"सुरेंद्रनाथ बैनर्जी": अवतरणों में अंतर
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| caption = सुरेन्द्रनाथ बनर्जी
| birth_date = {{Birth date|1848|11|10|df=yes}}
| birth_place = [[कोलकाता]], [[बंगाल प्रेसीडेंसी|बंगाल प्रेसिडेन्सी]]
| death_date = {{Death date and age|1925|8|6|1848|11|10|df=yes}}
| death_place = [[बरकपुर]], [[बंगाल प्रेसीडेंसी|बंगाल प्रेसिडेन्सी]]
| nationality = भारतीय
| other_names = Surrender Nat Banerjee , Indian Gladstone, Indian Edmund Burke, surendranath Banerjea
| occupation = शिक्षाविद, राजनेता
| alma_mater = [[कलकत्ता विश्वविद्यालय|कोलकाता विश्वविद्यालय]]
| party = [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]]
| years_active =
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== प्रारंभिक जीवन ==
सुरेन्द्रनाथ बैनर्जी का जन्म 10 નવેમ્બર 1848 [[बंगाल]] प्रांत के [[कोलकाता]] में, एक बंगाली ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह अपने पिता डॉ॰ दुर्गा चरण बैनर्जी की गहरी उदार, प्रगतिशील सोच से बहुत प्रभावित थे। बैनर्जी ने पैरेन्टल ऐकेडेमिक इंस्टीट्यूशन और [[
== राजनीतिक जीवन ==
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1879 में, उन्होंने ''द बंगाली'' समाचार पत्र आरम्भ किया। 1883 में जब बैनर्जी अपने समाचार पत्र में अदालत की अवमानना पर टिप्पणी प्रकाशित करने के कारण गिरफ्तार हुए, भारतीय शहरों [[आगरा]], [[फ़ैज़ाबाद|फैजाबाद]], [[अमृतसर]], [[लाहौर]] और [[पुणे]] के साथ-साथ पूरे बंगाल में हड़ताल और विरोध होने लगे। आई एन ए का काफी विस्तार हुआ और पूरे भारत से सैकड़ों प्रतिनिधि कलकत्ता में वार्षिक सम्मेलन में भाग लेने आए। 1885 में मुंबई में [[भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस]] की स्थापना के बाद, बैनर्जी ने आम उद्देश्यों और सदस्यता के कारण अपने संगठन का विलय कर दिया। उन्हें 1895 में पुणे में और 1902 में अहमदाबाद में कांग्रेस अध्यक्ष चुना गया।
1905 में [[
== बाद का जीवन ==
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ब्रिटिश ने उनका बहुत सम्मान किया और बाद के वर्षों के दौरान उन्हें "सरेन्डर नॉट" बैनर्जी कहा।
लेकिन भारत में राष्ट्रवादी राजनीति का मतलब था विरोध करना और तेजी से दूसरे लोग भी इस विरोध में शामिल हुए, जिनका विरोध अधिक जोरदार था उनपर सबका ध्यान केन्द्रित हुआ। बैनर्जी ने न तो चरमपंथियों की राजनीतिक कार्रवाई को स्वीकारा और न ही गांधी के [[असहयोग आन्दोलन|असहयोग आंदोलन]] का साथ दिया, वह एक अलग राष्ट्रवादी आंदोलन के प्रमुख कारक के रूप में उभरे। बैनर्जी ने 1919 के मोंतागु-चेम्सफोर्ड सुधारों को देखा वस्तुत: जिसे पूरी करने की मांग कांग्रेस के द्वारा की गई थी, इस परिस्थिति ने उन्हें सब से अलग कर दिया। वह 1921 में बंगाल के सुधार के लिए विधान परिषद के लिए चुने गए थे, उसी वर्ष उन्हें नाइट की उपाधि दी गई और उन्होंने स्थानीय स्वशासन के लिए 1921 से 1924 तक मंत्री के रूप में कार्य किया। वह 1923 में चुनाव में हार गए। 6 अगस्त 1925 को बैरकपुर में उनका निधन हो गया।
== इन्हें भी देखें ==
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