"सेडान युद्ध": अवतरणों में अंतर

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|conflict=सेडान युद्ध
|date=1–2 सितम्बर 1870
|place=सेडान, [[फ़्रान्स|फ्रांस]]
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|result=निर्णायक जर्मन जीत
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*[[नैपोलियन तृतीय]] का समर्पण, बन्दी, और पदत्याग।
|combatant1={{flagicon|उत्तरी जर्मन परिसंघ}} [[उत्तरी जर्मन परिसंघ]]<br>{{flagcountry|बवेरिया राज्य}}
|combatant2={{flagicon|दूसरा फ्रांसीसी साम्राज्य}} [[फ़्रान्स|फ्रांस]]
|commander1={{flagicon|उत्तरी जर्मन परिसंघ}} [[विल्हेम प्रथम (जर्मनी)|विल्हेम प्रथम]]<br>{{flagicon|उत्तरी जर्मन परिसंघ}} [[हेल्मुथ वॉन मोल्टके द एल्डर]]
|commander2={{flagicon|दूसरा फ्रांसीसी साम्राज्य}} [[नैपोलियन तृतीय]]{{surrendered}}<br>{{flagicon|दूसरा फ्रांसीसी साम्राज्य}} पैट्रिस डे मैकमोहन, ड्यूक ऑफ मैजेंटा {{surrendered}}<br>{{flagicon|दूसरा फ्रांसीसी साम्राज्य}} ऑगस्ते-एलेक्जेंडर डुकोट{{POW}}<br>{{flagicon|दूसरा फ्रांसीसी साम्राज्य}} इमॅन्यूएल फेलिक्स डे विंपफेंन {{surrendered}}
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[[चित्र:Karte zur Schlacht bei Sedan (01.09.1870).jpg|right|thumb|300px|सेडॉन युद्ध का मानचित्र]]
'''सेडान युद्ध''' (Battle of Sedan) [[फ्रांसीसी जर्मन युद्ध|फ्रांस-प्रशा युद्ध]] के दौरान १ सितम्बर १८७० को हुआ था। [[नैपोलियन तृतीय]] और उसके बहुत सारे सैनिक पकडे गये। इस युद्ध में सभी दृष्टियों से [[प्रशिया|प्रशा]] एवं उसके सहयोगियों की जीत हुई। इसके बावजूद नयी फ्रांसीसी सरकार ने युद्ध जारी रखा।
 
== युद्ध का तात्कालिक कारण ==
नैपोलियन तृतीय ने अपने प्रभुत्व व प्रतिष्ठा की वृद्धि के लिए [[नीदरलैण्ड|हॉलैंड]] के शासक से [[लक्ज़मबर्ग|लक्सेम्बर्ग]] खरीदने की सहमति प्राप्त की। किन्तु हस्तांतरण की योजना [[जर्मनी]] में प्रकट हो गई। जिससे फ्रांस का विरोध होने लगा। ऐसे में हॉलैण्ड ने भी लम्सेम्बर्ग हस्तांतरित करने से इन्कार कर दिया। फलतः फ्रांस में [[बिस्मार्क]] के विरूद्ध तीव्र प्रतिक्रिया हुई।
 
[[स्पेन]] के उत्तराधिकार के प्रश्न ने फ्रांस-प्रशा युद्ध का मार्ग प्रशस्त किया। वस्तुतः 1868 में स्पेन की जनता ने [[महारानी इसाबेला]] के विरूद्ध विद्रोह कर उसे हटा दिया। अब यह गद्दी प्रशा के राजा के संबंधी होहेजोलेर्न वंश के राजकुमार लियोपोल्ड को देने का प्रस्ताव लाया गया। लेकिन जैसे ही इसकी खबर नेपालियन तृतीय को लगी, उसने इसका कड़ा विरोध किया क्योंकि लियोपोल्ड को स्पेन की गद्दी मिल जाने से प्रशा की शक्ति बढ़ जाती और फ्रांस की सुरक्षा के लिए खतरा उत्पन्न हो जाता। नेपालियन तृतीय के विरोध से लियोपोल्ड ने भयभीत होकर गद्दी पर बैठने से इन्कार कर दिया। किन्तु नेपोलियन इससे सन्तुष्ट नहीं हुआ। परिणामतः उसने अपने राजदूत बेनडेटी को प्रशा के राजा से एम्स नामक स्थान पर मिलने के लिए भेजा और यह आवश्वासन मांगने के लिए कहा कि भविष्य में वह किसी भी जर्मन राजकुमार को स्पेन की गद्दी पर बैठने का समर्थन नहीं करेगा। सम्राट [[विल्हेम प्रथम (जर्मनी)|विल्हेम प्रथम]] ने बेनडिटी को उचित आश्वासन दे दिया और इस बात की खबर उसने तार द्वारा बिस्मार्क को दे दी। बिस्मार्क ने तार की बातों को इस तरह संशोधित कर अखबारों में छपने के लिए दे दिया कि प्रशा के लोगोंं को लगा कि बेनडिटी ने राजा के साथ अभद्र व्यवहार किया है और फ्रांस के लोगों को लगा कि प्रशा के सम्राट ने उनके राजदूत के साथ अभद्र व्यवहार किया है। फलतः दोनों देशों में राष्ट्रवाद कि लहर चलने लगी। अन्ततः विवश होकर 1870 में फ्रांस ने प्रशा के विरूद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। १ सितम्बर 1870 को सेडान के युद्ध में फ्रांस की पराजय हुई। नेपोलियन तृतीय को प्रशा के सेना के समक्ष सम्पूर्ण करना पड़ा। 1871 में [[फ्रैंकफर्ट की सन्धि (१८७१)|फ्रैंकफर्ट की सन्धि]] हुई सन्धि हुई सन्धि के तहत फ्रांस को [[अल्सास]] और लॉरेन के प्रदेश प्रशा को देने पड़े। दक्षिण जर्मन राज्यों को जर्मन परिसंघ में मिला लिया गया। इसी के साथ [[जर्मनी का एकीकरण]] पूरा हुआ।
 
== निष्कर्ष और परिणाम ==
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* सेडान के युद्ध ने जर्मनी के एकीकरण को पूर्णता प्रदान की। अब एकीकृत जर्मनी यूरोप का प्रतिष्ठित और शक्तिशाली राज्य बन गया। [[बिस्मार्क]] न केवल जर्मनी का वरन् यूरोप का प्रभावशाली राजनीतिज्ञ बन गया। यूरोप के नक्शे पर एकीकृत जर्मनी का उदय हुआ, जिसकी राजधानी [[बर्लिन]] बनी।
 
* इस युद्ध ने [[इटली काइतालवी एकीकरण|इटली के एकीकरण]] को भी पूरा किया। वस्तुतः फ्रांस की सेना की एक टुकड़ी रोम में [[पोप]] की रक्षा के लिए रखी गई थी। फ्रांस-प्रशा युद्ध के समय फ्रांस ने यह सेना रोम से बुला ली। फलतः इटली ने मौके का फायदा उठाकर [[रोम]] पर अधिकार कर लिया और इटली का एकीकरण पूरा हुआ।
 
* इस युद्ध में सर्वाधिक हानि फ्रांस को हुई। उसे युद्ध में भारी हर्जाने के अलावा उसे अल्सॉस-लॉरेन जैसे अत्याधिक समृद्ध प्रदेश से हाथ धोने पड़े। इससे फ्रांस और जर्मनी में दीर्घकालिक शत्रुता का जन्म हुआ। यही शत्रुता [[पहला विश्व युद्ध|प्रथम विश्वयुद्ध]] का एक महत्पूर्ण कारण बनी। इसलिए यह कहा जाता है कि 1871 के पश्चात् फै्रंकफर्ट सन्धि यूरोप का रिसने वाला फोड़ा बन गया।
 
* युद्ध में पराजय के कारण फ्रांस में राजतंत्र का सदैव के लिए अन्त हो गया। [[तृतीय फ्रांसीसी गणतंत्र|फ्रांस में तृतीय गणतंत्र]] की स्थापना हुई जो थोड़े बहुत परिवर्तनों के साथ आज भी विद्यमान है।