"मुहर्रम": अवतरणों में अंतर

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== मुहर्रम और आशुरा ==
[[File:Bibi ka alam.jpg|right|thumb|ताजिया का जुलूस दबीरपुरा, ओल्ड सिटी (हैदराबाद, भारत) में]]
मुहर्रम महीने के १०वें दिन को 'आशुरा' कहते है।<ref>{{cite web|url=https://www.bbc.com/hindi/india-45597228|title=मोहर्रम के महीने में ग़म और मातम का इतिहास}}</ref> आशुरा के दिन हजरत रसूल के नवासे हजरत [[हुसैन इब्न अली|इमाम हुसैन]] को और उनके बेटे घरवाले और उनके सथियों (परिवार वालो) को करबला के मैदान में शहीद कर दिया गया था।<ref name="TIO20101208">{{cite web |url=http://www.theismaili.org/cms/1125/Muharram | title=Muharram |accessdate=2010-12-08 |date=2010-12-08}}</ref><br />
 
'''मुहर्रम''' इस्लाम धर्म में विश्वास करने वाले लोगों का एक प्रमुख त्यौहार है। इस माह की बहुत विशेषता और महत्व है। सन् 680 में इसी माह में कर्बला नामक स्थान मे एक धर्म युद्ध हुआ था, जो पैगम्बर हजरत मुहम्म्द स० के नाती तथा इब्न ज़्याद के बीच हुआ। इस धर्म युद्ध में वास्तविक जीत हज़रत इमाम हुसैन अ० की हुई। प‍र जाहिरी तौर पर इब्न ज़्याद के कमांडर शिम्र ने हज़रत हुसैन रज़ी० और उनके सभी 72 साथियो (परिवार वालो) को शहीद कर दिया था। जिसमें उनके छः महीने की उम्र के पुत्र हज़रत अली असग़र भी शामिल थे। और तभी से तमाम दुनिया के ना सिर्फ़ मुसलमान बल्कि दूसरी क़ौमों के लोग भी इस महीने में इमाम हुसैन और उनके साथियों की शहादत का ग़म मनाकर उनकी याद करते हैं। आशूरे के दिन यानी 10 मुहर्रम को एक ऐसी घटना हुई थी, जिसका विश्व इतिहास में महत्वपूर्ण स्थान है। इराक स्थित कर्बला में हुई यह घटना दरअसल सत्य के लिए जान न्योछावर कर देने की जिंदा मिसाल है। इस घटना में हजरत [[मुहम्मद]] के नवासे (नाती) हजरत हुसैन को शहीद कर दिया गया था।