"मेरी जंग": अवतरणों में अंतर

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| writer = [[जावेद अख्तर]]
| narrator =
| starring = [[अनिल कपूर]]<br />[[मीनाक्षी शेषाद्रि]]<br />[[नूतन]]<br />[[जावेद जाफ़री]]<br />[[अमरीश पुरी]]<br />[[परीक्षित साहनी|परीक्षत साहनी]]
| music = [[लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल]]
| cinematography =
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| followed_by =
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'''मेरी जंग''' 1985 में बनी [[हिन्दी|हिन्दी भाषा]] की फ़िल्म है। इस फ़िल्म का निर्देशन सुभाष घई ने किया है। एन एन सिप्पी इस फ़िल्म के निर्माता हैं। यह 11 अगस्त 1985 में सिनेमाघरों में प्रदर्शित हुई थी। इसमें [[अनिल कपूर]] मुख्य भूमिका में हैं। अन्य कलाकारों में [[मीनाक्षी शेषाद्रि]], [[नूतन]], [[अमरीश पुरी]], [[जावेद जाफ़री]] (अपनी पहली फिल्म में), [[ए के हंगल|ए.के. हंगल]], [[इफ़्तेख़ार|इफ़्तिखार]], [[खुशबू सुंदर|खुशबू]] और [[परीक्षित साहनी|परीक्षत साहनी]] है।
 
== संक्षेप ==
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अरुण के पिता को एक झूठे मृत्यु के प्रकरण में फंसा लिया जाता है। उसे वकील जीडी ठकराल ([[अमरीश पुरी]]) गुनहगार साबित कर देता है। उसे न्यायालय फांसी की सजा दे देता है। जब उसके पति को फांसी हो जाती है तो उसकी पत्नी दिमागी रूप से सदमे में आ जाती है। बाद में अरुण को पता चलता है की ठकराल ने कानून तोड़ कर यह प्रकरण जीता था और उसके पिता को सजा दिलाई थी। अरुण के घर और सामान को बेच दिया गया। इसके बाद वह कहीं जाकर एक सफल वकील बनने की कोशिश करने लगा। वह ठकराल के सभी प्रकरण को अच्छी तरह से अध्ययन करता था। ताकि भविष्य में उसे हरा सके।
 
एक दिन गीता श्रीवास्तव ([[मीनाक्षी शेषाद्रि|मीनाक्षी शेषाद्री]]) उसके पास अपनी बहन के प्रकरण को लाती है। डॉ आशा माथुर ([[बीना बैनर्जी|बीना]]) जिस पर एक मरीज को दवाई के द्वारा मारने का आरोप लगा होता है। पहले अरुण मना कर देता है। लेकिन जब गीता उसे वही बात कहती है जो उसके माँ ने कही थी। तो वह मान जाता है। वह आशा माथुर से मिलने पुलिस थाना जाता है। वह बताती है कि एक दिन उसके पास अस्पताल से कॉल आया था। आईसीयू में एक मरीज है। इसके बाद लेकिन उसके आते समय किसी ने दवाई कि बोतल की जगह विष रख दिया था। जिसके कारण मरीज कि मौत हो गई। आशा माथुर के पति दिनेश माथुर ([[परीक्षित साहनी|परीक्षत साहनी]]) इस प्रकरण के लिए ठकराल से मिलते हैं। लेकिन वह मना कर देता है। अरुण दिनेश माथुर से मिलता है और कहता है कि वह इस प्रकरण को लड़ेगा। वह उससे विष के प्रभाव और समय के बारे में पूछता है। उसे पता लगता है कि इससे 2 से 15 मिनट में ही मौत हो सकती है। यह शरीर के प्रतिरोधक क्षमता पर निर्भर करता है।
 
प्रकरण शुरू होता है। इसके बाद विपक्ष का वकील बताता है कि इस मरीज की मौत जहर के कारण ही हुई है। उसके बाद अरुण कहता है कि इसमें जहर नहीं है। इसे सत्यापित करने हेतु वह स्वयं ही जहर पी लेता है। न्यायालय गीता कि बहन को बेकसूर कहता है। माथुर उसे अस्पताल ले जाता है। तब यह पता चलता है कि वह जहर था और कुछ ही समय से उसकी जान बची है। डॉ माथुर उसे अपने घर में उसके काम के लिए एक खाली चेक देता है। लेकिन अरुण उसे नहीं लेता। अरुण को वहाँ एक पियानो मिलता है जो उसके बचपन के समय का होता है। वह उसके बदले में उस पियानो को मांगता है। वह उसे पियानो दे देता है और उससे उसकी कहानी बताने के लिए कहता है। वह कहता है कि पिता के मृत्यु के पश्चात उसने कभी अपनी माँ को नहीं देखा।
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| आरती, अरुण और कोमल की मां
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| [[मीनाक्षी शेषाद्रि|मीनाक्षी शेषाद्री]]
| गीता माथुर
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| डॉ. आशा माथुर
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| [[परीक्षित साहनी|परीक्षत साहनी]]
| डॉ. दिनेश माथुर
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