"व्यावसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य": अवतरणों में अंतर

122.252.226.208 (वार्ता) द्वारा किए बदलाव 3092318 को पूर्ववत किया
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 1:
{{स्रोतहीन|date=मई 2016}}
{{आधार}}
[[चित्र:Ruby Loftus screwing a Breech-ring (1943) (Art. IWM LD 2850).jpg|right|thumb|300px|[[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के समय १९४३ में [[लेथ मशीन|लेथ]] पर कार्य करती हुई एक ब्रिटेन की लड़की अपने कार्य का निरीक्षण कर रही है, किन्तु उसकी आंखों पर सुरक्षा के लिये कुछ नहीं है। वर्तमान समय में इस तरह कार्य करने की अनुमति नहीं दी जा सकती]]
'''व्यावसायिक संरक्षा एवं स्वास्थ्य''' (Occupational safety and health (OSH)) के अन्तर्गत किसी व्यवसाय या रोजगार में लगे हुए लोगों की [[संरक्षा]], [[स्वास्थ्य]] एवं [[कल्याण]] पर विचार किया जाता है।
 
पंक्ति 10:
‘स्वास्थ्य‘ शब्द एक सकारात्मक अवधारणा है जो रोग की अनुपस्थिति को इंगित करता है। [[विश्व स्वास्थ्य संगठन]] के अनुसार ‘‘स्वास्थ्य वह सम्पूर्ण अवस्था है जिसमें शारीरिक, मानसिक और सामाजिक रूप से व्यक्ति स्वस्थ्य रहता है, यह केवल रोगों की अनुपस्थिति मात्र नही है। स्वास्थ्य और चिकित्सकीय देखरेख एक वृहद शब्द है किसी व्यक्ति के आर्थिक, सामाजिक और भावनात्मक जीवन से जुड़े रहते हैं।
 
औद्योगिक या संगठनात्मक स्वास्थ्य, बीमारियों को रोकने का साधन है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) तथा [[अंतरराष्ट्रीय श्रम संघ|अन्तरराष्ट्रीय श्रम संघ]] (ILO) की संयुक्त समिति जो 1950 में हुई थी, ने संगठनात्मक स्वास्थ्य का अग्रलिखित बिन्दुओं के माध्यम से प्रस्तुत किया-
* 1. व्यावसायिक कार्मिकों के शारीरिक, मानसिक और सामाजिक स्वस्थता को बढ़ावा तथा रख रखाव करना,
*2. कार्यस्थल की स्थिति के कारण होने वाली बीमारियों से बचाव करना,
पंक्ति 20:
दुर्गंध, धूलि, धूम्र और प्रधूम (फ़्यूम्स) युक्त दूषित [[संवातन]] (वेंटिलेशन), अपर्याप्त प्रकाश, अत्यधिक शीत, ताप या [[आर्द्रता]], जनसंकुल (ओवरक्राउडेड) कोलाहलपूर्ण कार्यस्थल, अपर्याप्त भोजन, विश्रमा का अभाव, श्रांति (फ़टीग), क्लांति (स्ट्रेन) और दिन रात का घोर कष्टदायक परिश्रम, अल्पतम वेतन या मजदूरी, गंदी बस्तियों में असुविधापूर्ण आवास, शिक्षा, चिकित्सा, सामजिक न्याय और सुरक्षा का अभाव, आकस्मिक दुर्घटनाओं का बाहुल्य आदि के कारण श्रमिकों का जीवन साधारणत: दूभर रहता है। प्रति वर्ष अगणित ग्रामीण अपना परंपरागत कृषि कार्य और कुटीर उद्योग छोड़ बड़े उद्योगों में कार्य करने के लिए नगरों की गंदी बस्तियों में आ बसते हैं और कारखानों में अविराम परिश्रम कर अपना स्वास्थ्य गँवा देते हैं।
 
उद्योगों में काम कर रहे श्रमिकों की संख्या बहुत बड़ी है। इतने व्यक्तियों के स्वास्थ्य तथा कल्याण के प्रति उदासीन रहना नैतिक अपराध है। भारत में अनेक निरोधसाध्य (प्रिवेंटिबिल) रोगों का नियंत्रण नहीं हो पाया, इस कारण श्रमिकों को रोगग्रस्त होने पर अपने धंधे से छुट्टी लेनी पड़ती है। निरोधसाध्य रोगों के कारण उद्योग धंधों में श्रमिकों अनुपस्थिति कल कारखानों की दुर्घटनाओं के कारण होनेवाली अनुपस्थिति से कई गुनी अधिक है। [[मलेरिया]], [[काला आज़ार]] आदि समष्टिगत रोगों (मास डिसीजेज़) के रोगियों की संख्या में पहले की अपेक्षा अब बहुत कमी हो गई है। आंत्रिक ज्वर (एंटेरिक फ़ीवर), प्लूरिसी, अतिसार, ज्वर, आमाशय व्रण (पेप्टिक अल्सर) श्रमिकों की अल्पकालीन अनुपस्थिति के मुख्य कारण हैं। दीर्घकालीन अनुपस्थिति [[यक्ष्मा|क्षयरोग]], श्वासरोग तथा [[कुष्ठरोग|कुष्ठ रोग]] के कारण होती है। व्यावसायिक रोगों में त्वचा तथा श्वास के रोगों का बाहुल्य है। क्षय रोग मुख्यत: नगरों में अत्यधिक फैला हुआ है। पूर्ण तथा अल्प बेकारी (अनएंप्लायमेंट ऐंड अंडर-एंप्लायमेंट) इतनी अधिक है कि एक श्रमिक की रोगजन्य अनुपस्थिति की दशा में पचास अन्य श्रमिक प्राप्त हो सकते हैं। छोटे-छोटे उद्योगों में धनाभाव के कारण श्रमिकों के स्वास्थ्य तथा कल्याण के लिए कुछ भी नहीं किया जा सकता। [[सामाजिक सुरक्षा]] का लाभ केवल कुछ लाख श्रमिकों को ही प्राप्त है। श्रमिकों के हितार्थ [[कर्मचारी सरकारी बीमा अधिनियम]] के अंतर्गत जो धन देना पड़ता है उसे देकर उद्योगपतियों की यही धारणा है कि श्रमिकों के हितार्थ अब उनका कोई कर्तव्य शेष नहीं रहा। जो कुछ करना है वह इस अधिनियम के अनुसार स्थापित निगम को ही करना है। इस प्रकार की स्थिति भयावह है।
 
इन कष्टदायक और संकटापन्न परिस्थितियों में काम करनेवाले श्रमिकों की रक्षा के हेतु फैक्टरी अधिनियम के अंतर्गत फैक्टरियों के मुख्य निरीक्षक के अधीन सरकारी निरीक्षक, प्रमाणपत्रदाता सर्जन आदि नियुक्त किए गए हैं जो श्रमिकों को नाना प्रकार की सुविधाएँ प्राप्त कराते हैं और उनकी सुरक्षा एवं कल्याण संबंधी नियमों का पालन कराते हैं। पूरे १४ वर्ष से कम आयुवाले बालकों को किसी भी कार्य पर नहीं नियुक्त किया जा सकता। १८ वर्ष पूरा कर चुकनेवाले वयस्क श्रमिक कहलाते हैं, इससे कम अवस्था के किशोर श्रमिक कहलाते हैं। किशोर श्रमिकों को शारीरिक स्वस्थता का प्रमाणपत्र प्राप्त करना होता है और एक बिल्ला धारण करना पड़ता है। कोई भी वयस्क श्रमिक सप्ताह में ४८ घंटे से अधिक और एक दिन में साधारणतया ९ घंटे से अधिक समय के लिए काम पार नही लगाया जा सकता। सप्ताह में एक दिन की पूरी छुट्टी और प्रतिदिन अधिक से अधिक पाँच घंटे तक काम कर चुकने पर कम से कम आधे घंटे का विश्राम दिया जाता है। धूति, धूम्र, प्रधूम तथा अत्यधिक शीतोष्णता और आर्द्रता आदि का समुचित प्रबंध कर परिवेश स्वास्थ्यानुकुल और सुविधापूर्ण बनाया जाता है। प्रकाश, संवातन (वेंटिलेशन) और जनसंकुलता संबंधी नियमों का पालन करना पड़ता है। हानि-लाभ-रहित लागत मूल्य पर जलपान, चाय, दूध, शर्बत, मिठाई, नमकीन, चबैना आदि खाद्य और पेय पदार्थों का प्रबंध किया जाता है। बड़ी फैक्ट्रियों में महिला श्रमिकों के दूध पीते बालकों के लिए उपचारिकाओं (नर्सों) की देख-रेख में उपचार गृह चलाए जाते हैं और ऐसे बालकों को दूध पिलाने के लिए श्रमिक माताओं को समय-समय पर छुट्टी दी जाती है। समुचित वेतन, सवेतन छुट्टियाँ तथा अन्य सुविधाएँ भी श्रमिकों को दी गई हैं।
 
[[आकस्मिक दुर्घटना|आकस्मिक दुर्घटनाओं]] और उद्योगजन्य व्यावसायिक रोगों की रोकथाम तथा चिकित्सा की व्यवस्था की जाती है। स्वास्थ्य संरक्षण के हेतु [[प्राथमिक चिकित्सा]] (फ़र्स्ट एड) और शारीरिक स्वच्छता के हेतु [[स्नानागार]] (बाथरूम) और [[शौचालय]] स्थापित किए जाते हैं। स्त्रियों तथा किशोर श्रमिकों के लिए विशेष प्रकार के 'आपज्जनक कार्य' वर्जित हैं। विभिन्न प्रकार के उद्योगों के लिए और मुख्य व्यावसायिक रोगों के लिए विशेष प्रतिबंध लगाए गए हैं। रासायनिक पदार्थों का निरापद रीति से उपयोग करना अनिवार्य है।
 
कर्मचारी राज्य बीमा अधिनियम (एंप्लॉयीज़ स्टेट इन्श्योरेन्स ऐक्ट) के अंतर्गत रोगावस्था, जरावस्था, अकाल मृत्यु, अपंगता आदि की दशा में चिकित्सा, आर्थिक सहायता या छुट्टी की व्यवस्था है। स्त्रियों के लिए मातृत्व सहायता के रूप में [[प्रसव]] के छह सप्ताह पूर्व से लेकर छह सप्ताह पश्चात् तक तीन मास की छुट्टी और धन की सहायता मिलती है, रोगावस्था में सबकी चिकित्सा की जाती है। कर्मचारीगण, उद्योगपति, राज्य सरकारें तथा केंद्र सरकार इस नियम को चलाने के लिए नियमानुसार आर्थिक योग देती हैं। श्रमिकों को अपने वेतन से आय के अनुसार कटौती करानी पड़ती है। जिस स्थान में कर्मचारी सरकारी बीमा योजना अभी चालू नहीं की जा सकती है वहाँ कर्मचारी क्षतिपूर्ति अधिनियम (वर्कमेन्स कंपेन्सेशन ऐक्ट) के अंतर्गत श्रमिकों का कारखानें में काम करने से अंगभंग, अशक्तता अथवा मृत्यु होने पर श्रमिकों या उनके परिवार के सदस्यों को आर्थिक सहायता मिलने की व्यवस्था है।