"आरण्यक": अवतरणों में अंतर
Content deleted Content added
छो 42.111.0.86 (Talk) के संपादनों को हटाकर संजीव कुमार के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया टैग: वापस लिया |
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है |
||
पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=अगस्त 2012}}
{{सन्दूक हिन्दू धर्म}}
'''आरण्यक''' [[हिन्दू धर्म]] के पवित्रतम और सर्वोच्च ग्रन्थ [[
[[सायण]] के अनुसार इस नामकरण का कारण यह है कि इन ग्रंथों का अध्ययन अरण्य (जंगल) में किया जाता था। आरण्यक का मुख्य विषय यज्ञभागों का अनुष्ठान न होकर तदंतर्गत अनुष्ठानों की आध्यात्मिक मीमांसा है। वस्तुत: यज्ञ का अनुष्ठान एक नितांत रहस्यपूर्ण प्रतीकात्मक व्यापार है और इस प्रतीक का पूरा विवरण आरण्यक ग्रंथो में दिया गया है। प्राणविद्या की महिमा का भी प्रतिपादन इन ग्रंथों में विशेष रूप से किया गया है। संहिता के मंत्रों में इस विद्या का बीज अवश्य उपलब्ध होता है, परंतु आरण्यकों में इसी को पल्लवित किया गया है। तथ्य यह है कि उपनिषद् आरण्यक में संकेतित तथ्यों की विशद व्याख्या करती हैं। इस प्रकार संहिता से उपनिषदों के बीच की श्रृंखला इस साहित्य द्वारा पूर्ण की जाती है।
पंक्ति 39:
* '''[[ऋग्वेद]]'''
** ऐतरेय आरण्यक
** कौषीतकि आरण्यक या [[सांख्यायन आरण्यक|शांखायन आरण्यक]]
*''' [[सामवेद संहिता|सामवेद]]'''
** तावलकर (या जैमिनीयोपनिषद्) आरण्यक
** छान्दोग्य आरण्यक
पंक्ति 52:
*** मैत्रायणी आरण्यक
* '''[[अथर्ववेद संहिता|अथर्ववेद]]'''
** (कोई उपलब्ध नहीं)
यद्यपि अथर्ववेद का पृथक् से कोई आरण्यक प्राप्त नहीं होता है, तथापि उसके गोपथ ब्राह्मण में आरण्यकों के अनुरूप बहुत सी सामग्री मिलती है।
|