"विश्वयुद्धों के मध्य की अवधि": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:EUROPE 1919-1929 POLITICAL 01.png|right|thumb|300px|१९२९ से १९३९ के बीच यूरोप का मानचित्र]]
[[पहला विश्व युद्ध|प्रथम विश्वयुद्ध]] 1919 ई. को समाप्त हुआ एवं इसके ठीक 20 वर्ष बाद 1939 ई. में [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] आंरभ हो गया। इन दो विश्वयुद्धों के मध्य विश्व राजनीतिक का कई कटु अनुभवों से सामना हुआ। प्रथम विश्वयुद्ध की विभीषिका से यूरोपीय राजनीतिज्ञों ने कोई सबक नहीं सीखा। शांति की स्थापना हेतु आदर्शवादी बातें तो बहुत की गईं मगर व्यवहार में उनका पालन नहीं किया गया। अमेरिकी राष्ट्रपति [[वुडरो विल्सन|वुड्रो विल्सन]] के 14 सूत्रों से प्रतीत होता था कि, उन पर अमल कर विश्व शांति की स्थापन का मार्ग प्रशस्त हो सकता है। [[पेरिस शांति सम्मेलन]] के दौरान जिस तरह [[फ़्रान्स|फ्रांस]] के प्रधानमंत्री [[क्लीमेंशों]] ने विल्सन की आदर्शवादी बातों का उपहास उड़ाया, उससे पता चलता है कि पेरिस शांति सम्मेलन के प्रतिनिधि विश्व शांति की स्थापना को लेकर दृढ़ प्रतिज्ञ नहीं है। यही कारण था कि [[राष्ट्र संघ|राष्ट्रसंघ]] की धज्जियाँ उड़ा दीं गयीं। [[इंग्लैण्ड]] एवं [[फ़्रान्स|फ्रांस]] eemप्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् विश्व राजनीतिज्ञों ने निःशस्रीकरण की दिशा में सराहनीय प्रयास किये। इसके अलावा भी शांति स्थापना की दिशा में पहल की।
 
[[जर्मनी]] ने [[एडोल्फ़ हिटलर|हिटलर]] का उदय विश्व इतिहास को प्रभावित करने वाली सर्वप्रमुख घटना थी। उसका उदय 1919 ई. की [[वर्साय की सन्धि|वार्साय की संधि]] द्वारा जर्मनी के हुए अपमान का बदला लेने के लिए ही हुआ था। वार्साय की संधि की अपमानजनक धाराओं को देखकर [[मार्शल फौच]] ने तो 1919 में ही भविष्यवाणी कर दी थी यह कोई शांति संधि नहीं यह तो 20 वर्ष के लिए [[युद्धविराम]] मात्र है। मार्शल फौच की उक्त भविष्यवाणी अंततः हिटलर ने सत्य सिद्ध करा दी। Mohammad saheem bais
 
ने
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==1919 ई. से 1939 ई. के मध्य विश्व राजनीति==
===फ्रांसीसी सुरक्षा की समस्या ===
दो विश्व युद्धों के मध्य विश्व राजनीति में [[फ़्रान्स|फ्रांस]] में सुरक्षा की समस्या सबसे महत्वपूर्ण प्रश्न था। फ्रांस ने वार्साय की 1919 की संधि द्वारा 1871 की [[फ्रेंकफर्ट संधि]] का बदला ले लिया था। अब उसे डर था कि भविष्य में जर्मनी वार्साय के अपमान का बदला ले सकता है अतः इसी भय ने फ्रांसीसी सुरक्षा की समस्या पैदा की।
 
फ्रांस चाहता था कि जर्मनी के मध्य स्थित [[राइन प्रदेश]] में एक स्वतंत्र राज्य का निर्माण किया जाये, जो कि बफर स्टेट की भाँति कार्य करे। फ्रांस की इस माँग को मित्र राष्ट्रों ने स्वीकार नहीं किया किन्तु फ्रांस की निम्न तीन बातें मानी गईं -
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====फ्रांस द्वारा संपन्न संधियाँ ====
[[इंग्लैण्ड]] एवं [[यूएसएसंयुक्त राज्य अमेरिका|अमेरिका]] की ओर से सुरक्षा का कोई ठोस आश्वासन प्राप्त न होने पर फ्रांस ने अन्य देशों के साथ संधियाँ कीं जो निम्नलिखित हैं -
 
* '''बेल्जियम''' : फ्रांस ने बेल्जियम के साथ 20 सितम्बर, 1920 ई. को समझौता किया जिसके अनुसार यदि कोई तीसरा देश इनमें से किसी एक पर आक्रमण करेगा, तो दूसरा देश अपने मित्र की सहायता करेगा।
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* '''इंग्लैण्ड के साथ प्रयास''' : इंग्लैण्ड ने जर्मन आक्रमण के विरूद्ध फ्रांस को सहयोग देने का आश्वासन दिया था।
 
उपरोक्त छोटे देशों से संधि कर फ्रांस को कोई विशेष लाभ न हुआ। हिटलर इन समझौतों को एक के पश्चात् एक ठोकर मारता गया। उसने चेकोस्लोवाकिया का अंग-भंग किया, पोलैण्ड पर आक्रमण का समस्त मैत्री संघों की पोल खोल दी। 3 सितम्बर को [[पोलैंड|पोलैण्ड]] पर आक्रमण के विरूद्ध फ्रांस को युद्ध छेड़ना पड़ा।
 
===निःशस्रीरण के प्रयास===
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1924 में राष्ट्रसंघ की 5वीं सभा में इंगलैंड और फ्रांस ने विश्व शांति हेतु एक प्रपत्र रखा। यही 'जेनेवा प्रोटोकॉल' कहलाता है। इसके तहत पंच निर्णय की प्रक्रिया पर बल दिया गया। जेनेवा प्रोटोकॉल के प्रमुख बिन्दु निम्नानुसार थे -
 
:1. विधि सम्मत मामले [[अंतरराष्‍ट्रीय न्यायालय|अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय]] में एवं राजनीतिक विवाद राष्ट्रसंघ की परिषद के फैसले हेतु भेजे जाएं।
:2. 'युद्ध' को [[अंतर्राष्ट्रीय अपराध]] की संज्ञा दी गई।
:3. यदि किसी मामले पर अंतर्राष्ट्रीय न्यायालय अथवा परिषद में विचार हो रहा है, तो उस समय तक कोई सैन्य तैयारी नहीं की जाएगी।
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===लोकार्ना पैक्ट (1925 ई.)===
फ्रांस की सुरक्षा की समस्या यथावत रही। यद्यपि [[बेल्जियम]] व [[पोलैंड|पोलैण्ड]] से लघु मैत्री कर फ्रांस सुरक्षा के प्रति आश्वस्त था, किन्तु उसके मन में एक भय व्याप्त था। इंग्लैण्ड की ओर से सुरक्षा का कोई ठोस आश्वासन नहीं मिला था। इन परिस्थितियों में फ्रांस ने सीधे जर्मनी से समझौता करना चाहा। 1922 ई. में जर्मनी ने फ्रांस से आश्वासन माँगा कि वह [[राइन क्षेत्र]] पर आक्रमण नहीं करेगा। फ्रांस की सरकार ने ऐसा आश्वासन देने से इनकार कर दिया। जर्मनी के बार-बार कहने पर अंततः लोकार्ना में एक अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन हुआ।
 
5 अक्टूबर, 1925 ई. को [[स्विट्ज़रलैण्ड|स्विटजरलैण्ड]] के [[लोकार्ना]] नामक स्थान पर एक महत्वपूर्ण अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन आयोजित किया गया। इस सम्मेलन में जर्मनी, फ्रांस, ब्रिटेन, इटली, बेल्जियम, पोलैण्ड एवं चेकोस्लोवाकिया के प्रतिनिधियों ने भाग लिया। प्रथम विश्वयुद्ध के पश्चात् यह प्रथम अवसर था, जबकि जर्मनी की मित्र राष्ट्रों के साथ वार्ता संभव हुई। इससे कटुता के स्थान पर सद्भावना का माहौल निर्मित हुआ।
 
लोकार्ना समझौते के दौरान जर्मनी संबंधित निर्णय थे -