"होलकर": अवतरणों में अंतर

HinduKshatrana द्वारा सम्पादित संस्करण 4333857 पर पूर्ववत किया: Rv to the last best version. (ट्विंकल)
टैग: किए हुए कार्य को पूर्ववत करना
छो बॉट: पुनर्प्रेषण ठीक कर रहा है
पंक्ति 2:
{{प्रशंसक दृष्टिकोण|date=अगस्त 2019}}
{{सिर्फ़ कहानी|date=अगस्त 2019}}
'''होलकर राजवंश''' [[मल्हारराव होल्करहोलकर|मल्हार राव]] से प्रारंभ हुआ जो १७२१ में [[पेशवा]] की सेवा में शामिल हुए और जल्दी ही सूबेदार बने। होलकर वंश के लोग 'होल गाँव' के निवासी होने से 'होलकर' कहलाए। अतः पूरे भारत में अलग-अलग क्षेत्रों में इस जाती को अलग अलग नाम से जाना जाता है परंतु यह एक ही जाती है "वो हैं | " [[धनगर]]" [[अहीर|अहिर]] इनके नाम अलग अलग है पूरे भारत में इनकी एक ही पहचान है और बाद में १८१८ तक मराठा महासंघ के एक स्वतंत्र सदस्य के रूप में मध्य भारत में [[इन्दौर|इंदौर]] पर शासन किया और बाद में भारत की स्वतंत्रता तक ब्रीटिश भारत की एक रियासत रहे। <br />
<br />
होलकर वंश उन प्रतिष्ठित राजवंशों मे से एक था जिनका नाम शासक के शीर्षक से जुडा, जो आम तौर पर महाराजा होलकर या 'होलकर महाराजा' के रूप में जाना जाता था, जबकि पूरा शीर्षक 'महाराजाधिराज राज राजेश्वर सवाई श्री (व्यक्तिगत नाम) होलकर बहादुर, महाराजा ऑफ़ इंदौर' था।
पंक्ति 9:
सर्वप्रथम मल्हाराव होलकर ने इस वंश की कीर्ति बढ़ाई। मालवाविजय में पेशवा बाजीराव की सहायता करने पर उन्हें मालवा की सूबेदारी मिली। उत्तर के सभी अभियानों में उन्होंने में पेशवा को विशेष सहयोग दिया। वे मराठा संघ के सबल स्तंभ थे। उन्होंने इंदौर राज्य की स्थापना की। उनके सहयोग से मराठा साम्राज्य पंजाब में अटक तक फैला। [[सदाशिवराव भाऊ]] के अनुचित व्यवहार के कारण उन्होंने [[पानीपत का तृतीय युद्ध|पानीपत के युद्ध]] में उसे पूरा सहयोग न दिया पर उसके विनाशकारी परिणामों से मराठा साम्राज्य की रक्षा की।
 
मल्हारराव के देहांत के पश्चात् उसकी विधवा पुत्रवधू अहिल्या देवी होलकर ने तीस वर्ष तक बड़ी योग्यता से शासन चलया। सुव्यवस्थित शासन, राजनीतिक सूझबूझ, सहिष्णु धार्मिकता, प्रजा के हितचिंतन, दान पुण्य तथा तीर्थस्थानों में भवननिर्माण के लिए ने विख्यात हैं। उन्होंने महेश्वर को नवीन भवनों से अलंकृत किया। सन् १७९५ में उनके देहांत के पश्चात् तुकोजी होलकर ने तीन वर्ष तक शासन किया। तदुपरांत उत्तराधिकार के लिए संघर्ष होने पर, अमीरखाँ तथा [[पंडारीपण्डारी|पिंडारियों]] की सहायता से यशवंतराव होलकर इंदौर के शासक बने। पूना पर प्रभाव स्थापित करने की महत्वाकांक्षा के कारण उनके और दोलतराव सिंधिया के बीच प्रतिद्वंद्विता उत्पन्न हो गई, जिसके भयंकर परिणाम हुए। मालवा की सुरक्षा जाती रही। मराठा संघ निर्बल तथा असंगठित हो गया। अंत में होलकर ने [[सिंधिया]] और पेशवा को हराकर [[पुणे|पूना]] पर अधिकार कर लिया। भयभीत होकर बाजीराव द्वितीय ने १८०२ में बेसीन में अंग्रेजों से संधि कर ली जो [[द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध]] का कारण बनी। प्रारंभ में होलकर ने अंग्रेजों को हराया और परेशान किया पर अंत में परास्त होकर राजपुरघाट में संधि कर ली, जिससे उन्हें विशेष हानि न हुई। १८११ में यशवंतराव होलकर की मृत्यु हो गई।
 
[[तृतीय आंग्ल-मराठा युद्ध|अंतिम आंग्ल-मराठा युद्ध]] में परास्त होकर मल्हारराव द्वितीय को १८१८ में मंदसौर की अपमानजनक संधि स्वीकार करनी पड़ी। इस संधि से इंदौर राज्य सदा के लिए पंगु बन गया। गदर में तुकोजी द्वितीय अंग्रेजी के प्रति वफादार रहे। उन्होंने तथा उनके उत्तराधिकारियों ने अंग्रेजों की डाक, तार, सड़क, रेल, व्यापारकर आदि योजनाओं को सफल बनाने में पूर्ण सहयोग दिया। १९०२ से अंग्रेजों के सिक्के होलकर राज्य में चलने लगे। १९४८ में अन्य देशी राज्यों की भाँति इंदौर भी स्वतंत्र भारत का अभिन्न अंग बन गया और महाराज होलकर को निजी कोष प्राप्त हुआ।
 
== होलकर साम्राज्य की स्थापना ==
'''[[मल्हारराव होलकर]]''' (जन्म १६९४, मृत्यु १७६६) ने इन्दौर मे परिवार के शासन कि स्थापना की। उन्होने १७२० के दशक मे मालवा क्षेत्र में मराठा सेनाओं की संभाली और १७३३ में पेशवा ने इंदौर के आसपास के क्षेत्र में ९ परगना क्षेत्र दिये। इंदौर शहर मुगल साम्राज्य द्वारा मंजूर, 3 मार्च १७१६ दिनांक से [[कंपेल]] के [[नंदलाल मंडलोई]] द्वारा स्थापित एक स्वतंत्र रियासत के रूप में पहले से ही अस्तित्व में था। वे नंदलाल मंडलोई ही थे जिन्होने इस क्षेत्र में मराठों को आवागमन की अनुमती दी और खान नदी के पार शिविर के लिए अनुमति दी। मल्हार राव ने १७३४ में ही एक शिविर की स्थापना की, जो अब में मल्हारगंज के नाम से जाना जात है। १७४७ मे उन्होने अपने राजमहल, राजवाडा का निर्माण शुरू किया। उनकी मृत्यु के समय वह मालवा के ज्यादातर क्षेत्र मे शासन किया और मराठा महासंघ के लगभग स्वतंत्र पाँच शासकों में से एक के रूप में स्वीकार किया गया।<br />
<br />
उनके बाद उनकी बहू '''[[अहिल्याबाई होल्कर|अहिल्याबाई होलकर]]''' (१७६७-१७९५ तक शासन किया) ने शासन की कमान संभाली। उनका जन्म महाराष्ट्र में चौंडी गाँव में हुआ था। उन्होने राजधानी को इंदौर के दक्षिण मे [[नर्मदा नदी]] पर स्थित [[महेश्वर]] पर स्थानांतरित किया। रानी अहिल्याबाई कई हिंदू मंदिरों की संरक्षक थी। उन्होने अपने राज्य के बाहर पवित्र स्थलों में मंदिरों का निर्माण किया।<br />
<br />
मल्हार राव होलकर के दत्तक पुत्र '''[[तुकोजीराव होलकर]]''' (शासन: १७९५-१७९७) ने कुछ समय के लिये रानी अहिल्याबाई की मृत्यु के बाद शासन संभाला। हालांकि तुकोजी राव ने अहिल्याबाई कए सेनापती के रूप मे मंडलोई द्वरा इंदौर की स्थापना के बाद मार्च १७६७ में अपना अभियान शुरु कर दिया था। होलकर १८१८ से पहले इन्दौर मे नही बसे।
पंक्ति 51:
== इंदौर के होलकर महाराजा ==
 
* [[मल्हारराव होलकर|मल्हार राव होलकर प्रथम]] (शासन: २ नवम्बर १७३१ से १९ मई १७६६)
* [[मालेराव होलकर]] (शासन: २३ अगस्त १७६६ से ५ अप्रैल १७६७)
* [[अहिल्याबाई होल्कर|अहिल्याबाई होलकर]] (शासन: २७ मार्च १७६७ से १३ अगस्त १७९५)
* [[तुकोजीराव होलकर]] (शासन: १३ अगस्त १७९५ से २९ जनवरी १७९७)
* [[काशीराव होलकर]] (शासन: २९ जनवरी १७९७ से १७९८)
* [[यशवंतराव होलकर|यशवंतराव होलकर प्रथम]] (शासन: १७९८ से २७ अक्टूबर १८११)
* [[मल्हार राव होलकर तृतीय]] (शासन: २७ अक्टूबर १८११ से २७ अक्टूबर १८३३)
* [[मार्तण्डराव होलकर]] (शासन: १७ जनवरी १८३४ से २ फ़रवरी १८३४)
"https://hi.wikipedia.org/wiki/होलकर" से प्राप्त