"औरंगज़ेब": अवतरणों में अंतर

टैग: मोबाइल संपादन मोबाइल वेब संपादन
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 6:
| reign = 31 July 1658 – 3 March 1707
| coronation = 13 June 1659 at [[ शालीमार बाग , दिल्ली ]]
| predecessor = [[शाह जहाँ|शाहजहाँ]]
| successor = [[Muhammad Azam Shah]] (titular)<br />[[बहादुर शाह प्रथम| बहादुर शाह I]]
| birth_name = Muḥī al-Dīn Muḥammad<ref name="eb" />
| birth_date = {{Birth date|1618|11|3|df=y}} {{smaller|([[Adoption of the Gregorian calendar|N.S.]])}}
| birth_place = [[Dahod]], [[मुग़ल साम्राज्य|Mughal Empire]]
| death_date = 3 March 1707 {{smaller|([[Adoption of the Gregorian calendar|N.S.]])}} (aged 88)
| death_place = [[अहमदनगर]], [[मुग़ल साम्राज्य|Mughal Empire]]
| issue = {{ubl
| [[ज़ेब-उन-निसा]]
| [[Muhammad Sultan (Mughal prince)|Muhammad Sultan]]
| [[Zinat-un-Nissa]]
| [[बहादुर शाह प्रथम| बहादुर शाह I]]
| [[Badr-un-Nissa]]
| [[Zubdat-un-Nissa]]
पंक्ति 28:
| regnal name = Alamgir
| house = [[तैमूरी राजवंश|तैमूरी]]
| father = [[शाह जहाँ|शाहजहाँ]]
| mother = [[मुमताज़ महल]]
| religion = [[सुन्नी इस्लाम]]
पंक्ति 38:
| burial_place = [[Tomb of Aurangzeb]], [[Khuldabad]]
}}
'''अबुल मुज़फ़्फ़र मुहिउद्दीन मुहम्मद औरंगज़ेब आलमगीर''' (3 नवम्बर १६१८ – ३ मार्च १७०७) जिसे आमतौर पर '''औरंगज़ेब''' या '''आलमगीर''' (प्रजा द्वारा दिया हुआ शाही नाम जिसका अर्थ होता है विश्व विजेता) के नाम से जाना जाता था [[भारत]] पर राज्य करने वाला छठा [[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल]] शासक था। उसका शासन १६५८ से लेकर १७०७ में उसकी मृत्यु होने तक चला। औरंगज़ेब ने [[भारतीय उपमहाद्वीप]] पर आधी सदी से भी ज्यादा समय तक राज्य किया। वो [[अकबर]] के बाद सबसे ज्यादा समय तक शासन करने वाला मुग़ल शासक था। अपने जीवनकाल में उसने [[दक्षिण भारत|दक्षिणी भारत]] में [[मुग़ल साम्राज्य]] का विस्तार करने का भरसक प्रयास किया पर उसकी मृत्यु के पश्चात [[मुग़ल साम्राज्य]] सिकुड़ने लगा।
 
औरंगज़ेब के शासन में [[मुग़ल साम्राज्य]] अपने विस्तार के चरमोत्कर्ष पर पहुंचा। वो अपने समय का शायद सबसे धनी और शातिशाली व्यक्ति था जिसने अपने जीवनकाल में [[दक्षिण भारत]] में प्राप्त विजयों के जरिये [[मुग़ल साम्राज्य]] को साढ़े बारह लाख वर्ग मील में फैलाया और १५ करोड़ लोगों पर शासन किया जो की दुनिया की आबादी का १/४ था।
पंक्ति 45:
 
== शुरूआती जीवन ==
औरंगज़ेब का जन्म 3 नवम्बर १६१८ को दाहोद, [[गुजरात]] में हुआ था।<ref>{{cite web|url=http://www.dnaindia.com/ahmedabad/report-aurangzeb-loved-dahod-till-the-end-1682952|title=Aurangzeb loved Dahod till the end}}</ref> वो [[शाह जहाँ|शाहजहाँ]] और [[मुमताज़ महल]] की छठी संतान और तीसरा बेटा था। उसके पिता उस समय [[गुजरात]] के सूबेदार थे। जून १६२६ में जब उसके पिता द्वारा किया गया विद्रोह असफल हो गया तो औरंगज़ेब और उसके भाई [[दारा शिकोह|दारा शूकोह]] को उनके दादा [[जहाँगीर]] के लाहौर वाले दरबार में नूर जहाँ द्वारा बंधक बना कर रखा गया। २६ फ़रवरी १६२८ को जब [[शाह जहाँ|शाहजहाँ]] को [[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल सम्राट]] घोषित किया गया तब औरंगज़ेब [[आगरा]] किले में अपने माता पिता के साथ रहने के लिए वापस लौटा। यहीं पर औरंगज़ेब ने [[अरबी]] और [[फ़ारसी भाषा|फ़ारसी]] की औपचारिक [[शिक्षा]] प्राप्त की।
 
== सत्तासन ==
 
[[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल]] प्रथाओं के अनुसार, [[शाह जहाँ|शाहजहाँ]] ने 1634 में शहज़ादा औरंगज़ेब को [[दक्कन का पठार|दक्कन]] का सूबेदार नियुक्त किया। औरंगज़ेब किरकी ([[महाराष्ट्र]]) को गया जिसका नाम बदलकर उसने [[औरंगाबाद]] कर दिया। 1637 में उसने रबिया दुर्रानी से शादी की। इधर [[शाह जहाँ|शाहजहाँ]] [[मुग़ल साम्राज्य|मुग़ल]] दरबार का कामकाज अपने बेटे [[दारा शिकोह]] को सौंपने लगा। 1644 में औरंगज़ेब की बहन एक दुर्घटना में जलकर मर गई। औरंगज़ेब इस घटना के तीन हफ्ते बाद [[आगरा]] आया जिससे उसके पिता [[शाह जहाँ|शाहजहाँ]] को उसपर बेहद क्रोध आया। उसने औरंगज़ेब को दक्कन के सूबेदार के ओहदे से बर्ख़ास्त कर दिया। औरंगज़ेब 7 महीनों तक दरबार नहीं आ सका। बाद में [[शाह जहाँ|शाहजहाँ]] ने उसे [[गुजरात]] का सूबेदार बनाया। औरंगज़ेब ने सुचारू रूप से शासन किया और उसे इसका सिला भी मिला, उसे [[बदख़्शान]] (उत्तरी [[अफ़ग़ानिस्तान|अफ़गानिस्तान]]) और [[बाल्ख़]] (अफ़गान-उज़्बेक) क्षेत्र का सूबेदार बना दिया गया।
 
इसके बाद उसे [[मुल्तान]] और [[सिंध]] का भी गवर्नर बनाया गया। इस दौरान वो [[फ़ारस]] के [[सफ़वी वंश|सफ़वियों]] से [[कांधार|कंधार]] पर नियंत्रण के लिए लड़ता रहा पर उसे हार के अलावा और कुछ मिला तो वो था- अपने पिता की उपेक्षा। 1652 में उसे दक्कन का सूबेदार फ़िर से बनाया गया। उसने [[गोलकोण्डा|गोलकोंडा]] और [[बीजापुर]] के खिलाफ़ लड़ाइयाँ की और निर्णायक क्षण पर शाहजहाँ ने सेना वापस बुला ली। इससे औरंगज़ेब को बहुत ठेस पहुँची क्योंकि शाहजहाँ ऐसा उसके भाई दारा शिकोह के कहने पर कर रहा था।
 
=== सत्ता संघर्ष ===
शाहजहाँ १६५२ में ऐसे बीमार हुए कि लोगों को उनका अन्त निकट लग रहा था। ऐसे में [[दारा शिकोह]], [[शाह शुजा]] और औरंगज़ेब के बीच में सत्ता संघर्ष शुरू हुआ। शाह शुजा जिसने स्वयं को [[बंगाल]] का राज्यपाल घोषित कर दिया था, अपने बचाव के लिए [[म्यान्मार|बर्मा]] के [[अरकन]] क्षेत्र में शरण लेने पर विवश हुआ। १६५९ में औरंगज़ेब ने शाहजहाँ को ताज महल में बन्दी बना लिया और स्वयं को शासक घोषित किया। दारा शिकोह को गद्दारी के आरोप में फाँसी दी गई। शासक होकर भी औरंगज़ेब ने राजकोष से अपने पर कुछ खर्च नहीं किया।
 
== शासनकाल ==
मुग़ल, ख़ासकर [[अकबर]] के बाद से, ग़ैर-मुस्लिमों पर उदार रहे थे लेकिन औरंगज़ेब उनके ठीक उलट था। औरंगज़ेब ने [[जज़िया]] कर फिर से आरंभ करवाया, जिसे [[अकबर]] ने ख़त्म कर दिया था। उसने [[कश्मीरीकाश्मीरी ब्राह्मणपण्डित|कश्मीरी ब्राह्मणों]] को [[इस्लाम]] क़बूल करने पर मजबूर किया। कश्मीरी ब्राह्मणों ने सिक्खों के नौवें [[गुरु तेग़ बहादुर]] से मदद मांगी। [[गुरु तेग़ बहादुर|तेग़बहादुर]] ने इसका विरोध किया तो औरंगज़ेब ने उन्हें फांसी पर लटका दिया। इस दिन को सिक्ख आज भी अपने त्यौहारों में याद करते हैं।
 
=== साम्राज्य विस्तार ===
औरंगज़ेब के शासन काल में युद्ध-विद्रोह-दमन-चढ़ाई इत्यादि का तांता लगा रहा। पश्चिम में [[सिक्खों]] की संख्या और शक्ति में बढ़ोत्तरी हो रही थी। दक्षिण में [[बीजापुर]] और [[गोलकोण्डा|गोलकुंडा]] को अंततः उसने हरा दिया पर इस बीच छत्रपति [[शिवाजी]] की [[मराठा]] सेना ने उनको नाक में दम कर दिया। छत्रपति शिवाजी को औरंगज़ेब ने गिरफ़्तार कर तो लिया पर शिवाजी और [[सम्भाजी]] के भाग निकलने पर उसके लिए बेहद फ़िक्र का सबब बन गया। आखिर शिवाजी महाराजा ने औरंगजेब को हराया और भारत में मराठो ने पूरे देश में अपनी ताकत बढाई शिवाजी की मृत्यु के बाद भी मराठों ने औरंग़जेब को परेशान किया।
इस बीच हिन्दुओं को [[इस्लाम]] में परिवर्तित करने की नीति के कारण [[राजपूत]] उसके ख़िलाफ़ हो गए थे और उसके 1707 में मरने के तुरंत बाद उन्होंने विद्रोह कर दिया।
 
पंक्ति 70:
== व्यक्तित्व ==
 
औरंगज़ेब पवित्र जीवन व्यतीत करता था। अपने व्यक्तिगत जीवन में वह एक आदर्श व्यक्ति था। वह उन सब दुर्गुणों से सर्वत्र मुक्त था, जो [[एशिया]] के राजाओं में सामन्यतः थे। वह यति-जीवन जीता था। खाने-पीने, वेश-भूषा और जीवन की अन्य सभी-सुविधाओं में वह संयम बरतता था। प्रशासन के भारी काम में व्यस्त रहते हुए भी वह अपनी जरूरतों को पूरा करने के लिए [[क़ुरआन|क़ुरान]] की नकल करके और टोपियाँ सीकर कुछ पैसा कमाने का समय निकाल लेता था।
 
=== मातृभाषा अौर मूल ===
औरंगजेब ही नहीं सभी [[मध्यकालीन भारत]] के तमाम मुस्लिम बादशाहों के बारे में एक बात यह भी कही जाती है कि उनमें से कोई भारतीय नहीं था। वैसे एक स्तर पर यह बचकाना और बेमतलब का तर्क है क्योंकि 17वीं शताब्दी के भारत में (और दुनिया में कहीं भी) राष्ट्र जैसी अवधारणा का तो कहीं अस्तित्व ही नहीं था।<ref name="Satyagraha"/>
 
हालांकि इसके बाद भी यह बात कम से कम औरंगजेब के मामले में लागू नहीं होती। यह मुगल बादशाह पक्का उच्चवर्गीय हिंदुस्तानी था। इसका सीधा तर्क यही है कि उसका जन्म गुजरात के दाहोद में हुआ था और उसका पालन पोषण उच्चवर्गीय हिंदुस्तानी परिवारों के बच्चों की तरह ही हुआ। पूरे मुगलकाल में [[बृज|ब्रज]] भाषा और उसके साहित्य को हमेशा संरक्षण मिला था और यह परंपरा औरंगजेब के शासन में भी जारी रही। कोलंबिया यूनिवर्सिटी से जुड़ी इतिहासकार एलिसन बुश बताती हैं कि औरंगजेब के दरबार में ब्रज को प्रोत्साहन देने वाला माहौल था। बादशाह के बेटे आजम शाह की ब्रज कविता में खासी दिलचस्पी थी। ब्रज साहित्य के कुछ बड़े नामों जैसे [[देव (कवि)|महाकवि देव]] को उसने संरक्षण दिया था। इसी भाषा के एक और बड़े कवि वृंद तो औरंगजेब के प्रशासन में भी नियुक्त थे।
 
मुगलकाल में दरबार की आधिकारिक लेखन भाषा फारसी थी लेकिन औरंगजेब का शासन आने से पहले ही बादशाह से लेकर दरबारियों तक के बीच प्रचलित भाषा हिंदी-उर्दू हो चुकी थी। इसे औरंगजेब के उस पत्र से भी समझा जा सकता है जो उसने अपने 47 वर्षीय बेटे आजम शाह को लिखा था। बादशाह ने अपने बेटे को एक किला भेंट किया था और इस मौके पर नगाड़े बजवाने का आदेश दिया। आजम शाह को लिखे पत्र में औरंगजेब ने लिखा है कि जब वह बच्चा था तो उसे नगाड़ों की आवाज खूब पसंद थी और वह अक्सर कहता था, ‘बाबाजी ढन-ढन!’ इस उदाहरण से यह बात कही जा सकती है कि औरंगजेब का बेटा तत्कालीन प्रचलित हिंदी में ही अपने पिता से बातचीत करता था।<ref name="Satyagraha"/>
पंक्ति 82:
 
[[चित्र:Aurangzeb reading the Quran.jpg|thumb|right|औरंग़ज़ेब]]
सम्राट औरंगज़ेब ने [[इस्लाम|इस्लाम धर्म]] के महत्व को स्वीकारते हुए ‘[[क़ुरानक़ुरआन|क़ुरान’]] को अपने शासन का आधार बनाया। उसने सिक्कों पर कलमा खुदवाना, नौरोज का त्यौहार मनाना, भांग की खेती करना, गाना-बजाना आदि पर रोक लगा दी। 1663 ई. में [[सती प्रथा]] पर प्रतिबन्ध लगाया। [[तीर्थ]] कर पुनः लगाया। अपने शासन काल के 11 वर्ष में ‘झरोखा दर्शन’, 12वें वर्ष में ‘तुलादान प्रथा’ पर प्रतिबन्ध लगा दिया, 1668 ई. में हिन्दू त्यौहारों पर प्रतिबन्ध लगा दिया। 1699 ई. में उसने हिन्दू मंदिरों को तोड़ने का आदेश दिया। बड़े-बड़े नगरों में औरंगज़ेब द्वारा ‘मुहतसिब’ (सार्वजनिक सदाचारा निरीक्षक) को नियुक्त किया गया। 1669 ई. में औरंगज़ेब ने [[वाराणसी|बनारस]] के ‘[[काशी विश्वनाथ मन्दिर|विश्वनाथ मंदिरमंदिर’]] एवं [[मथुरा]] के ‘केशव राय मदिंर’ को तुड़वा दिया। उसने शरीयत के विरुद्ध लिए जाने वाले लगभग 80 करों को समाप्त करवा दिया। इन्हीं में ‘आबवाब’ नाम से जाना जाने वाला ‘रायदारी’ (परिवहन कर) और ‘पानडारी’ (चुंगी कर) नामक स्थानीय कर भी शामिल थे। औरंगज़ेब ‘दारुल हर्ब’ (क़ाफिरों का देश भारत) को ‘दारुल इस्लाम’ (इस्लाम का देश) में परिवर्तित करने को अपना महत्त्वपूर्ण लक्ष्य मानता था।
 
औरंगज़ेब के समय में [[बृज|ब्रज]] में आने वाले तीर्थ−यात्रियों पर भारी कर लगाया गया जज़िया कर फिर से लगाया गया और हिन्दुओं को [[मुसलमान]] बनाया गया। उस समय के कवियों की रचनाओं में औरंगज़ेब के अत्याचारों का उल्लेख है।
 
=== [[जज़िया|जजिया कर]] ===
पंक्ति 97:
इस मामले में कुख्यात कहा जाने वाला औरंगजेब भी सल्तनत के इसी नियम पर चला। उसके शासनकाल में मंदिर ढहाने के उदाहरण बहुत ही दुर्लभ हैं (ईटन इनकी संख्या 15 बताते हैं) और जो हैं उनकी जड़ में राजनीतिक कारण ही रहे हैं। उदाहरण के लिए औरंगजेब ने [[दक्षिण भारत]] में कभी-भी मंदिरों को निशाना नहीं बनाया जबकि उसके शासनकाल में ज्यादातर सेना यहीं तैनात थी। उत्तर भारत में उसने जरूर कुछ मंदिरों पर हमले किए जैसे [[मथुरा]] का केशव राय मंदिर लेकिन इसका कारण धार्मिक नहीं था। मथुरा के जाटों ने सल्तनत के खिलाफ विद्रोह किया था इसलिए यह हमला किया गया।
 
ठीक इसके उलट कारणों से औरंगजेब ने मंदिरों को संरक्षण भी दिया। यह उसकी उन हिंदुओं को भेंट थी जो बादशाह के वफादार थे। किंग्स कॉलेज, लंदन की इतिहासकार कैथरीन बटलर तो यहां तक कहती हैं कि औरंगजेब ने जितने मंदिर तोड़े, उससे ज्यादा बनवाए थे। कैथरीन फ्रैंक, एम अथर अली और जलालुद्दीन जैसे विद्वान इस तरफ भी इशारा करते हैं कि औरंगजेब ने कई हिंदू मंदिरों को अनुदान दिया था जिनमें [[वाराणसी|बनारस]] का [[जंगम बाड़ी मठ]], [[चित्रकूट धाम|चित्रकूट]] का बालाजी मंदिर, [[इलाहाबाद]] का [[सोमेश्वर नाथ महादेव मंदिर]] और [[गुवाहाटी]] का [[उमानंद मंदिर]] सबसे जाने-पहचाने नाम हैं।<ref name="Satyagraha"/>
 
जिस कालखंड यानी मुगलकाल में मंदिरों को तोड़े जाने की बात इतनी ज्यादा प्रचलन में है, उसमें हिंदुओं द्वारा कहीं इस बात का विशेष जिक्र नहीं मिलता। तर्क दिया जा सकता है कि उस दौर में ऐसा करना खतरे से खाली नहीं रहा होगा, लेकिन 18वीं शताब्दी में जब सल्तनत खत्म हो गई तब भी इस बात का कहीं जिक्र नहीं मिलता। अतीत में मुगल शासकों द्वारा हिंदू मंदिर तोड़े जाने का मुद्दा भारत में 1980-90 के दशक में गर्म हुआ ।
पंक्ति 114:
* औरंगज़ेब ने 167 ई. में [[लाहौर]] की बादशाही मस्जिद बनवाई थी।
* औरंगज़ेब ने 1678 ई. में बीबी का मक़बरा अपनी पत्नी रबिया दुर्रानी की स्मृति में बनवाया था।
* औरंगज़ेब ने दिल्ली के [[लाल क़िला|लाल क़िले]] में मोती मस्जिद बनवाई थी।
 
== मुग़ल सम्राटों का कालक्रम ==
पंक्ति 143:
from:1556 till:1605 shift:(-35,-40) color:MUG text:"[[अकबर]] 1556–1605"
from:1605 till:1627 shift:(-30,35) color:MUG text:"[[जहांगीर]] 1605–1627"
from:1627 till:1658 shift:(-45,-40) color:MUG text:"[[शाह जहाँ|शाहजहाँ]] 1627–1658"
from:1658 till:1707 shift:(-40,35) textcolor:ACTIVE color:MUG text:"औरंगज़ेब 1658–1707"
from:1707 till:1712 shift:(-5,-40) color:MUG text:"[[बहादुर शाह प्रथम]] 1707–1712"