"प्रतिवादि भयंकर श्रीनिवास": अवतरणों में अंतर

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'''प्रतिवादि भयंकर श्रीनिवास''' (२२ सितंबर १९३० - १४ अप्रैल २०१३), [[भारत]] के एक अनुभवी नेपथ्यगायक थे। उनका जन्म [[आन्ध्र प्रदेश|आंध्र प्रदेश]] के [[पूर्वीपूर्व गोदावरी जिला|पूर्व गोदावरी ज़िले]] के [[काकीनाड़ा|काकीनाडा]] मे हुआ था। वे लगभग ३००० गाने [[कन्नड़ भाषा|कन्नड]], [[तेलुगू भाषा|तेलुगु]], [[तमिल]], [[हिन्दी]], [[मलयालम भाषा|मलयालम]] और [[तुलू भाषा|तुळु]] में गा चुके हैं। वे कन्नड, तेलुगु और तमिल चलचित्र व्यवसाय मे एक प्रसिद्ध प्रतिश्रवण गायक के रूप में प्रसिद्ध हैं। वे भारत के सारी मुख्य भाषाओं में गा चुके हैं पर अपने पेशे मे वे अधिकांश गीत कन्नड मे गाए हैं।
 
== जीवन-चरित ==
प्रथिवादी भयंकरम फणिंद्रस्वामी और शेषागिरियम्मा, प्रथिवादी भयंकरा श्रीनिवास के पिता और माता है। श्रीनिवस ने विश्वविद्यालय से बी. कॉम मे उपाधि की है। उनके पूर्वजों पसर्लापुडी गाँव से है। दे प्रथिवादी भयंकरम अन्नानगराचरम के वंशज थे जो १५-सदी के एक वैश्नवित सादू थे जिन्होंने वेंकतेश्वरा सुप्रभातम लिखे थे। श्रीनिवस के पिता फणिंद्रास्वामी सहयोग विभाग मे एक अधिकारी थे और उनकी माँ एक साक्षातकार मे बताया था कि वे उनके द्वारा ही भारतीय शास्त्रिय संगीत के बारे मे जान पाए। पडाई के दिनों मे उन्हें आकाशवाणी सुनने की आदत थी। मुहम्मद रफी जी उनके प्रिय व्यक्ति थे। संगीत के क्षेत्र मे उन्का पहला कदम १२ वर्ष मे था। उनके मामा, किदमबी कृष्णस्वामी नाटक कलाकार और गायक थे। कृष्णस्वामी को अपने भानजे की संगीत के क्षेत्र मे रही अभिरुची का पता था और इसी कारण उन्हें नाटक मे गाने का अवकाश भी दिया। पर उनके पिता कि आशा थी कि वे एक सरकारी अधिकारी बने। जब उनके पिताजी ने इस विषय के बारे मे एक ज्योतिषी से पूछा तो उन्होंने बताया की श्रीनिवास को संगीत के क्षेत्र मे कुछ भविष्य नहीं है। पर ज्योतिषी के बात पर यकीन न करते हुए अपने बेटे के विशवास पर यकीन किया। बी. कॉम मे सफल होने के बाद, श्रीनिवास "हिन्दी विशरद परीक्षा" मे दक्षिण भारत हिन्दी प्रचार सभा से उतीर्ण हुए।
 
बाद मे श्रीनीवास जेमिनी स्टूडियोज़ [[चेन्नई|चेन्नै]] गए। इमानी संकश शास्त्री, एक प्रसिध्द वीणा को बजाने वाले व्यक्ती थे जो एक निवासी संगीतकार थे। शास्त्री जी भी श्रीनिवास के परीवार के सदस्य थे। उन्होंने श्रीनिवास को एस व्स्न से परिचय कराया जो जेमिनी सटुडियोज़ के मालिक थे। उदर श्रीनीवास ने मुहाम्मद रफी जी का एक अदभूत गाना गाँ के दिखाया। वह गाना "हुए हम जिनके लिए बरबाद" जो नौशाद अली ने "दीदार" सिनेमा के लिए प्रक्रुतिस्य किया था। श्रीनीवास ने अपना प्रथम प्रधर्शन १९५२ मे जेमिनी के हिन्दी सिनेमा "मिस्ट्र्र्र्र संपत" के लिए किया। श्रीनिवास ने मीताद्त, शाम्ष्द बेगम और जिक्की के साथ ड्युयेट्स और ट्रिप्लेट्स गाया करते थे। वे वृन्दगान को रहनुमाई भी करते थे। उनका पहला गाना "अजी हम भारत कि नारी", गीता दत्त के सात था जो मशहूर हुआ।
 
"मिस्टर संपात" एक उपन्यास पर निरभर था जिसका लेखक आर. के। नारायण जी थे। वह उपन्यास का नाम भी "मिस्टर संपात" था। फिर, जीवा, जो "मिस्टर संपात" सिनेमा का नाद अंकित करने वाले थे, उनके मदद से श्रीनीवास दक्षिणी सीनेमा उद्योग मे प्रवेश किया। आर. नागेन्द्र रॉव, एक प्रसिध्द अभिनेता और निर्देशक थे जिन्होने एक ट्राईलिंग्वल सिनेमा दक्षिणी भारत के सारे भाषाओं मे बनाया गाया पर मलयालम मे नही बनाया गया। इस सिनेमा का नाम, तमिल मे "जातकम", तेलुगु मे "जातकफालम" और कन्नडा मे "जातकफला" रका गया था। इन सब भाषाओं में, श्रीनीवास ने दो-दो गाने गाएँ। कन्नडा मे, "भक्त कनकदासा" चलचित्र के द्वारा श्रीनीवास को सबसे ज़्यादा कामयाबी मिली जिसका नायक डॉ॰ राजकुमार थे। वह गाना "बागिलनु तेरेदु" इस चलचित्र का सबसे मशहूर गाना था। फिर उन्होंने डॉ॰ विश्नुवर्धना, श्रीनाथ, कल्याण कुमार, उदय कुमार औरों के लिए अन्य गीत गाएँ। उनका पहला एकल संगीत "प्रेम पासम" चित्र मे सफल हुए। उन्होने इसी चित्र मे पी. सुशीला के साथ एक डुएट गाया था। डॉ॰ राजकुमार के लिए उनका पहला गाना १९५६ मे ओहीलेश्वरा चित्र के लिए था।