"अलाउद्दीन खिलजी": अवतरणों में अंतर

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| coronation = 1296
| cor-type =
| predecessor = [[जलालुद्दीन फिरोज़ खिलजीख़िलजी|जलालुद्दीन खिलजी]]
| successor = [[शहाबुद्दीन उमर]]
| succession1 = [[अवध]] का राज्यपाल
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* खिज़्र खान
* शादी खान
* [[क़ुतुबुद्दीन मुबारक़ ख़िलजी|कुतुबुद्दीन मुबारक शाह]]
* [[शाहबुद्दीन उमर]]
}}
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[[चित्र:Khilji dynasty 1290 - 1320 ad.PNG|thumb|खिलजी साम्राज्य की सीमाएं {{Disputed inline|reason=see the image page. This is an unsourced map, contradicted by KS Lal's ''History of the Khaljis'' (p. 220-221)|talk=Talk:Khalji dynasty#Map|date=September 2017}}]]
 
'''अलाउद्दीन खिलजी''' (वास्तविक नाम अलीगुर्शप 1296-1316) [[दिल्ली सल्तनत]] के [[ख़िलजी वंश|खिलजी वंश]] का दूसरा शासक था।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india-41344270|title=क्या रिश्ता था अलाउद्दीन खिलजी और मलिक काफ़ूर का?}}</ref> उसका साम्राज्य अफगानिस्तान से लेकर उत्तर-मध्य भारत तक फैला था। इसके बाद इतना बड़ा भारतीय साम्राज्य अगले तीन सौ सालों तक कोई भी शासक स्थापित नहीं कर पाया था। मेवाड़ [[चित्तौड़गढ़|चित्तौड़]] का युद्धक अभियान इतिहास की एक महत्वपूर्ण घटना है।<ref>{{cite web|url=https://scroll.in/article/858619/history-lesson-padmavati-was-driven-to-immolation-by-a-rajput-prince-not-ala-ud-din-khalji|title=History lesson: Padmavati was driven to immolation by a Rajput prince, not Ala-ud-din Khalji}}</ref> ऐसा माना जाता है कि वो चित्तौड़ की रानी [[पद्मिनी]] की सुन्दरता पर मोहित था।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/india-42080687|title=कहाँ से आई थीं पद्मावती?}}</ref> इसका वर्णन [[मलिक मोहम्मद जायसी|मलिक मुहम्मद जायसी]] ने अपनी रचना [[पद्मावत]] में किया है।<ref>{{cite web|url=https://scroll.in/article/854706/ala-ud-din-khalji-why-the-peoples-king-was-made-out-to-be-a-monster-by-16th-century-chroniclers|title=Ala-ud-din Khalji: Why the ‘people’s king’ was made out to be a monster by 16th century chroniclers}}</ref>
 
उसके समय में उत्तर पूर्व से [[मंगोल]] आक्रमण भी हुए। उसने उसका भी डटकर सामना किया।<ref>{{cite web|url=http://www.bbc.com/hindi/entertainment-42062092|title='पद्मावती में असल अन्याय ख़िलजी के साथ हुआ है'}}</ref> अलाउद्दीन ख़िलजी के बचपन का नाम अली 'गुरशास्प' था। जलालुद्दीन खिलजी के तख्त पर बैठने के बाद उसे 'अमीर-ए-तुजुक' का पद मिला। मलिक छज्जू के विद्रोह को दबाने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाने के कारण जलालुद्दीन ने उसे कड़ा-मनिकपुर की सूबेदारी सौंप दी। भिलसा, चंदेरी एवं देवगिरि के सफल अभियानों से प्राप्त अपार धन ने उसकी स्थिति और मज़बूत कर दी। इस प्रकार उत्कर्ष पर पहुँचे अलाउद्दीन खिलजी ने अपने चाचा जलालुद्दीन की हत्या धोखे से 22 अक्टूबर 1296 को खुद से गले मिलते समय अपने दो सैनिकों (मुहम्मद सलीम तथा इख़्तियारुद्दीन हूद) द्वारा करवा दी। इस प्रकार उसने अपने सगे चाचा जो उसे अपने औलाद की भांति प्रेम करता था के साथ विश्वासघात कर खुद को सुल्तान घोषित कर दिया और दिल्ली में स्थित बलबन के लालमहल में अपना राज्याभिषेक 22 अक्टूबर 1296 को सम्पन्न करवाया।
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=== रणथम्भौर विजय ===
[[रणथम्भोर राष्ट्रीय उद्यान|रणथम्भौर]] के शासक हम्मीरदेव अपनी योग्यता एवं साहस के लिए प्रसिद्ध थे। अलाउद्दीन के लिए रणथम्भौर को जीतना इसलिए भी आवश्यक था, क्योंकि हम्मीरदेव ने विद्रोही मंगोल नेता मुहम्मद शाह एवं केहब को अपने यहाँ शरण दे रखी थी, इसलिए भी अलाउद्दीन रणथम्भौर को जीतना चाहता था। अतः जुलाई, 1301 ई. में अलाउद्दीन ने रणथम्भौर के क़िले को अपने क़ब्ज़े में कर लिया। हम्मीरदेव वीरगति को प्राप्त हुए। अलाउद्दीन ने रनमल और उसके साथियों का वध करवा दिया, जो हम्मीरदेव से विश्वासघात करके उससे आ मिले थे। ‘तारीख़-ए-अलाई’ एवं ‘हम्मीर महाकाव्य’ में हम्मीरदेव और उनके परिवार के लोगों का जौहर द्वारा मृत्यु प्राप्त होने का वर्णन है। रणथम्भौर युद्ध के दौरान ही नुसरत ख़ाँ की मृत्यु हुई। हम्मीर रासो के अनुसार हम्मीर की रानी रंगदे के नेतृत्व में राजपूत महिलाओ ने जौहर (आग में कूदकर आत्महत्या) किया तथा राजकुमारी देवल दे ने पद्मला तालाब में कूदकर जल जौहर किया था।
 
=== चित्तौड़ आक्रमण एवं मेवाड़ विजय ===
[[मेवाड़]] के शासक राणा रतन सिंह थे , जिनकी राजधानी [[चित्तौड़गढ़|चित्तौड़]] थी। चित्तौड़ का क़िला सामरिक दृष्टिकोण से बहुत सुरक्षित स्थान पर बना हुआ था। इसलिए यह क़िला अलाउद्दीन की निगाह में चढ़ा हुआ था। कुछ इतिहासकारों ने अमीर खुसरव के रानी शैबा और सुलेमान के प्रेम प्रसंग के उल्लेख आधार पर और 'पद्मावत की कथा' के आधार पर चित्तौड़ पर न के आक्रमण का कारण रानी [[पद्मिनी]] के अनुपन सौन्दर्य के प्रति उसके आकर्षण को ठहराया है ।<ref>{{cite web|url=https://aajtak.intoday.in/story/the-padmini-mystique-1-967503.html|title=आवरण कथाः पद्मावती का मिथक और यथार्थ}}</ref><ref>{{cite web|url=https://khabar.ndtv.com/news/bollywood/padmavati-story-incomplete-without-chittor-warriors-gora-and-badal-1780793|title=Padmavati: चित्तौड़ के इन दो योद्धाओं के बिना अधूरी है रानी पद्मावती की कहानी}}</ref> अन्ततः 28 जनवरी 1303 ई. को सुल्तान चित्तौड़ के क़िले पर अधिकार करने में सफल हुआ। रावल रतन सिंह युद्ध में शहीद हुये और उनकी पत्नी रानी [[पद्मिनी]] ने अन्य स्त्रियों के साथ जौहर कर लिया,ये चर्चा का विषय है। अधिकतर इतिहासकार [[पद्मिनी]] को काल्पनिक पात्र मानते हैं। किले पर अधिकार के बाद सुल्तान ने लगभग 30,000 राजपूत वीरों का कत्ल करवा दिया। उसने चित्तौड़ का नाम ख़िज़्र ख़ाँ के नाम पर 'ख़िज़्राबाद' रखा और ख़िज़्र ख़ाँ को सौंप कर दिल्ली वापस आ गया।
इसी के साथ मेवाड़ में रावल शाखा का अंत हुआ, कालांतर में दूसरी शाखा सिसोदिया वँश की थी, जिसके शासक "राणा" कहलाते थे
चित्तौड़ को पुनः स्वतंत्र कराने का प्रयत्न राजपूतों द्वारा जारी था। इसी बीच अलाउदीन ने ख़िज़्र ख़ाँ को वापस दिल्ली बुलाकर चित्तौड़ दुर्ग की ज़िम्मेदारी राजपूत सरदार मालदेव को सौंप दी। अलाउद्दीन की मृत्यु के पश्चात् गुहिलौत राजवंश के हम्मीरदेव ने मालदेव पर आक्रमण कर 1321 ई. में चित्तौड़ सहित पूरे मेवाड़ को आज़ाद करवा लिया। इस तरह अलाउद्दीन की मृत्यु के बाद चित्तौड़ एक बार फिर पूर्ण स्वतन्त्र हो गया।
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दक्षिण-पूर्व तेलंगाना के काकतीय और
द्वारसमुद्र के होयसल
अलाउद्दीन द्वारा दक्षिण भारत के राज्यों को जीतने के उद्देश्य के पीछे धन की चाह एवं विजय की लालसा थी। वह इन राज्यों को अपने अधीन कर वार्षिक कर वसूल करना चाहता था। दक्षिण भारत की विजय का मुख्य श्रेय ‘मलिक काफ़ूर’ को ही जाता है। अलाउद्दीन ख़िलजी के शासन काल में दक्षिण में सर्वप्रथम 1303 ई. में तेलंगाना पर आक्रमण किया गया। तेलंगाना के शासक प्रताप रुद्रदेव द्वितीय ने अपनी एक सोने की मूर्ति बनवाकर और उसके गले में सोने की जंजीर डाल कर आत्मसमर्पण हेतु मलिक काफ़ूर के पास भेजा था। इसी अवसर पर प्रताप रुद्रदेव ने मलिक काफ़ूर को संसार प्रसिद्ध [[कोहिनूर हीरा|कोहिनूर]] हीरा दिया था।
 
==== देवगिरि ====