"उल्का": अवतरणों में अंतर

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== संक्षिप्त इतिहास ==
यद्यपि मनुष्य इन टूटते हुए तारों से अत्यंत प्राचीन समय से परिचित था, तथापि आधुनिक [[विज्ञान]] के विकासयुग में मनुष्य को यह विश्वास करने में बहुत समय लगा कि भूतल पर पाए गए ये पिंड पृथ्वी पर आकाश से आए हैं। 18वीं शताब्दी के उत्तरार्ध में डी. ट्रौयली नामक दार्शनिक ने [[इटली]] में अल्बारेतो स्थान पर गिरे हुए उल्कापिंड का वर्णन करते हुए यह विचार प्रकट किया कि वह खमंडल से टूटते हुए तारे के रूप में आया होगा, किंतु किसी ने भी इसपर ध्यान नहीं दिया। सन् 1768 ई. में फादर बासिले ने [[फ़्रान्स|फ्रांस]] में लूस नामक स्थान पर एक उल्कापिंड को पृथ्वी पर आते हुए स्वत: देखा। अगले वर्ष उसने [[पेरिस]] की विज्ञान की रायल अकैडमी के अधिवेशन में इस वृत्तांत पर एक लेख पढ़ा। अकैडमी ने वृत्तांत पर विश्वास न करते हुए घटना की जाँच करने के लिए एक आयोग नियुक्त किया जिसके प्रतिवेदन में फादर बासिले के वृत्तांत को भ्रमात्मक बताते हुए यह मंतव्य प्रकट किया गया कि बिजली गिर जाने से पिंड का पृष्ठ कुछ इस प्रकार काँच सदृश हो गया था जिससे बासिले को यह भ्रम हुआ कि यह पिंड पृथ्वी का अंश नहीं हैं। तदनंतर जर्मन दार्शनिक क्लाडनी ने सन् 1794 ई. में [[साइबेरिया|साइबीरिया]] से प्राप्त एक उल्कापिंड का अध्ययन करते हुए यह सिद्धांत प्रस्तावित किया कि ये पिंड खमंडल के प्रतिनिधि होते हैं। यद्यपि इस बार भी यह विचार तुरंत स्वीकार नहीं किया गया, फिर भी क्लाडनी को इस प्रसंग पर ध्यान आकर्षित करने का श्रेय मिला और तब से वैज्ञानिक इस विषय पर अधिक मनोयोग देने लगे। सन् 1803 ई. में फ्रांस में ला ऐगिल स्थान पर उल्कापिंडों की एक बहुत बड़ी वृष्टि हुई जिसमें अनगिनत छोटे-बड़े पत्थर गिरे और उनमें से प्राय: दो-तीन हजार इकट्ठे भी किए जा सके। विज्ञान की फ्रांसीसी अकैडमी ने उस वृष्टि की पूरी छानबीन की और अंत में किसी को भी यह संदेह नहीं रहा कि उल्कापिंड वस्तुत: खमंडल से ही पृथ्वी पर आते हैं।
 
== वर्गीकरण ==
उल्कापिंडों का मुख्य वर्गीकरण उनके संगठन के आधार पर किया जाता है। कुछ पिंड अधिकांशत: [[लोहा|लोहे]], [[निकल]] या [[मिश्रधातुमिश्रातु|मिश्रधातुओं]] से बने होते हैं और कुछ सिलिकेट खनिजों से बने पत्थर सदृश होते हैं। पहले वर्गवालों को '''धात्विक''' और दूसरे वर्गवालों को '''आश्मिक''' उल्कापिंड कहते हैं। इसके अतिरिक्त कुछ पिंडों में धात्विक और आश्मिक पदार्थ प्राय: समान मात्रा में पाए जाते हैं, उन्हें धात्वाश्मिक उल्कापिंड कहते हैं। वस्तुत: पूर्णतया धात्विक और पूर्णतया आश्मिक उल्कपिंडों के बीच सभी प्रकार की अंत:स्थ जातियों के उल्कापिंड पाए जाते हैं जिससे पिंडों के वर्ग का निर्णय करना बहुधा कठिन हो जाता है।
 
संरचना के आधार पर तीनों वर्गो में उपभेद किए जाते हैं। आश्मिक पिंडों में दो मुख्य उपभेद हैं जिनमें से एक को [[कोन्ड्राइट|कौंड्राइट]] और दूसरे को [[अकोन्ड्राइट|अकौंड्राइट]] कहते हैं। पहले उपवर्ग के पिंड़ों का मुख्य लक्षण यह है कि उनमें कुछ विशिष्ट वृत्ताकार दाने, जिन्हें कौंड्रयूल कहते हैं, उपस्थित रहते हैं। जिन पिंड़ों में कौंड्रयूल उपस्थित नहीं रहते उन्हें अकौंड्राइट कहते हैं।
 
धात्विक उल्कापिंड़ों में भी दो मुख्य उपभेद हैं जिन्हें क्रमश: अष्टानीक (आक्टाहीड्राइट) और षष्ठानीक (हेक्साहीड्राइट) कहते हैं। ये नाम पिंडों की अंतररचना व्यक्त करते हैं और जैसा इन नामों से व्यक्त होता है, पहले विभेद के पिंडों में धात्विक पदार्थ के बंध (प्लेट) अष्टानीक आकार में और दूसरे में षष्ठीनीक आकार में विन्यस्त होते हैं। इस प्रकार की रचना को विडामनस्टेटर कहते हैं एवं यह पिंड़ों के मार्जित पृष्ठ पर बड़ी सुगमता से पहचानी जा सकती है।
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। क्लोरीन। पोटैसियम लीथियम। हीलियम
 
इन 52 तत्वों में से केवल आठ प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं, जिनमें हालों सबसे प्रमुख है। अन्य सात में क्रमानुसार [[ऑक्सीजन|ऑक्सिजन]], [[सिलिकॉन|सिलिकन]], [[मैग्नेशियम|मैंगनीशियम]], [[गंधक]], [[एल्युमिनियम|ऐल्युमिनियम]], [[निकल]] और [[कैल्सियम]] हैं। इनके अतिरिक्त 20 अन्य तत्व पर्याप्त मात्रा में पाए जाते हैं तथा उनकी उपस्थिति का पता साधारण रासायनिक विश्लेषण द्वारा 1926 से पूर्व ही लग चुका था। शेष 24 तत्व अत्यंत अल्प मात्रा में विद्यमान हैं एवं उनकी उपस्थिति वर्णक्रमदर्शकी (स्पेक्ट्रोग्रैफिक) विश्लेषण से सिद्ध की गई है।
 
खनिज संरचना की दृष्टि से उल्कापिंडों और पृथ्वी में पाई गई शैल राशियों के लक्षणों में कई अंतर होते हैं। साधारणतया भूमंडलीय शैल राशियों में स्वतंत्र धातु रूप में लोहा तथा निकल अत्यंत दुर्लभ होते हैं, किंतु उल्कापिंड़ों में धातुएँ शुद्ध रूप में बहुत प्रचुरता से तथा प्राय: अनिवार्यत: पाई जाती हैं। इसके अतिरिक्त कई ऐसे खनिज हैं जो भूमडलीय शैलों में नहीं पाए जाते, पर उल्कापिंडों में मिलते हैं। इनमें से प्रमुख ओल्डेमाइट (कैल्सियम का सल्फाइड) और श्राइबेरसाइट (लोहे और निकल का फ़ॉसफ़ाइड) हैं। ये दोनों खनिज नमी और औक्सीजन की बहुलता में स्थायी नहीं होते और इसी कारण भूमंडलीय शैलों में नहीं मिलते। इनकी उपस्थिति से यह बोध होता है कि उल्कापिंडों की उत्पत्ति ऐसे वातावरण में हुई जहाँ भूमंडल की अपेक्षा आक्साइडीकरण की परिस्थितियाँ न्यून रही होंगी।
"https://hi.wikipedia.org/wiki/उल्का" से प्राप्त