग न केवल अपनी मनोकामनाएं पूरी करते हैं बल्कि "जनेऊ" और "मुंडन" जैसे संस्कार भी पूरे करते हैं। मान्यता तो यहां तक है कि इस धाम पर शीश झुकाए बगैर "विंध्याचल धाम" का दर्शन पूरा नही माना जाता। सैकड़ों साल पुराने इस मंदिर में नारियल और फूल मालाओं समेत पूड़ी, कड़ाही और चूड़ियां चढ़ाने की भी परम्परा रही है। वैसे तो सावन के महीने में यहां दस दिनों तक जबरदस्त मेला लगता है लेकिन नवरात्र में यहां का नजारा कुछ अलग ही रहता है। मंदिर के मुख्य पुजारी पंडित राजेन्द्र प्रसाद मिश्र बताते हैं कि यहां मां दुर्गा भवानी स्वयं साक्षत प्रकट हुई थीं। देवी मां के तीन रूपों का भी यहां दर्शन होता है। मां दुर्गा के दर्शन करने और अपनी मुरादें पूरी करने के लिए सूबे के तमाम जिलों से पूरे नवरात्र भर श्रद्धालुओं का यहां तांता लगा रहता है। महिलाओं में इसका विशेष महत्व है, उनकी हर छोटी से छोटी मनोकामना यहां पूरी होती है। श्रद्धालु यहां नारियल और फूल मालाओं के साथ पूड़ी, कड़ाही और चूड़ियां चढाते हैं। इतना ही नही लोग यहां मुंडन, जनेऊ और वैवाहिक रस्मो-रिवाज समेत तमाम अन्य धार्मिक संस्कार भी पूरे करते हैं। इस ऐतिहासिक धाम की एक खास महत्ता यह है कि मिर्जापुर में स्थित "विंध्याचल धाम" का दर्शन तभी पूरा माना जाता है जब भक्त यहां का दर्शन कर लेते हैं। यही वजह है कि विंध्याचल जाने और लौटने वाले लोग यहां का दर्शन करना नही भूलते। नवरात्र के अंतिम दिन इस मंदिर पर खासी भीड़ जुटती है। पूरा दिन यहां यज्ञ और हवन होते रहते हैं। यहां आ कर लोग तमाम कर्मकांड कर अपने तन-मन में छुपे रोग, शोक, भय, आशंका और मनो-विकार दूर कर अपने को धन्य मानते हैं।
* '''गढ़ा (केशिपुत्र कलाम)''':- पश्चिमोत्तर दिशा में सुलतानपुर जिला मुख्यालय से करीब 15 किलोमीटर के फासले पर बौद्धकालीन दस गणराज्यों में से एक ''केशिपुत्र'' के भग्नावशेष आज भी गढ़ा गांव में मौजूद हैं। यहां [[गौतम बुद्ध|भगवान बुद्ध]] ने छह माह तक प्रवास किया था और यहां के शासक कलाम वंशीय क्षत्रियों को बौद्ध धर्म की दीक्षा दी थी। इन खंडहरों में आज भी बुद्ध के संदेश गूंज रहे हैं। ये हमारी संस्कृति एवं सभ्यता के साक्षी हैं। भगवान बुद्ध के समय में जब बुद्धवाद शिखर पर था तो केशिपुत्र उत्तर भारत के दस बौद्ध गणराज्यों में से एक था। यहां कलामवंशीय क्षत्रियों का शासन था। चीनी यात्री ह्वेनसांग के अभिलेख, बौद्ध सूत्र व स्थानीय परम्पराएं इसकी पुष्टि करते हैं। तेरहवीं शताब्दी के प्रारंभ तक केशिपुत्र समृद्धिशाली नगर था। बौद्धग्रंथ "अंगुत्तर निकाय" व "कलाम सुत पिटक" के अनुसार भगवान बुद्ध ने यहां छह माह तक प्रवास कर कलामवंशीय क्षत्रियों को उपदेश दिया था। आज ये स्थल वर्तमान ''कुड़वार'' के ''गढ़ा गांव'' में आठ किलोमीटर के क्षेत्र में खंडहर के रूप में विद्यमान है। सन् 1985 में तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के कार्यकाल में केंद्रीय सांस्कृतिक सचिव पुपुल जयकर के निर्देश पर ''गढ़ा'' के नाम से विख्यात इस खंडहर को भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने अधिग्रहीत कर लिया। खनन में बौद्धकाल की मूर्तियां, बर्तन आदि प्राप्त हुए जिससे स्थल की ऐतिहासिकता की पुष्टि हुई।
* '''पारिजात वृक्ष''':- [[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]] शहर में [[गोमती नदी]] के तट पर उद्योग विभाग के परिसर में यह विशाल वृक्ष उपस्थित है। सुलतानपुर शहर में गोमती नदी के तट पर उद्योग विभाग के परिसर में उपस्थित विशाल "पारिजात वृक्ष" प्रदेश में अकेला ऐसा वृक्ष है जहाँ लोग पूरी आस्था से मन्नते मांगते हैं और उनकी मनोकामनायें पूरी भी होती हैं। युवा-वर्ग अपने प्रेम को पाने और शादी-शुदा महिलाएँ अपने सुहाग के लिए मन्नते मांगती हैं। श्रद्धा का ये मेला प्रत्येक शुक्रवार और सोमवार को लगता है जहां लोग पूरी श्रद्धा से इस वृक्ष को नमन कर अपनी मनोकामनाये मांगते हैं। सुल्तानुपर के इस पारिजात वृक्ष का सही आंकलन कोई नहीं कर पाया है। जिले के बुज़ुर्ग इस वृक्ष को हजारों साल पुराना बताते हैं।
* '''कोटव''':- यह एक धार्मिक स्थल है। कोटव को कोटव धाम के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भगवान [[विष्णु]] को समर्पित है। मंदिर में भगवान [[शिव]] की सफेद संगमरमर से बनी खूबसूरत प्रतिमा स्थित है। यहां मंदिर के समीप पर ही एक खूबसूरत सरोवर स्थित है। प्रत्येक वर्ष अक्टूबर और अप्रैल माह में यहां मेले का आयोजन किया जाता है। इस दौरान काफी संख्या में भक्त इस सरोवर में स्नान करने के लिए आते हैं।
* '''कोइरीपुर''':- यहां पर श्री [[हनुमान]] जी, भगवान [[शिव]] [[शिव|शंकर]] तथा प्रभु श्री [[राम]] और माता [[सीता]] के अनेकों मंदिर हैं। इन मंदिरों का निर्माण स्थानीय लोगों ने मिलकर करवाया था। [[पूर्णिमा]] के अवसर पर यहाँ बहुत बड़े मेले का आयोजन किया जाता है। इस मेले में काफी संख्या में लोग सम्मिलित होते हैं।
* '''सतथिन शरीफ''':- प्रत्येक वर्ष यहां दस दिन के उर्स का आयोजन किया जाता है। शाह अब्दुल लातिफ और उनके समकालीन बाबा मदारी शाह उस समय के प्रसिद्ध फकीर थे। यहां [[गोमती नदी]] के तट पर शाह अब्दुल लातिफ की समाधि स्थित है।
* '''गोरीशंकर धाम''':- चाँदा के शाहपुर जंगल के बीच गोमती नदी के तट पर अवस्थित मनोरम शिव मन्दिर है, इस मंदिर की मान्यता यह है कि यह अत्यंत प्राचीन मंदिर है। वैसे तो यहाँ हर सोमवार को मेला लगता है जहाँ श्रद्धालुओं की भीड़ जुटती है, पर प्रतिवर्ष "महाशिवरात्रि" को यहाँ बहुत बड़े मेले का आयोजन होता है जहाँ पर आस पास के जिले के लोग भी आते हैं, मान्यता है कि जो भी श्रद्धा से यहां आकर कुछ भी मांगता है उसकी मनोकामना पूर्ण होती है। वर्तमान में इस स्थान का सुन्दरीकरण करके अब इसे पर्यटनस्थल भी घोषित कर दिया गया है। यहाँ बच्चों के लिए पार्क बनाकर उसमे विभिन्न प्रकार के झूले भी स्थापित किये गए हैं।
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इस समारोह में दूर दराज से लाखों श्रद्धालु शिरकत करते हैं नगर की पूजा समितियां उनके खाने पीने का पूरा प्रबंध करती हैं। जगह-जगह भंडारे चलते हैं। केन्द्रीय पूजा व्यवस्था समिति के लोग हर पल नजर बनाये रखते हैं। यातायात को सुगम बनाने और शांति व्यवस्था बनाये रखने के लिये जिला प्रशासन पूरी तरह मुस्तैद रहता है। महीनों पहले से ही जिला प्रशासन भी तैयारियों का जायजा लेना शुरू कर देता है। शोभा यात्रा रूट और विसर्जन स्थल पर पूरी नजर रखी जाती है।
छह दशकों से चला आ रहा यह समारोह केवल हिन्दुओं का पर्व न होकर '''[[सुलतानपुर, उत्तर प्रदेश|सुलतानपुर]]''' का ''''महापर्व'''' बन चुका है। प्रशासन भी यहां की गंगा-जमुनी तहजीब को देखकर पूरी तरह आश्वस्त रहता है। यहां रहने वाले किसी भी मजहब के लोग जिस तरह इस महापर्व में बढ़ चढ़कर हिस्सा लेते हैं वह एक मिसाल है।
 
== शिक्षण संस्थान ==
पंक्ति 137:
 
==प्रमुख व्यक्तित्व==
* '''[[मजरुह सुल्तानपुरी|मजरुह सुलतानपुरी]]'''
* '''[[त्रिलोचन शास्त्री]]'''
* '''[[रामनरेश त्रिपाठी]]'''