"केन्द्रीय प्रशासनिक अधिकरण": अवतरणों में अंतर

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[[सिविल प्रक्रिया संहिता, १९०८]] की संहिता में निर्धारित प्रक्रिया के लिए कैट बाध्य नहीं है, किन्तु प्राकृतिक न्याय के सिद्धांतों द्वारा निर्देशित है। एक अधिकरण के पास उसी प्रकार की शक्तियां होती हैं जो सिविल प्रक्रिया संहिता, 1908 की संहिता के तहत एक सिविल कोर्ट के पास होती हैं। कोई व्यक्ति अधिकरण में आवेदन कानूनी सहायता के माध्यम से या फिर स्वंय हाजिर होकर कर सकता है।
 
किसी न्यायाधिकरण अथवा अधिकरण के आदेश के विरुद्ध [[उच्च न्यायालय]] में तो अपील की जा सकती है लेकिन [[भारत का उच्चतम न्यायालय|सर्वोच्च न्यायालय]] में नहीं।
 
==इतिहास==
कार्मिक प्रबंधन को नियंत्रित करने वाले नियमों तथा विनियमों की विस्तृत व्‍यवस्‍था के बावजूद भी कुछ सरकारी कर्मचारी कभी-कभी सरकार के निर्णयों से व्‍यथित हो सकते हैं। इन मामलों का निपटान करने में न्‍यायालयों को कई वर्ष लग जाते थे और मुकद्दमेबाजी बहुत महंगी थी। सरकार के निर्णयों से व्‍यथित कर्मचारियों को शीघ्र और सस्‍ता न्‍याय उपलब्ध करवाने के प्रयोजन से, सरकार ने 1985 में केन्‍द्रीय प्रशासनिक अधिकरण स्‍थापित किया था जो अब सेवा से सम्‍बन्धित ऐसे सभी मामलों पर विचार करता है जिन पर पहले उच्‍च न्‍यायालयों सहित उनके स्‍तर तक के न्‍यायालयों द्वारा कार्रवाई की जाती थी।
 
जुलाई १९८५ में प्रशासनिक न्यायाधिकरण अधिनियम पारित होने के बाद नवम्बर १९८५ में [[दिल्ली]], [[मुम्बई]], [[कोलकाता]] और [[इलाहाबाद]] में चार पीठें स्थापित हुईं। वर्तमान में जहाँ भी [[उच्च न्यायालय]] हैं वहाँ प्राधिकरण की पीठ है। इस प्रकार देश में कुल १७ मुख्य पीठें तथा ३३ डिविजन बेंच हैं। इसके अलावा [[नागपुर]], [[गोवा]], [[औरंगाबाद]], [[जम्मू]], [[शिमला]], [[इन्दौर]], [[ग्वालियर]], [[ बिलासपुर]], [[राँची]], [[पुदुचेरी (नगर)|पांडीचेरी]], [[गान्तोक|गंगटोक]], [[पोर्ट ब्लेयर]], [[शिलांग]], [[अगरतला]], [[कोहिमा]], [[इम्फाल]], [[ईटानगर|इटानगर]], [[ऐजवाल]] और [[नैनीताल]] में चल पीठें (सर्किट सिटिंग) लगतीं हैं।<ref>[http://cgat.gov.in/intro.htm Introduction to CAT]</ref>
 
== इन्हें भी देखें==