"देवराज यज्वा": अवतरणों में अंतर
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देवराज यज्वा यज्ञेश्वर के पुत्र थे। कहा जाता है इनके पितामह का नाम भी देवराज यज्वा था। इनका नाम दक्षिण भारत में प्रचलित नामों जैसा है, जो इनके दक्षिणी होने की सूचना देता है। इनका निश्चित समय क्या है, कहना कठिन है। ये [[सायण]] से प्राचीन हैं अथवा अर्वाचीन, इस विषय में भी मतभेद है। कुछ विद्वान् इन्हें सायण से परवर्ती ठहराते हैं। इसके विपरीत कुछ प्रमाण इन्हें सायण से पूर्ववर्ती सिद्ध करते हैं। सायणाचार्य ने [[ऋग्वेद]] की एक [[ऋचा]] (१-६२-३) की व्याख्या में 'निघंटु भाष्य' की कतिपय पंक्तियाँ उद्धृत की हैं, जो कुछ पाठांतर के साथ देवराज यज्वा के भाष्य में भी उपलब्ध होती हैं। यह 'निघंटुभाष्य' देवराजयज्वा का ही भाष्य प्रतीत होता है।
इनके भाष्य का वास्तविक नाम ''''निघंटुनिर्वचन'''' है, जिसमें इन्होंने निघंटु के अन्य कांडों की अपेक्षा, नैघंटुक कांड पर ही विस्तृत निर्वचन किया है। वे स्वयं कहते हैं- 'विचारयति देवराजो नैघंटुक कांडनिर्वचनम्'। देवराज यज्वा ने अपने भाष्य की भूमिका में [[अमरकोश]] के टीकाकार [[क्षीरस्वामी]] तथा निघंटु के अन्य व्याख्याकारों [[अनंताचार्य]] आदि का संकेत किया है। इसके अतिरिक्त जो उन्होंने अपनी भाष्य भूमिका में तत्कालीन निघंटु की प्राप्त विभिन्न [[
देवराज यज्वा निघंटु के शुद्ध संस्करण प्रस्तुत करने में भी प्रयत्नशील दिखाई देते हैं, जैसा कि उनकी निम्नलिखित पंक्तियों से विदित होता है-
: ''अन्येषां च पदानामस्मत्कुले समाम्राध्ययनस्याविच्छेदात् भाष्यस्य बहुश: पर्यालोचनात् बहुदेशसमानीतात् बहुकोशनिरीक्षणच्च पाठ: संशोधित:''।
देवराज यज्वा ने अपनी व्याख्या में निघंटु के प्रत्येक शब्द की व्याख्या की है। ये प्राय: अपने पूर्ववर्ती [[स्कंदस्वामी]], [[संगमग्राम के माधव|माधव]] आदि भाष्यकारों के पाठों को प्रस्तुत करते हैं विशेषत: जहाँ उनसे उनका मतभेद होता है।
== बाहरी कड़ियाँ==
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