"श्रीनिवास रामानुजन्": अवतरणों में अंतर

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| caption = श्रीनिवास रामानुजन् (1887-1920)
| birth_date = [[२२ दिसम्बर|22 दिसम्बर]], [[१८८७|1887]]
| birth_place = [[ईरोड जिला|इरोड]], [[तमिल नाडु]]
| death_date = [[२६ अप्रैल|26 अप्रैल]], [[१९२०|1920]]
| death_place = [[चेटपट]], ([[चेन्नई]]), [[तमिल नाडु]]
| residence = [[चित्र:Flag of India.svg|20px|]] [[भारत]], [[चित्र:Flag of the United Kingdom.svg|20px|]] [[यूनाइटेड किंगडम]]
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}}
'''श्रीनिवास रामानुजन् इयंगर''' (तमिल ஸ்ரீனிவாஸ ராமானுஜன் ஐயங்கார்) (22 दिसम्बर 1887 – 26 अप्रैल 1920) एक महान [[भारत|भारतीय]] [[गणितज्ञ]] थे।<ref>{{cite web|url=https://aajtak.intoday.in/education/story/maths-expert-ramanujan-facts-1-902860.html|title=इस हस्ती से गण‍ित को लगता था डर...}}</ref> इन्हें आधुनिक काल के महानतम गणित विचारकों में गिना जाता है। इन्हें गणित में कोई विशेष प्रशिक्षण नहीं मिला, फिर भी इन्होंने विश्लेषण एवं [[संख्या सिद्धान्त|संख्या सिद्धांत]] के क्षेत्रों में गहन योगदान दिए। इन्होंने अपने प्रतिभा और लगन से न केवल गणित के क्षेत्र में अद्भुत अविष्कार किए वरन भारत को अतुलनीय गौरव भी प्रदान किया।
 
ये बचपन से ही विलक्षण प्रतिभावान थे।<ref>[http://www.prabhatkhabar.com/node/3852 दो बार फेल हुए थे गणितज्ञ रामानुजन]</ref> इन्होंने खुद से गणित सीखा और अपने जीवनभर में गणित के 3,884 प्रमेयों का संकलन किया। इनमें से अधिकांश प्रमेय सही सिद्ध किये जा चुके हैं। इन्होंने गणित के सहज ज्ञान और [[बीजगणित]] प्रकलन की अद्वितीय प्रतिभा के बल पर बहुत से मौलिक और अपारम्परिक परिणाम निकाले जिनसे प्रेरित शोध आज तक हो रहा है, यद्यपि इनकी कुछ खोजों को गणित मुख्यधारा में अब तक नहीं अपनाया गया है। हाल में इनके सूत्रों को [[क्रिस्टलकी|क्रिस्टल-विज्ञान]] में प्रयुक्त किया गया है। इनके कार्य से प्रभावित गणित के क्षेत्रों में हो रहे काम के लिये ''रामानुजन जर्नल'' की स्थापना की गई है।
 
== आरंभिक जीवनकाल ==
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रामानुजन् ने निम्नलिखित सूत्र प्रतिपादित किया-
:<math> 1+\frac{1}{1\cdot 3} + \frac{1}{1\cdot 3\cdot 5} + \frac{1}{1\cdot 3\cdot 5\cdot 7} + \frac{1}{1\cdot 3\cdot 5\cdot 7\cdot 9} + \cdots + {{1\over 1 + {1\over 1 + {2\over 1 + {3\over 1 + {4\over 1 + {5\over 1 + \cdots }}}}}}} = \sqrt{\frac{e\cdot\pi}{2}}</math>
इस सूत्र की विशेषता यह है कि यह गणित के दो सबसे प्रसिद्ध नियतांकों ('पाई' तथा 'ई') का सम्बन्ध एक अनन्त [[वितत भिन्न|सतत भिन्न]] के माध्यम से व्यक्त करता है।
 
पाई के लिये उन्होने एक दूसरा सूत्र भी (सन् १९१० में) दिया था-