"गुरमुखी लिपि": अवतरणों में अंतर

स्वाध्याय द्वारा
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कृपया ध्यान दें कि अक्षर-रूप मिलने के बावजूद पंजाबी द्वारा गुरमुखी और हिन्दी द्वारा देवनागरी के प्रयोग में कुछ महत्वपूर्ण अंतर हैं:
* गुरमुखी में कुछ प्राचीन शब्दों की अंतिम मात्राएँ उच्चारित नहीं होती। यदि पंजाबी का एक पारंपरिक अभिवादन देखा जाए - 'ਸਤਿ ਸ਼੍ਰੀ ਅਕਾਲ' - तो इसका सीधा देवनागरी परिवर्तन 'सति श्री अकाल' निकलता है लेकिन इसे 'सत श्री अकाल' पढ़ा जाता है।
* महाप्राण व्यंजनों में श्वास अक्सर हटाया जाता है और सुर द्वारा अक्षरों में भेद दिखाया जाता है। इसलिए कहा जाता है कि पंजाबी एक [[सुरभेदी भाषा]] है। अक्सर अन्य [[हिन्द-आर्य भाषाएँ|हिन्द-आर्य भाषाओँ]] के बोलने वाले जब पंजाबी बोलते हैं तो उनके सुर हिन्दी-जैसे होते हैं, जिनसे पंजाबी मातृभाषियों को उनका बोलने का [[लहजा (भाषाविज्ञान)|लहजा]] कृत्रिम लगता है। मसलन:
** ਘੋੜਾ - यानि अश्व। इसका नागरी 'घोड़ा' है लेकिन इसका सही उच्चारण 'कोड़ा' है जिसमें बोलते हुए सुर भारी होकर हल्का किया जाता है (यानि गिरता-उठता है)।
** ਕੋੜਾ - यानि चाबुक। इसका नागरी 'कोड़ा' है और उच्चारण भी सुर को सामान्य रखकर 'कोड़ा' होता है।