"जॉर्ज लुकाच": अवतरणों में अंतर

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| मृत्युतारीख़ = 4 जून, 1971 ई०
| मृत्युस्थान = बुडापेस्ट,<br /> हंगरी
| कार्यक्षेत्र = [[साहित्य]], [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]]
| राष्ट्रीयता = हंगेरियन
| भाषा = [[रूसी]], जर्मन, हंगेरियन
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== जीवन-परिचय ==
जॉर्ज लुकाच का जन्म 13 अप्रैल, 1885 ई० में [[हंगरी]] के [[बुडापेस्ट]] में हुआ था। उनकी आरंभिक शिक्षा-दीक्षा एक दर्शनशास्त्री के रूप में हुई थी। छात्र-जीवन में ही उनका झुकाव [[वामपंथमार्क्सवाद|वामपंथी]] राजनीति की ओर हो गया था। सन् 1918 ई० में हंगरी की सोवियत क्रांति के बाद उन्हें जन-संस्कृति मंत्री के रूप में भी पदस्थापित किया गया था,<ref>इतिहास और वर्ग चेतना, ग्यार्ग लुकाच, अनुवाद और संपादन- नरेश 'नदीम', प्रकाशन संस्थान, नयी दिल्ली, संस्करण-2014, पृष्ठ-8.</ref> परंतु कुछ समय बाद प्रतिक्रांतिकारी ताकतों के द्वारा जब सत्ता पर कब्जा कर लिया गया तो अनेक अन्य लोगों की तरह लुकाच भी एक निर्वासित व्यक्ति की तरह [[मास्को|मॉस्को]] में जीवन व्यतीत करने लगे। विभिन्न मजबूरियों के बावजूद लुकाच ने अपना मॉस्को निवास निरर्थक नहीं जाने दिया, बल्कि उसे अपने वास्तविक जीवन-निर्माण का आधार बना लिया। मॉस्को-निवास के क्रम में ही उन्होंने [[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] और [[फ्रेडरिक एंगेल्स|एंगेल्स]] की अप्रकाशित पांडुलिपियों को समझने के साथ-साथ उसे सुव्यवस्थित रूप देने और प्रकाशन हेतु तैयार करने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।<ref>इतिहास और वर्ग चेतना, पूर्ववत्, पृ०-9.</ref> इस क्षेत्र में किये गये अत्यधिक परिश्रम के सुखद परिणाम स्वरूप उनकी कई पुस्तकें भी इसी अवधि में प्रकाशित होती गयीं। [[द्वितीय विश्वयुद्ध]] के बाद हंगरी जब एक बार फिर क्रांति के दौर से गुजरा तो लगभग तीन दशकों के निर्वासित जीवन के बाद लुकाच भी अपने देश वापस आये। इसके बाद से जीवनपर्यंत वे बुडापेस्ट में ही रहे। एक लेखक के रूप में निरंतर सक्रिय तथा गौरवास्पद जीवन व्यतीत करने के बाद 4 जून, 1971 ई० को उनका निधन हुआ।
 
== रचनात्मक परिचय ==
जॉर्ज लुकाच का लेखन बहुआयामी प्रतिभा का उत्तम निदर्शन उपस्थापित करता है। [[दर्शनशास्त्र|दर्शन]] और [[साहित्य]] दोनों पर उन्होंने समान अधिकार से कलम चलायी है। एक साहित्यकार के रूप में लुकाच ने [[मार्क्सवादीमार्क्सवाद]] विचारधारा को अपनाया भी है और उसे एक नवीन व्याख्या से संवलित कर पुष्ट भी किया है। "मार्क्सवादी साहित्य-चिन्तन के अंतर्गत लूकाच का महत्त्व यथार्थवाद के प्रामाणिक व्याख्याता के रूप में है।"<ref>मार्क्सवादी साहित्य-चिन्तन : इतिहास तथा सिद्धान्त, शिवकुमार मिश्र, वाणी प्रकाशन, नयी दिल्ली, संस्करण-2010, पृष्ठ-253.</ref> उनका आलोचनात्मक लेखन सैद्धांतिक एवं व्यवहारिक दोनों क्षेत्रों का सामंजस्य उपस्थापित करता है। 'soul and form', 'The meaning of contemporary realism', 'writer and critic' तथा 'Studies in European realism' जैसी पुस्तकों में उनका सैद्धांतिक लेखन यथार्थवाद की प्रामाणिक व्याख्या के रूप में द्रष्टव्य है। 'थ्योरी ऑफ द नाॅवेल' जैसी पुस्तक में उन्होंने जहाँ उपन्यास के सिद्धांतों को व्याख्यायित किया, वहीं 'द हिस्टोरिकल नाॅवेल' जैसी पुस्तक में उन्होंने ऐतिहासिक उपन्यास की प्रकृति का मार्मिक विश्लेषण भी किया है। 'एस्सेज ऑन थॉमस मान' नामक रचना में उन्होंने जर्मनी के महान् तथा अपने प्रिय लेखक के कृतित्व के अध्ययन के माध्यम से अपनी गहन साहित्यिक चेतना का परिचय दिया है। 'द यंग हेगेल' जैसी पुस्तक में उनकी दार्शनिक विचारधारा द्रष्टव्य है।
 
उनके रचनात्मक महत्व को पहचानते हुए [[शिवकुमार मिश्र (आलोचक)|डाॅ० शिवकुमार मिश्र]] का मानना है कि "फ्रांस ही क्या समूचे यूरोप, यहाँ तक कि समूचे पश्चिम में, जॉर्ज लूकाच जैसा कोई भी दार्शनिक-साहित्यिक विचारक उत्पन्न नहीं हुआ। मार्क्सवादी आस्थाओं से पूर्णतः अनुप्राणित [[हंगरी]] (Hungary) के इस अद्वितीय सौन्दर्यशास्त्री चिन्तक को कट्टर मार्क्सवादियों द्वारा प्रायः [[संशोधनवादीसंशोधनवाद]] (Revisionist) कहकर लांछित किया गया है, परन्तु इतना निर्विवाद है कि साहित्य एवं कला की जितनी गहरी समझ और उनकी अन्तरंग विशेषताओं का जितना समग्र उद्घाटन हमें लूकाच (George Lukach) की कृतियों में प्राप्त होता है, उतना अन्यत्र नहीं।"<ref>मार्क्सवादी साहित्य-चिन्तन : इतिहास तथा सिद्धान्त, पूर्ववत्, पृष्ठ-171.</ref>
 
== प्रमुख प्रकाशित पुस्तकें ==