"सूर्य नारायण व्यास": अवतरणों में अंतर

छो बॉट: साँचा बदल रहा है: Infobox person
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 7:
| other names =
| birth_date = {{Birth date|1902|3|2|mf=y}}
| birth_place = [[उज्जैन|उज्जयिनी]],[[मध्य प्रदेश|मध्यप्रदेश]], भारत
| death_date =
| death_place = बंगलौर, [[कर्नाटक]], भारत
पंक्ति 13:
| nationality = भारतीय
| occupation =
| Honor = [[पद्म भूषण|पद्मभूषण]]
}}
 
पंक्ति 20:
वे बहुआयामी प्रतिभा के धनी थे - वे इतिहासकार, पुरातत्त्ववेत्ता, क्रान्तिकारी, "विक्रम" पत्र के सम्पादक, संस्मरण लेखक, निबन्धकार, व्यंग्यकार, कवि; [[विक्रम विश्वविद्यालय]], विक्रम कीर्ति मन्दिर, सिन्धिया शोध प्रतिष्ठान और [[कालिदास परिषद]] के संस्थापक, अखिल भारतीय [[कालिदास समारोह]] के जनक तथा ज्योतिष एवं खगोल के अपने युग के सर्वोच्च विद्वान थे।
 
वे महर्षि [[सान्दीपनी]] की परम्परा के वाहक थे। [[खगोलशास्त्रखगोल शास्त्र|खगोल]] और [[ज्योतिष]] के अपने समय के इस असाधारण व्यक्तित्व का सम्मान [[बाल गंगाधर तिलक|लोकमान्य तिलक]] एवं पं॰ [[मदनमोहन मालवीय]] भी करते थे। पं॰ नारायणजी के देश और विदेश में लगभग सात हजार से अधिक शिष्य फैले हुए थे जिन्हें वे वस्त्र, भोजन और आवास देकर निःशुल्क विद्या अध्ययन करवाते थे। अनेक इतिहासकारों ने यह भी खोज निकाला है कि पं॰ व्यास के उस [[गुरुकुल]] में स्वतन्त्रता संग्राम के अनेक क्रान्तिकारी वेश बदलकर रहते थे।
 
== जीवनी ==
पण्डित सूर्यनारायण व्यास का जन्म [[उज्जैन|उज्जयिनी]] के सिंहपुरी मोहल्ले में २ मार्च १९०२ को पण्डित नारायणजी व्यास के घर में हुआ था।
 
===साहित्य सेवा===
पण्डित व्यास [[हिन्दी]] के अतिरिक्त [[गुजराती भाषा|गुजराती]], [[मराठी भाषा|मराठी]], [[बाङ्ला भाषा|बंगला]], [[संस्कृत भाषा|संस्कृत]] के भी मर्मज्ञ थे। वे एक श्रेष्ट व्यंग्यकार, कवि, निबन्धकार, इतिहासकार थे। अकेले विक्रम मासिक में ‘व्यास उवाच’ एवं ‘बिन्दु-बिन्दु’ विचार शीर्षक से लिखे उनके संपादकीय की संख्या 2500 से ऊपर है।
 
१९३७ में वे सारा योरोप घूमे और यात्रा साहित्य पर उनकी कृति ‘सागर प्रवास’ मील का पत्थर मानी जाती है।
पंक्ति 39:
 
===क्रांतिकारी जीवन===
तिलक की जीवनी का अनुवाद करते-करते वे क्रान्तिकारी बने। [[विनायक दामोदर सावरकर|वीर सावरकर]] का साहित्य पढ़ा। उनकी कृति '''अण्डमान की गूँज''' (Echo from Andaman) ने उन्हें बहुत प्रभावित किया। प्रणवीर पुस्तकमाला की अनेक जब्तशुदा पुस्तकें वे नौजवानों में गुप्त रूप से वितरित किया करते थे। वर्ष 1920-21 के काल से तो उनकी अनेक क्रान्तिकारी रचनाएँ प्राप्त होती हैं जो मालव मयूर, वाणी, सुधा, आज, (बनारस) [[सरस्वती]], [[चाँद (पत्रिका)|चाँद]], माधुरी, [[अभ्युदय]] और [[स्वराज्यस्वराज]]्य तथा [[कर्मवीर]] में बिखरी पड़ी हैं। वे अनेक ‘छद्म’ नामों से लिखते थे, जैसे- खग, एक मध्य भारतीय, मालव-सुत, डॉ॰ चक्रधर शरण, डॉ॰ एकान्त बिहारी, व्यासाचार्य, सूर्य-चन्द्र, 'एक मध्य भारतीय आत्मा' जैसे अनेक नामों से वे बराबर लिखते रहते थे। 1930 में [[अजमेर सत्याग्रह]] में पिकेटिंग करने पहुँचे, मालवा के जत्थों का नेतृत्व भी किया, [[सुभाषा चन्द्र बोस|सुभाष बाबू]] के आह्वान पर अजमेर में लॉर्ड मेयो की प्रतिमा तोड़ा और बाद के काल में वर्ष १९४२ में ‘भारती-भवन’ से गुप्त रेडियो स्टेशन का संचालन भी किया जिसके कारण वर्ष १९४६ में उन्हें [[इण्डियन डिफ़ेन्स ऐक्ट]] के तहत जेल-यातना का पुरस्कार भी मिला। भारत के स्वतन्त्र होने के बाद पेंशन और पुरस्कार की सूची बनी तो उसमें उन्होंने तनिक भी रुचि नहीं ली।
 
वर्ष २००२ में भारत सरकार ने उनके सम्मान में एक [[डाक टिकट]] जारी किया।
 
==सम्मान एवं पुरस्कार==
भारत के प्रथम राष्ट्रपति द्वारा उन्हें [[पद्म भूषण|पद्मभूषण]] (1958) से अलंकृत किया गया जिसे उन्होंने अंग्रेजी को अनंत काल तक जारी रखने वाले विधेयक के विरोध में (१९६७) लौटा भी दिया । [[अखिल भारतीय हिंदी साहित्य सम्मेलन|हिन्दी साहित्य सम्मेलन]] द्वारा साहित्य-वाचस्पति, [[विक्रम विश्वविद्यालय]] द्वारा डी-लिट, [[मध्य प्रदेश सरकार|मध्य प्रदेश शासन]] द्वारा राजकीय फरमान जैसे सम्मानों से अलंकृत पं. व्यास स्वतंत्रता पूर्व ११४ रियासतों के राज ज्योतिष भी रहे । ज्योतिष जगत के वे सर्वोच्च न्यायालय एवं सूर्य कहलाते हैं।
 
==कृतियाँ==