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==जीवनी==
लिओनार्दो दा विंची का जन्म [[इटली]] के [[फ़्लोरेन्स|फ्लोरेंस]] प्रदेश के विंचि नामक ग्राम में हुआ था। इस ग्राम के नाम पर इनके कुल का नाम पड़ा। ये अवैध पुत्र थे। शारीरिक सुंदरता तथा स्फूर्ति के साथ साथ इनमें स्वभाव की मोहकता, व्यवहारकुशलता तथा बौद्धिक विषयों में प्रवीणता के गुण थे।
 
लेओनार्डो ने छोटी उम्र से ही विविध विषयों का अनुशीलन प्रारंभ किया, किंतु इनमें से संगीत, चित्रकारी और मूर्तिरचना प्रधान थे। इनके पिता ने इन्हें प्रसिद्ध चित्रकार, मूर्तिकार तथा स्वर्णकार, आँद्रेआ देल वेरॉक्यो (Andrea del Verrochio), के पास काम सीखने गये और उनकी छत्रच्छाया में रहकर कार्य करते रहे और इसके तत्पश्चात् [[मिलैन]] के रईस [[लुडोविको स्फॉत्र्सा]] (Ludovico Sforza) की सेवा में चले गए, जहाँ इनके विविध कार्यों में सैनिक इंजीनियरी तथा दरबार के भव्य समारोहों के संगठन भी सम्मिलित थे। यहाँ रहते हुए इन्होंने दो महान कलाकृतियाँ, लुडोविको के पिता की घुड़सवार मूर्ति तथा "अंतिम व्यालू" (Last Supper) शीर्षक चित्र, पूरी कीं। लुडोविको के पतन के पश्चात्, सन् 1499 में, लेआनार्डो मिलैन छोड़कर फ्लोरेंस वापस आ गए, जहाँ इन्होंने अन्य कृतियों के सिवाय [[मोना लीज़ा|मॉना लिसा]] (Mona Lisa) शीर्षक चित्र तैयार किया। यह चित्र तथा "अंतिम व्यालू" नामक चित्र, इनकी महत्तम कृतियाँ मानी जाती हैं। सन् 1508 में फिर मिलैन वापस आकर, वहाँ के फरासीसी शासक के अधीन ये चित्रकारी, इंजीनियरी तथा दरबारी समारोहों की सजावट और आयोजनों की देखभाल का अपना पुराना काम करते रहे। सन् 1513 से 1516 तक [[रोम]] में रहने के पश्चात् इन्हें [[फ़्रान्स|फ्रांस]] के राजा, [[फ्रैंसिस प्रथम]], अपने देश ले गए और अंब्वाज़ (Amboise) के कोट में इनके रहने का प्रबंध कर दिया। यहीं इनकी मृत्यु हुई।
 
== कार्य ==
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इनकी बनाई कोई मूर्ति अब पाई नहीं जाती, किंतु कहा जाता है कि फ्लोरेंस की बैप्टिस्टरी (गिरजाघर का एक भाग) के उत्तरी द्वार पर बनी तीन मूर्तियाँ, [[बुडापेस्ट]] के संग्रहालय में रखी काँसे की घुड़सवार मूर्ति तथा पहले [[बर्लिन]] के संग्रहालय में सुरक्षित, मोम से निर्मित, फ्लोरा की आवक्ष प्रतिमा लेओनार्डो के निर्देशन में निर्मित हुई थी। कुछ अन्य मूर्तियों के संबंध में भी ऐसा ही विचार है, पर निश्चित रूप से कुछ कहा नहीं जा सकता।
 
ऐसा जान पड़ता है कि लेओनार्डो [[चित्रकला|चित्रकारी]], [[वास्तुकला]], शरीरसंरचना, [[ज्योतिष]], [[प्रकाशिकी]], जल-गति-विज्ञान तथा [[यांत्रिकी]] पर अलग अलग ग्रंथ लिखना चाहते थे, पर यह काम पूरा नहीं हुआ। इन विषयों पर इनके केवल अपूर्ण लेख या टिप्पणियाँ प्राप्य हैं। लेओनार्डों ने इतने अधिक वैज्ञानिक विषयों पर विचार किया था तथा इनमें से अनेक पर इनकी टिप्पणियाँ इतनी विस्तृत हैं कि उनका वर्णन यहाँ संभव नहीं है। ऊपर लिखे विषयों के अलावा [[वनस्पति विज्ञान]], [[प्राणिविज्ञान]], [[शरीरक्रिया विज्ञान]], [[भौतिक शास्त्र|भौतिकी]], [[भौमिकी]], [[प्राकृतिक भूगोल]], [[जलवायुविज्ञान]], [[वैमानिकी]] आदि अनेक वैज्ञानिक विषयों पर इन्होंने मौलिक तथा अंत:प्रवhkoknशी विचार प्रकट किए हैं। [[गणित]], [[यांत्रिकी]] तथा [[सैनिक इंजीनियरी]] के तो ये विद्वान् थे ही, आप दक्ष संगीतज्ञ भी थे।
 
लेओनार्डों को अपूर्व ईश्वरीय वरदान प्राप्त था। इनकी दृष्टि भी वस्तुओं को असाधारण रीति से ग्रहण करती थी। वे उन बातों को देख और अवधृत कर लेते थे जिनका मंदगति फोटोग्राफी के प्रचलन के पूर्व किसी को ज्ञान नहीं था। प्रक्षिप्त छाया के रंगों के संबंधों में वे जो कुछ लिख गए हैं, उनका 19वीं सदी के पूर्व किस ने विकास नहीं किया। उनके धार्मिक तथा नैतिक विपर्ययों के संबंध में भी कुछ कहा जाता है, किंतु असाधारण प्रतिभावान मनुष्यों को साधारण मनुष्यों के प्रतिमानों से नापना ठीक नहीं है।