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'''धन्वन्तरि''' [[हिन्दू धर्म]] में एक देवता हैं। वे महान चिकित्सक थे जिन्हें देव पद प्राप्त हुआ। हिन्दू धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये भगवान [[विष्णु]] के [[अवतार]] समझे जाते हैं। इनका [[पृथ्वी]] लोक में अवतरण [[समुद्र मन्थन|समुद्र मंथन]] के समय हुआ था। [[शरद पूर्णिमा]] को [[चन्द्रमा|चंद्रमा]], [[कार्तिक]] [[द्वादशी]] को कामधेनु गाय, [[त्रयोदशी]] को धन्वंतरी<ref>[http://uditbhargavajaipur.blogspot.com/2010/03/4_26.html विष्णु पुराण-४]। २६ मार्च २०१०। भार्गव</ref>, [[चतुर्दशी]] को [[काली]] माता और अमावस्या को भगवती [[लक्ष्मी]] जी का सागर से प्रादुर्भाव हुआ था। इसीलिये [[दीपावली]] के दो दिन पूर्व [[धनतेरस]] को भगवान धन्वंतरी का जन्म [[धनतेरस]] के रूप में मनाया जाता है। इसी दिन इन्होंने [[आयुर्वेद]] का भी प्रादुर्भाव किया था।<ref name="">[http://express.ashram.org/?tag=hmedabad दीपावली – पूजन का शास्त्रोक्त विधान]। आश्रम.ऑर्ग। २८ अक्टूबर २००८</ref> इन्‍हें भगवान विष्णु का रूप कहते हैं जिनकी चार भुजायें हैं। उपर की दोंनों भुजाओं में [[शंख]] और [[चक्र]] धारण किये हुये हैं। जबकि दो अन्य भुजाओं मे से एक में जलूका और औषध तथा दूसरे मे अमृत [[कलश]] लिये हुये हैं। इनका प्रिय धातु [[पीतल]] माना जाता है। इसीलिये धनतेरस को पीतल आदि के बर्तन खरीदने की परंपरा भी है।<ref>[http://hindi.webdunia.com/religion/astrology/article/0810/24/1081024022_1.htm धनतेरस पर सोना नहीं पीतल खरीदें]। वेब दुनिया</ref> इन्‍हे आयुर्वेद की चिकित्सा करनें वाले वैद्य '''आरोग्य का देवता''' कहते हैं। इन्होंने ही अमृतमय औषधियों की खोज की थी। इनके वंश में [[दिवोदास]] हुए जिन्होंने '[[शल्यचिकित्सा|शल्य चिकित्सा]]' का विश्व का पहला विद्यालय [[काशी]] में स्थापित किया जिसके प्रधानाचार्य [[सुश्रुत]] बनाये गए थे।<ref name="वैभव">[http://tdil.mit.gov.in/CoilNet/IGNCA/kbhu_v02.htm काशी की विभूतियाँ]। वाराणसी वैभव</ref> सुश्रुत दिवोदास के ही शिष्य और ॠषि विश्वामित्र के पुत्र थे। उन्होंने ही [[सुश्रुत संहिता]] लिखी थी। सुश्रुत विश्व के पहले सर्जन ([[शल्यचिकित्सा|शल्य चिकित्सक]]) थे। [[दीपावली]] के अवसर पर [[कार्तिक]] [[त्रयोदशी]]-[[धनतेरस]] को भगवान धन्वंतरि की पूजा करते हैं। कहते हैं कि शंकर ने विषपान किया, धन्वंतरि ने अमृत प्रदान किया और इस प्रकार काशी कालजयी नगरी बन गयी।
 
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:::स्वनाम्ना संहितां चक्रे लक्ष श्लोकमयीमृजुम्।।<ref>भावप्रकाश</ref>
 
इसके उपरान्त अग्निवेश तथा अन्य शिष्यों के तन्त्रों को संकलित तथा प्रतिसंस्कृत कर चरक द्वरा '[[चरक संहिता]]' के निर्माण का भी आख्यान है। वेद के संहिता तथा ब्राह्मण भाग में धन्वंतरि का कहीं नामोल्लेख भी नहीं है। [[महाभारत]] तथा [[पुराणोंपुराण]]ों में विष्णु के अंश के रूप में उनका उल्लेख प्राप्त होता है। उनका प्रादुर्भाव समुद्रमंथन के बाद निर्गत कलश से अण्ड के रूप मे हुआ। समुद्र के निकलने के बाद उन्होंने भगवान विष्णु से कहा कि लोक में मेरा स्थान और भाग निश्चित कर दें। इस पर विष्णु ने कहा कि ''यज्ञ का विभाग तो देवताओं में पहले ही हो चुका है अत: यह अब संभव नहीं है। देवों के बाद आने के कारण तुम (देव) ईश्वर नहीं हो। अत: तुम्हें अगले जन्म में सिद्धियाँ प्राप्त होंगी और तुम लोक में प्रसिद्ध होगे। तुम्हें उसी शरीर से देवत्व प्राप्त होगा और द्विजातिगण तुम्हारी सभी तरह से पूजा करेंगे। तुम आयुर्वेद का अष्टांग विभाजन भी करोगे। द्वितीय [[द्वापर युग]] में तुम पुन: जन्म लोगे इसमें कोई सन्देह नहीं है।''<ref name="वैभव"/> इस वर के अनुसार पुत्रकाम काशिराज धन्व की तपस्या से प्रसन्न हो कर अब्ज भगवान ने उसके पुत्र के रूप में जन्म लिया और धन्वंतरि नाम धारण किया। धन्व [[काशी]] नगरी के संस्थापक काश के पुत्र थे।
 
वे सभी रोगों के निवराण में निष्णात थे। उन्होंने भरद्वाज से आयुर्वेद ग्रहण कर उसे अष्टांग में विभक्त कर अपने शिष्यों में बाँट दिया। धन्वंतरि की परम्परा इस प्रकार है -
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==इन्हें भी देखें==
*[[धनतेरस|धन तेरस]] - भगवान धन्वतरि की जयन्ती
*[[भैषज्यगुरु]]
*[[अश्विनीकुमार (पौराणिक पात्र)|अश्विनीकुमार]]
*[[समुद्र मन्थन|समुद्र मंथन]]
*[[चरक]]