"काच संक्रमण": अवतरणों में अंतर

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[[चित्र:Rubber plateau.svg|right|thumb|300px|अर्धक्रिस्टलीय बहुलकों को गरम करने पर उनका [[यंग मापांक|यंग प्रत्यास्थता गुणांक]] E(Pa) घटता है। यह कमी पहले तेजी से होती है, इसके बाद तापमान के वृहद रेंज में E(Pa) अपरिवर्तनशील रहता है- इस अवस्था में पदार्थ अत्यधिक [[श्यानता]] प्रदर्शित करता है। यदि ताप को और बढ़ाया जाय तो बहुलक पिघल जाता है और E(Pa) का मान शून्य हो जाता है। चित्र में काच संक्रमण ताप दिखाया गया है।]]
अक्रिस्टलीय पदार्थों का कठोर एवं भंगुर प्रावस्था से पिछली हुई रबर-जैसी अवस्था में आना '''काच-द्रव संक्रमण''' (या संक्षेप में 'काच संक्रमण') कहलाता है। यह एक व्युत्क्रमणीय प्रक्रिया है। जिस ताप पर काच-द्रव संक्रमण होता है उस ताप को 'काच संक्रमण ताप' '''Tg''' कहते हैं। जो भी अक्रिस्टलीय पदार्थ काच-द्रव संक्रमण का गुण प्रदर्शित करते हैं, [[कांच|काच]] कहलाते हैं। इसके विपरीत, श्यान द्रव का अतिशीतलन करके काच बनाने की प्रक्रिया को [[काचितीकरण|काचीकरण]] (vitrification) कहते हैं।
 
ध्यान देने योग्य बात है कि यद्यपि काच संक्रमण में पदार्थ के भौतिक गुणों में बहुत अधिक परिवर्तन होता है, तथापि काच संक्रमण अपने आप में प्रावस्था-परिवर्तन (phase transition) नहीं है। Tg का मान क्वथनांक Tm से सदा कम होता है।
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