"सतावर": अवतरणों में अंतर
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'''सतावर''' अथवा '''शतावर''' ([[वानस्पतिक नाम]]: ''Asparagus racemosus'' / ऐस्पेरेगस रेसीमोसस) लिलिएसी कुल का एक औषधीय गुणों वाला पादप है। इसे 'शतावर', 'शतावरी', 'सतावरी', 'सतमूल' और 'सतमूली' के नाम से भी जाना जाता है। यह [[भारत]], [[श्रीलंका|श्री लंका]] तथा पूरे [[हिमालय|हिमालयी]] क्षेत्र में उगता है। इसका पौधा अनेक शाखाओं से युक्त काँटेदार लता के रूप में एक मीटर से दो मीटर तक लम्बा होता है। इसकी जड़ें गुच्छों के रूप में होतीं हैं। वर्तमान समय में इस पौधे पर लुप्त होने का खतरा है।
एक और काँटे रहित जाति हिमलाय में 4 से 9 हजार फीट की ऊँचाई तक मिलती है, जिसे [[
यह 1 से 2 मीटर तक लंबी बेल होती है जो हर तरह के जंगलों और मैदानी इलाकों में पाई जाती है। [[आयुर्वेद]] में इसे ‘औषधियों की रानी’ माना जाता है। इसकी गांठ या कंद का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें जो महत्वपूर्ण रासायनिक घटक पाए जाते हैं वे हैं ऐस्मेरेगेमीन ए नामक पॉलिसाइक्लिक एल्कालॉइड, स्टेराइडल सैपोनिन, शैटेवैरोसाइड ए, शैटेवैरोसाइड बी, फिलियास्पैरोसाइड सी और आइसोफ्लेवोंस। सतावर का इस्तेमाल दर्द कम करने, महिलाओं में स्तन्य (दूध) की मात्रा बढ़ाने, मूत्र विसर्जनं के समय होने वाली जलन को कम करने और [[कामोत्तेजक]] के रूप में किया जाता है। इसकी जड़ तंत्रिका प्रणाली और पाचन तंत्र की बीमारियों के इलाज, ट्यूमर, गले के संक्रमण, ब्रोंकाइटिस और कमजोरी में फायदेमंद होती है। यह पौधा कम भूख लगने व अनिद्रा की बीमारी में भी फायदेमंद है। अतिसक्रिय बच्चों और ऐसे लोगों को जिनका वजन कम है, उन्हें भी ऐस्पैरेगस से फायदा होता है। इसे महिलाओं के लिए एक बढ़िया [[औषधि|टॉनिक]] माना जाता है। इसका इस्तेमाल कामोत्तेजना की कमी और पुरुषों व महिलाओं में बांझपन को दूर करने और [[रजोनिवृत्ति]] के लक्षणों के इलाज में भी होता है।
इसका उपयोग [[सिद्धा]] तथा [[होम्योपैथी|होम्योपैथिक]] दवाइयों में होता है। यह आकलन किया गया है कि भारत में विभिन्न औषधियों को बनाने के लिए प्रति वर्ष 500 टन सतावर की जड़ों की जरूरत पड़ती है। यह यूरोप एवं पश्चिमी एशिया का देशज है। इसकी खेती २००० वर्ष से भी पहले से की जाती रही है। [[भारत]] के ठण्डे प्रदेशों में इसकी खेती की जाती है। इसकी कंदिल जडें मधुर तथा रसयुक्त होती हैं। यह पादप बहुवर्षी होता है। इसकी जो शाखाएँ निकलतीं हैं वे बाद में पत्तियों का रूप धारण कर लेतीं हैं, इन्हें क्लैडोड (cladodes) कहते हैं।
== औषधीय उपयोग ==
इसका उपयोग [[स्त्री-रोग विज्ञान|स्त्री रोगों]] जैसे [[प्रसव]] के उपरान्त दूध का न आना, [[अनुर्वरता|बांझपन]], [[गर्भपात]] आदि में किया जाता है। यह जोडों के दर्द एवं [[अपस्मार|मिर्गी]] में भी लाभप्रद होता है। इसका उपयोग प्रतिरोधात्मक शक्ति बढाने के लिए भी किया जाता है। शतावर जंगल में स्वतः उत्पन्न होती है। चूंकि इसका औषधीय महत्व भी है अतः अब इसका व्यावसायिक उत्पादन भी है। इसकी लतादार झाडी की पत्तियां पतली और सुई के समान होती है। इसका फल [[मटर]] के दाने की तरह गोल तथा पकने पर लाल होता है।
== उपज ==
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