"गुरबचन सिंह सलारिया": अवतरणों में अंतर

छो अमित१९८५ (Talk) के संपादनों को हटाकर SM7Bot के आखिरी अवतरण को पूर्ववत किया
टैग: वापस लिया
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 9:
|birth_date= {{birth date|df=yes|1935|11|29}}
|death_date= {{Death date and age|df=yes|1961|12|5|1935|11|29}}
|birth_place= [[पंजाब प्रांत (ब्रिटिश भारत)|पंजाब]], [[ब्रिटिश भारत के प्रेसीडेंसी और प्रांत|ब्रिटिश भारत]] (वर्तमान में [[पाकिस्तान]] का हिस्सा)
|death_place= [[लुबुम्बाशी]], [[कातांगा प्रान्त]], [[कांगो लोकतान्त्रिक गणराज्य]]
|placeofburial =
पंक्ति 17:
|birth_name =
|allegiance = {{flag|भारत}}
|branch= [[File:Flag of Indian Army.svg|24px]] [[भारतीय सशस्‍त्र सेनाएँ|भारतीय सेना]]
|serviceyears = 1957–1961
|rank = [[File:Captain of the Indian Army.svg|18px]] [[कैप्टन]]
|servicenumber = IC-8947{{Sfn|Chakravorty|1995|p=69}}
|alma_mater = [[राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत)|राष्ट्रीय रक्षा अकादमी]]
|unit= 3/[[1 गोरखा राइफल्स]]
|commands =
पंक्ति 31:
|signature =
}}
'''कैप्टन गुरबचन सिंह सलारिया''' [[परमवीर चक्र]] (29 नवंबर 1935 - 5 दिसंबर 1961) एक भारतीय सैन्य अधिकारी और संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान के सदस्य थे। वह परमवीर चक्र प्राप्त करने वाले एकमात्र संयुक्त राष्ट्र शांतिरक्षक हैं<ref name="aajtak.intoday.in 2017">{{cite web | title=अफ्रीकी देश में शांति के लिए शहीद हो गए थे गुरबचन सिंह | website=aajtak.intoday.in | date=२९ अक्टूबर २०१७| url=https://aajtak.intoday.in/education/story/know-about-gurbachan-singh-on-his-birth-anniveresry-tedu-1-961059.html | language = hi | accessdate=४ अप्रैल २०१८}}</ref>। वह किंग जॉर्ज के [[भारतीय राष्ट्रीय मिलिट्री कालेज|रॉयल मिलिट्री कॉलेज]] और [[राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत)|राष्ट्रीय रक्षा अकादमी]] के पूर्व छात्र थे।
इन्हें यह सम्मान सन [[१९६२|1962]] में मरणोपरांत मिला।<ref>http://www.gallantryawards.gov.in/Awardee/gurbachan-singh-salaria</ref>
 
दिसंबर 1961 में कांगो में [[संयुक्त राष्ट्र शांतिस्थापन|संयुक्त राष्ट्र के ऑपरेशन]] के तहत कांगो गणराज्य में तैनात भारतीय सैनिकों में सलारिया भी शामिल थे। 5 दिसंबर को सलारिया की बटालियन को दो बख्तरबंद कारों पर सवार [[कातांगा प्रान्त|पृथकतावादी राज्य कातांगा]] के 150 सशस्त्र पृथकतावादियों द्वारा एलिज़ाबेविले हवाई अड्डे के मार्ग के अवरुद्धीकरण को हटाने का कार्य सौंपा गया। उनकी रॉकेट लांचर टीम ने कातांगा की बख्तरबंद कारों पर हमला किया और नष्ट कर दिया। इस अप्रत्याशित कदम ने सशस्त्र पृथकतावादियों को भ्रमित कर दिया, और सलारिया ने महसूस किया कि इससे पहले कि वे पुनर्गठित हो जाएं, उन पर हमला करना सबसे अच्छा होगा। हालांकि उनकी सेना की स्थिति अच्छी नहीं थी फिर भी उन्होंने पृथकतावादियों पर हमला करवा दिया और 40 लोगों को कुकरियों से हमले में मार गिराया। हमले के दौरान सलारिया को गले में दो बार गोली मार दी और वह वीर गति को प्राप्त हो गए। बाकी बचे पृथकतावादी अपने घायल और मरे हुए साथियों को छोड़ कर भाग खड़े हुए और इस प्रकार मार्ग अवरुद्धीकरण को साफ़ कर दिया गया। अपने कर्तव्य और साहस के लिए और युद्ध के दौरान अपनी सुरक्षा की उपेक्षा करते हुए कर्तव्य करने के कारण सलारिया को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में मरणोपरांत [[परमवीर चक्र|परम वीर चक्र]] से सम्मानित किया गया।
 
==प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा==
गुरबचन सिंह सलाारिया का जन्म 29 नवंबर 1935 को शकगरगढ़, पंजाब, [[ब्रिटिश भारत के प्रेसीडेंसी और प्रांत|ब्रिटिश भारत]] (अब पाकिस्तान में) के पास एक गांव जनवाल में हुआ था। वह मुंशी राम और धन देवी के पांच बच्चों में से दूसरे थे। उनके पिता को पहले [[ब्रिटिश भारतीय सेना]] में हॉसंस हॉर्स के डोगरा स्क्वाड्रन में शामिल किया गया था। अपने पिता और उनकी रेजिमेंट की कहानियों को सुनकर सेलेरिया को बहुत कम उम्र में सेना में शामिल होने की प्रेरणा मिली।
 
भारत के विभाजन के परिणामस्वरूप सलाारिया के परिवार वाले पंजाब के भारतीय भाग में चले गए और [[गुरदासपुर]] जिले के जंगल गांव में बस गए। सालरिया ने स्थानीय गांव के स्कूल में दाखिला लिया और बाद में 1946 में उन्हें [[बंगलौर|बैंगलोर]] में किंग जॉर्ज रॉयल मिलिट्री कॉलेज (केजीआरएमसी) में भर्ती कराया गया। अगस्त 1947 में उन्हें जालंधर में केजीआरएमसी में स्थानांतरित कर दिया गया। केजीआरएमसी से बाहर जाने के बाद वह [[राष्ट्रीय रक्षा अकादमी (भारत)|राष्ट्रीय रक्षा अकादमी]] (एनडीए) के संयुक्त सेवा विंग में शामिल हुए। 1956 में एनडीए से स्नातक होने पर उन्होंने भारतीय सैन्य अकादमी से 9 जून 1957 को अपना अध्ययन पूरा किया। सालिया को शुरू में 3 गोरखा राइफल्स की दूसरी बटालियन में नियुक्त किया गया था, लेकिन बाद में मार्च 1995 में 1 गोरखा राइफल्स की तीसरी बटालियन में स्थानांतरित कर दिया गया।
 
==कांगो संकट==
पंक्ति 47:
 
==सम्मान==
अपने कर्तव्य और साहस के लिए और युद्ध के दौरान अपनी सुरक्षा की उपेक्षा करते हुए कर्तव्य करने के कारण सलारिया को भारत सरकार द्वारा वर्ष 1962 में मरणोपरांत [[परमवीर चक्र|परम वीर चक्र]] से सम्मानित किया गया।
 
==सन्दर्भ==